पुण्य तिथि पर विशेष। किशोर कुमार का असली नाम आभास कुमार गांगुली था। किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त, 1929 को खंडवा, में बंगाली परिवार में हुआ था। किशोर कुमार विलक्षण शख्सियत रहे हैं। हिन्दी सिनेमा की ओर उनका बहुत बड़ा योगदान है। किशोर कुमार के पिता कुंजीलाल खंडवा शहर के जाने माने वकील थे। किशोर चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे। सबसे छोटा होने के नाते किशोर कुमार को सबका प्यार मिला। इसी चाहत ने किशोर को इतना हंसमुख बना दिया था कि हर हाल में मुस्कुराना उनके जीवन का अंदाज बन गया। उनके सबसे बड़े भाई अशोक कुमार मुंबई में अभिनेता के रूप में स्थापित हो चुके थे और उनके एक और भाई अनूप कुमार भी फिल्मों में काम कर रहे थे। किशोर कुमार बचपन से ही संगीतकार बनना चाहते थे, वह अपने पिता की तरह वकील नहीं बनना चाहते थे। किशोर कुमार ने 81 फिल्मों में अभिनय किया और 18 फिल्मों का निर्देशन भी किया। फिल्म पड़ोसन में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया वही किरदार वे जिंदगी भर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे। हिन्दी सिनेमा में इलैक्ट्रिक संगीत लाने का श्रेय किशोर कुमार को जाता है।
किशोर कुमार के. एल. सहगल के गानों से बहुत प्रभावित थे और उनकी ही तरह गायक बनना चाहते थे। किशोर कुमार के भाई अशोक कुमार की चाहत थी कि किशोर कुमार नायक के रूप में हिन्दी फिल्मों के हीरो के रूप में जाने जाएं, लेकिन किशोर कुमार को अदाकारी की बजाय पाश्र्व गायक बनने की चाहत थी। किशोर कुमार ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कभी किसी से नहीं ली थी। किशोर कुमार की शुरुआत अभिनेता के रूप में शिकारी (1946) से हुई। इस फिल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका की थी। किशोर कुमार ने 1951 में फणी मजूमदार द्वारा निर्मित आंदोलन में हीरो के रूप में काम किया मगर फिल्म फ्लॉप हो गई। 1954 में किशोर कुमार ने बिमल राय की नौकरी में एक बेरोजगार युवक की संवेदनशील भूमिका कर अपनी अभिनय प्रतिभा से भी परिचित किया। इसके बाद 1955 में बनी बाप रे बाप,1956 में नई दिल्ली, 1957 में मि. मेरी और आशा, और 1958 में बनी चलती का नाम गाड़ी जिस में किशोर कुमार ने अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ काम किया और उनकी अभिनेत्री मधुबाला थी।
किशोर कुमार को पहली बार गाने का मौका 1948 में बनी फिल्म जिद्दी में मिला। फिल्म जिद्दी में किशोर कुमार ने देव आनंद के लिए गाना गाया था। जिद्दी की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला। किशोर कुमार ने गायकी का नया अंदाज बनाया जो उस समय के नामचीन गायक रफी, मुकेश और सहगल से काफी अलग था। किशोर कुमार 1969 में निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म आराधना के जरिये गायकी के दुनिया में सबसे सफल गायक बन गये। किशोर कुमार को शुरू में एस डी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया और उनसे हल्के स्तर के गीत गवाए गए, लेकिन किशोर कुमार ने 1957 में बनी फिल्म फंटूस में दुखी मन मेरे गीत को गाकर अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। किशोर कुमार को इसके बाद एस डी बर्मन ने अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौका दिया। लता मंगेशकर को किशोर कुमार गायकों में सबसे ज्यादा अच्छे लगते थे। लता जी ने कहा कि किशोर कुमार हर तरह के गीत गा लेते थे और उन्हें ये मालूम था कि कौन सा गाना किस अंदाज में गाना है। किशोर कुमार लता जी की बहन आशा भोंसले के भी सबसे पसंदीदा गायक थे और उनका मानना है कि किशोर अपने गाने दिल और दिमाग दोनों से ही गाते थे। आज भी उनकी सुनहरी आवाज लाखों संगीत के दीवानों के दिल में बसी हुई है और उसका जादू हमारे दिलों दिमाग पर छाया हुआ है। एस डी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने मुनीम जी, टैक्सी ड्राइवर, फंटूश, नौ दो ग्यारह, पेइंग गेस्ट, गाईड, ज्वेल थीफ, प्रेम पुजारी, तेरे मेरे सपने जैसी फिल्मों में अपनी जादुई आवाज से फिल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया। एक अनुमान के मुताबिक किशोर कुमार ने 1940 से 1980 के बीच के अपने करियर के दौरान करीब 574 से अधिक गाने गाए। किशोर कुमार ने हिन्दी के साथ ही तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उडिया फिल्मों के लिए भी गीत गाए।
किशोर कुमार की पहली शादी रुमा देवी के से हुई थी, लेकिन जल्दी ही शादी टूट गई और इस के बाद उन्होंने मधुबाला के साथ विवाह किया। उस दौर में दिलीप कुमार जैसे सफल और शोहरत की बुलंदियों पर पहुँचे अभिनेता जहाँ मधुबाला जैसी रूप सुंदरी का दिल नहीं जीत पाए वही मधुबाला किशोरकुमार की दूसरी पत्नी बनी।
1961 में बनी फिल्म झुमरु में दोनों एक साथ आए। यह फिल्म किशोर कुमार ने ही बनाई थी और उन्होंने खुद ही इसका निर्देशन किया था। इसके बाद दोनों ने 1962 में बनी फिल्म हाफ टिकट में एक साथ काम किया, जिसमें किशोर कुमार ने यादगार कॉमेडी कर अपनी एक अलग छवि पेश की। 1976 में उन्होंने योगिता बाली से शादी की मगर इन दोनों का यह साथ मात्र कुछ महीनों का ही रहा। इसके बाद योगिता बाली ने मिथुन चक्रवर्ती से शादी कर ली। 1980 में किशोर कुमार ने चौथी शादी लीना चंद्रावरकर से की जो उम्र में उनके बेटे अमित से दो साल बड़ी थीं।
किशोर कुमार को आठ फिल्म फेयर अवार्ड मिले हैं। किशोर कुमार को पहला फिल्म फेयर अवार्ड 1969 में आराधना के गीत रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना के लिए दिया गया था। किशोर कुमार की खासियत यह थी कि उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज ऐसी रची बसी मानो किशोर खुद उनके अंदर मौजूद हों। किशोर कुमार की आवाज की पुरानी के साथ साथ नई पीढ़ी भी दीवानी है। किशोर जितने उम्दा कलाकार थे, उतने ही रोचक इंसान भी थे। उनके कई किस्से हिन्दी सिनेमा जगत में प्रचलित हैं। किशोर कुमार को अटपटी बातों को अपने चटपटे अंदाज में कहने का फितूर था। खासकर गीतों की पंक्ति को दाएँ से बाएँ गाने में किशोर कुमार ने महारत हासिल कर ली थी। नाम पूछने पर वह कहते थे रशोकि रमाकु।
किशोर कुमार ने हिन्दी सिनेमा के तीन नायकों को महानायक का दर्जा दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनकी आवाज के जादू से देव आनंद सदाबहार हीरो कहलाए। राजेश खन्ना को सुपर सितारा कहा जाने लगा और अमिताभ बच्चन महानायक हो गए।
किशोर कुमार ने बारह साल की उम्र तक गीत संगीत में महारत हासिल कर ली थी। किशोर कुमार रेडियो पर गाने सुनकर उनकी धुन पर थिरकते थे। किशोर कुमार फिल्मी गानों की किताब जमा कर उन्हें कंठस्थ करके गाते थे। घर आने वाले मेहमानों को किशोर कुमार अभिनय सहित गाने सुनाते तो मनोरंजन कर के रूप में कुछ इनाम भी माँग लेते थे। एक दिन अशोक कुमार के घर अचानक संगीतकार सचिन देव वर्मन पहुँच गए। बैठक में उन्होंने गाने की आवाज सुनी तो दादा मुनि से पूछा,कौन गा रहा है ? अशोक कुमार ने जवाब दिया मेरा छोटा भाई है। जब तक गाना नहीं गाता, उसका नहाना पूरा नहीं होता। सचिन दा ने बाद में किशोर कुमार को जीनियस गायक बना दिया। मोहम्मद रफी ने पहली बार किशोर कुमार को अपनी आवाज रागिनी में गीत मन मोरा बावरा के लिए उधार दी। दूसरी बार शंकर जयकिशन की फिल्म शरारत में रफी ने किशोर के लिए अजब है दास्ताँ तेरी ये जिंदगी गीत गाया। महमूद ने प्यार किए जा में कॉमेडियन किशोर कुमार, शशि कपूर और ओमप्रकाश से ज्यादा पैसे वसूले थे। किशोर को यह बात अखर गई। किशोर कुमार ने इसका बदला महमूद से फिल्म पड़ोसन में दुगुना पैसा लेकर लिया। किशोर कुमार ने जब जब स्टेज शो किए, हमेशा हाथ जोड़कर सबसे पहले संबोधन करते थे मेरे दादा दादियों। मेरे नाना नानियों। मेरे भाई बहनों, तुम सबको खंडवे वाले किशोर कुमार का राम राम। नमस्कार।
1988 कौन जीता कौन हारा 1982 बढ़ती का नाम दाढ़ी 1974 दूर का राही हंगामा1971 साधू और शैतान पड़ोसन 1968 हाय मेरा दिल प्यार किये जा 1966 लड़का लड़की दूर गगन की छाँव में 1964 मिस्टर एक्स इन बॉम्बे हाफ टिकट मनमौजी 1962 नॉटी बॉय 1961 झुमरू गर्ल फ्रैंड महलों के ख्वाब 1960 काला बाजार 1959 चाचा जिन्दाबाद चलती का नाम गाड़ी 1958 रागिनी आशा मिस मैरी बंदी1957 भाई भाई पैसा ही पैसा ढाके की मलमल मेम साहिब1956 भगवत महिमा पहली झलक बाप रे बाप1955 नौकरी धोबी डॉक्टर 1954 लड़की 1953 तमाशा 1952 शिकारी 1946 ।
हमें और जीने की चाहत न होती… आदमी जो कहता है आने वाला पल जाने वाला है । ओ मेरे दिल के चैन मेरे जीवन साथी कोई हमदम न रहा खाईके पान बनारस वाला ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत कौन हो तुम बतलाओ गीत गाता हूँ मैं घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं चलते चलते मेरे ये गीत चलते चलते चिंगारी कोई भड़के छूकर मेरे मन को जीवन से भरी तेरी आँखें तेरी दुनिया से, होके मजबूर चला दिल आज शायर है दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा दीवाना लेके आया है मेरे जीवन साथी राहुल देव बर्मन दुखी मन मेरे, सुन मेरा कहना प्यार दीवाना होता है कटी पतंग फिर वोही रात है फूलों का तारों का हरे रामा जनाब ने पुकारा नहीं मुसाफिर हूँ यारो मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया मेरी भीगी भीगी सी मेरे नैना सावन भादों मेरे सपनों की रानी कब आएगी । ये जीवन है ये दिल न होता बेचारा। ये शाम मस्तानी, मदहोश किये जाये।रिम झिम गिरे सावन रोते हुए आते हैं सब। सागर जैसी आँखों वाली हम हैं राही प्यार के। हमें तुमसे प्यार कितना जिंदगी इक सफर है सुहाना जिंदगी प्यार का गीत है।
किशोर कुमार का बचपन तो खंडवा में बीता, लेकिन जब वे किशोर हुए तो इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढऩे आए। हर सोमवार सुबह खंडवा से मीटरगेज की छुक छुक रेलगाड़ी में इंदौर आते और शनिवार शाम लौट जाते। सफर में वे हर स्टेशन पर डिब्बा बदल लेते और मुसाफिरों को नए नए गाने सुनाकर मनोरंजन करते थे।
किशोर कुमार जिंदगी भर कस्बाई चरित्र के भोले मानस बने रहे। मुंबई की भीड़ भाड़, पार्टियाँ और ग्लैमर के चेहरों में वे कभी शामिल नहीं हो पाए। इसलिए उनकी आखिरी इच्छा थी कि खंडवा में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाए। इस इच्छा को पूरा किया गया, वे कहा करते थे फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वे खंडवा में ही बस जाएँगे और रोजाना दूध जलेबी खाएँगे। 1987 में किशोर कुमार ने मुंबई की भागम दौड़ वाली जिंदगी से उब कर यह फैसला किया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गाँव खंडवा जाकर रहेंगे। लेकिन उनका यह सपना भी अधूरा ही रह गया। 13 अक्टूबर 1987 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह पूरी दुनिया से विदा हो गये। भले ही वो आज हमारे बीच नहीं है। लेकिन अपनी सुरमयी आवाज और बेहतरीन अदायकी से वो हमेशा हमारे बीच रहेंगे। एजेन्सी