बैंकों से नाराज हैं उर्जित पटेल
आरबीआई इस बात से खासा नाराज है कि कई बार चेतावनी देने के बावजूद कर्ज की दरों को तय करने को लेकर बैंक बहुत पारदर्शी तरीका नहीं अपना रहे हैं। रेपो रेट में जितनी कटौती आरबीआई करता है उसका पूरा फायदा बैंक ग्राहकों को नहीं देते हैं। कर्ज की दरों को तय करने का मौजूदा तरीका (मार्जिनल कॉस्ट आफ फंड बेस्ड रेट्स-एमसीएलआर) अप्रैल, 2016 से लागू किया गया है लेकिन आरबीआई इससे संतुष्ट नहीं है। एमसीएलआर के तहत बैंक जो दर तय करते हैं उससे कम दर पर वे अमूमन कर्ज नहीं देते। इसकी समीक्षा के लिए आरबीआई ने एक आंतरिक समिति गठित की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट पिछले हफ्ते ही सौंपी है। समिति की सिफारिशों के आधार पर ही अब केंद्रीय बैंक कर्ज की दर तय करने का नया तरीका बैंकों के लिए बनाएगा जिसके बारे में माना जा रहा है कि वह ज्यादा पारदर्शी होगा।
अगस्त, 2017 की मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा था कि ऐसी व्यवस्था करनी जरूरी है कि आरबीआइ की तरफ से की जा रही कटौती का सीधा असर कर्ज की दरों पर पड़े। अगर ऐसा नहीं होता है तो अर्थव्यवस्था पर ब्याज दरों के असर की सही समीक्षा नहीं हो सकती है। बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक मौजूदा गवर्नर उर्जित पटेल के अलावा पूर्व गवर्नर डा. रघुराम राजन भी कई बार इस बात पर चिंता जता चुके हैं कि वह बैंकों को ब्याज दरों में जितनी कटौती का अवसर देते हैं उतना फायदा ग्राहकों को नहीं मिलता। उदाहरण के तौर पर जनवरी, 2015 के बाद से रेपो रेट में 200 आधार अंकों (दो फीसद) की कटौती हुई लेकिन बैंकों की तरफ से कर्ज की दरों में बमुश्किल 90 आधार अंकों (0.90 फीसद) या 100 अंकों (एक फीसद) की कटौती की गई। उद्योग जगत की तरफ से ब्याज दरों में भारी भरकम कटौती की मांग आ रही है। प्रमुख उद्योग चैम्बर सीआईआई ने कहा है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए रेपो रेट में 100 आधार अंकों यानी एक फीसद की कटौती होनी चाहिए। सीआईआई का कहना है कि अभी बिल्कुल नई सोच की जरूरत है। निजी निवेश बिल्कुल ठप है और कर्ज को सस्ता करने से निवेश में तेजी लाई जा सकती है। (हिफी)
जेटली ने कसा राज्यों पर शिकंजा
पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर केन्द्र सरकार की आलोचना की जा रही थी लेकिन सरकार ने दोनों की कीमत में कटौती करके राज्य सरकारों को शिकंजे में ले लिया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि केन्द्र सरकार ने तो अपना काम कर दिया है, अब राज्य सरकारें अपना टैक्स भी घटाएं जिससे ग्राहकों को काफी राहत मिलेगी। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि होने से भारत में पेट्रोल और डीजल़ के खुदरा मूल्य क्रमश: 70.83 प्रति लीटर और 59.04 प्रति लीटर पहुंच गये थे। सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में दो-दो रुपये कम कर दिये हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि राज्यों द्वारा ईंधन पर ऊंचा बिक्री कर और वैट लिया जाता है। इसलिए राज्यों को पेट्रोल और डीजल पर अपना टैक्स कम करना चाहिए। श्री जेटली का यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि देश के 29 राज्यों में से 18 में भाजपा या उसके साझे में सरकारें चल रही हैं। भाजपा शासित महाराष्ट्र में ही पेट्रोल पर वैट की दर 46.52 प्रतिशत है और मुंबई में तो इसे 47.64 प्रतिशत कर दिया गया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली इसके साथ ही जीएसटी का लाभ ग्राहकों को न देने वाली कंपनियों पर भी शिकंजा कसने जा रहे हैं।
जीएसटी के तहत कई वस्तुओं पर पहले की तुलना में कर की दर कम हुई है। कई कारोबारी ऐसे भी हैं जो यह लाभ ग्राहकों तक नहीं दे रहे हैं। ऐसे मुनाफाखोरों पर नकेल कसने के लिए जीएसटी काउंसिल पांच सदस्यीय राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी अधिकरण के गठन को मंजूरी दे चुका है। इस अथॉरिटी का गठन चेयरमैन की नियुक्ति के बाद से दो वर्ष के लिए होगा। इसमें चेयरमैन और सदस्यों की उम्र अनिवार्य रूप से ६२ वर्ष से कम रहेगी। चेयरमैन को सचिव स्तर के अधिकारी का दर्जा दिया जाएगा। उसे 2.25 लाख रुपये प्रति माह का वेतन और इसके अतिरिक्त अन्य भत्ते दिए जाएंगे। उसे वे सभी सुविधाएं मिलेंगी, जो इस रैंक के अधिकारी को मिलती हैं। यदि किसी सेवानिवृत्त अधिकारी को चेयरमैन बनाया गया तो उसको मिलने वाली पेंशन की राशि को 2.25 लाख रुपये की वेतन राशि में से कम कर दिया जाएगा। तकनीकी सदस्यों को र्पतिमाह 2.05 लाख रुपये का वेतन और साथ ही अन्य भत्ते दिए जाएंगे। उसकी रैंक अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी के बराबर रहेगी। राज्य या केंर्दीय कर विभाग के वर्तमान या पूर्व कमिश्नर और एक्साइज, कस्टम्स या वैट के तहत इसके समकक्ष पदों के पूर्व या वर्तमान अधिकारी इस नई अथॉरिटी में तकनीकी सदस्य बनने के योग्य होंगे।
डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सेफगार्डस (डीजीएस) के अतिरिक्त महानिदेशक इस अथॉरिटी के लिए सचिव की भूमिका निभाएंगे। जीएसटी व्यवस्था में तय संरचना के अनुसार, स्थानीय स्तर की शिकायतें सबसे पहले राज्य स्तर की स्क्रीनिंग कमेटी के पास जाएंगीं। वहीं राष्ट्रीय स्तर की शिकायतें स्टैंडिंग कमेटी के सुपुर्द होंगी। अगर शिकायतों में दम होगा तो संबंधित कमेटियां उस मामले को विस्तृत जांच के लिए डीजीएस के पास भेजेंगी। डीजीएस मामले की जांच में अमूमन तीन महीने का समय लेगा। इसके बाद रिपोर्ट मुनाफाखोरी रोधी अथॉरिटी को सौंपी जाएगी। अगर अथॉरिटी ने पाया कि कंपनी ने जीएसटी से मिलने वाला लाभ ग्राहकों को नहीं दिया है तो उसे वह लाभ 18 फीसद ब्याज और जुर्माने के साथ ग्राहकों को देने को कहा जाएगा। किसी स्थिति में यदि लाभार्थियों की पहचान संभव नहीं होगी तो कंपनी को वह राशि उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा करानी होगी। इसके लिए समयसीमा निर्धारित की जाएगी। अथॉरिटी के पास किसी भी कंपनी का रजिस्ट्रेशन रद करने का अधिकार होगा। हालांकि नियमों के उल्लंघन के मामले में अथॉरिटी इसे आखिरी कदम के तौर पर इस्तेमाल करेगी। (हिफी)
ऑटोमेशन के पक्ष में पानगडिय़ा
भारत के शीर्ष अर्थशास्त्री अरविंद पानगडिय़ा का कहना है कि संरक्षणवाद की नीति से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं है। निर्यात बाजार करीब 22 लाख करोड़ डॉलर (करीब 1,441 लाख करोड़ रुपये) का है। यह इतना विशाल बाजार है कि संरक्षणवाद से इस पर र्पतिकूल प्रभाव पडऩे की बात निरर्थक है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलते हुए उन्होंने ऑटोमेशन से रोजगार घटने की बात से भी इन्कार किया।
भारत में नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से हाल में ही इस्तीफा देने वाले 65 वर्षीय पानगडिय़ा अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में दोबारा जुड़े हैं। उन्होंने कहा, ‘ऑटोमेशन को लेकर मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि हम प्राय: बढ़ा-चढ़ाकर चीजों को रखते हैं। हम यह तो देखते हैं कि ऑटोमेशन से कौन सी नौकरियां खत्म हुईं, लेकिन हम यह नहीं देखते कि वास्तव में ऑटोमेशन से किस प्रकार की नौकरियां सृजित होंगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि अतीत में कभी यह नहीं देखा गया कि प्रौद्योगिकी की प्रगति से रोजगार में कमी आई हो। पानगडिय़ा ने कहा, ‘प्रौद्योगिकी में प्रगति हम सभी को व्यस्त बनाती है। जितने औद्योगिक रूप से अग्रणी देश हैं, वहां लोग ज्यादा व्यस्त हैं। अतीत में कभी नहीं देखा गया कि प्रौद्योगिकी ने लोगों को कम व्यस्त किया हो या श्रम बाजार में गिरावट आई हो। पानगडिय़ा ने संरक्षणवाद के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले प्रभावों को भी नकारा। उन्होंने कहा कि वस्तु निर्यात बाजार १७ लाख करोड़ डॉलर (1,114 लाख करोड़ रुपये) का है। वहीं, सेवा निर्यात पांच से छह लाख करोड़ डॉलर है। इस तरह कुल 22 लाख करोड़ डॉलर का निर्यात बाजार है। यह इतना बड़ा है कि शायद ही संरक्षणवाद का इस पर कोई र्पतिकूल र्पभाव पड़ेगा। (हिफी)