गांधी जयंती (2 अक्टूबर) पर विशेष
आज दुनिया कराह रही है। सीरिया, अफगानिस्तान, इराक, तुर्की सभी जगह हिंसा नंगा नाच कर रही है। बापू! आपके अहिंसा के अमोघ शस्त्र की बहुत जरूरत है। आप नोआखली में अकेले, निहत्थे चले गये थे और हिंसा करने वालों को रोका था। अब कश्मीर में पत्थरबाजों को कोई रोक नहीं पा रहा है। नक्सलवादी, अलगाववादी और आतंकवादी निर्दोषों को निशाना बना रहे हैं। आपके देश में भी वैमनस्यता बढ़ रही है। साम्प्रदायिकता और जातिवाद सिर उठा रहे हैंं। इन सबको रोकने के लिए आपकी जरूरत है। बापू! एक बार फिर इस देश में आ जाओ। पूरी दुनिया में बढ़ रही हिंसा को आप जैसी कोई विभूति ही रोक सकती है। सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू जितना भारत में प्रिय थे, उतने ही दक्षिण अफ्रीका में भी लोग उनको चाहते थे। बापू ने हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत को अपनाया। पूरी पृथ्वी को अपना परिवार समझा। भारत के तो वे प्रिय बापू और राष्ट्रपिता थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गांधी था। उनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869- में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा देश में प्राप्त करने के बाद वह वकालत पढऩे लंदन गये और बैरिस्टर बनकर लौटे। इंग्लैण्ड में ही उन्हें नस्लवादी भेदभाव का अनुभव हो चुका था और दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने यही लड़ाई सफलतापूर्वक लड़ी। वहीं से अहिंसा का शस्त्र लेकर भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
गाँधी जी ने अपने पूरे जीवन में देश के लिये लड़ाइयां लड़ीं और गुलाम देश को आजाद कराया। गाँधी जी के जीवन से जुड़ी अनेकों घटनाएं हमेशा हम सबको प्रेरित करती रहती हैं और रहेंगी। ऐसी ही एक घटना चम्पारन की है।
गाँधी जी ने वहां की प्रजा पर होने वाले अत्याचारों को दूर करने के लिये जो काम किये, उनसे वहां के निलहे गोरे बहुत बिगड़ गये। एक दिन किसी ने आकर गाँधी जी से कहा, यहां का गोरा निलहा बड़ा अत्याचारी है। वह आपको मार डालना चाहता है। उसने हत्यारे आपके पीछे लगाये हैं। गाँधी जी ने बात सुन ली, जब रात हुई तो वह अकेले उस गोरे के बंगले पर पहुंचे, उससे मिले और बोले, ‘मैंने सुना है, आपने मुझे मारने के लिये कुछ हत्यारे तैनात किये हैं। लीजिए, मैं अकेला यहां आ गया हूं और किसी से कहकर भी नहीं आया। गाँधीजी की हिम्मत को देखकर गोरा चकित रह गया।
इस प्रकार गाँधी जी ने निडरता के साथ हर खतरे को झेला था। गाँधीजी ने सत्याग्रह का अभियान चलाया, यह अस्त्र उन्होंने भारतीयों को उपहार में दे दिया, जिसका अर्थ था अत्याचारी से कभी मत डरो। उसकी बुराई कभी मत सोचो। उस पर हमला मत करो, अपने अधिकार के लिए लड़ो। बिहार में निलहे साहब किसानों पर बड़ा जुल्म कर रहे थे। किसानों के आग्रह पर गाँधी जी ने अपना आन्दोलन चम्पारन में आरम्भ किया था। वे गिरफ्तार कर लिये गये। सरकार को उनकी शक्ति का आभास था। गाँधी जी को रिहा कर दिया गया। उन्हीं के प्रभाव से सरकार को कुछ ऐसे कानून बनाने पड़े, जो किसानों के लिये लाभप्रद थे। 1918८ में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात सरकार ने ‘रौलट कानून नाम का एक कानून बनाया जिसका मकसद युद्ध के समय क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों से बदला लेने के लिए था। इसके अनुसार किसी पर बिना मुकदमा दायर किये गिरफ्तार कर सकते थे। सारे भारत में इस कानून का जबर्दस्त विरोध हुआ। तब गाँधी जी ने इस काले कानून के खिलाफ सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। 6 अप्रैल, 1919 में सारे देश में सत्याग्रह दिवस मनाया गया। 1902 में गाँधी जी कांग्रेस के नेता चुन लिये गये। उन्होंने असहयोग आन्दोलन चलाया। अपूर्व जन-जागृति को देखकर गाँधी जी ने साल भर में स्वराज दिलाने का वादा किया। उनकी शर्तें थीं कि लोग पूरी तरह अहिंसा का पालन करें। देश भर में बीस लाख चर्खें चलने लगे और समाज में छुआछूत का अंत हो।
इस प्रकार गाँधी जी ने सत्य- अहिंसा के रास्ते पर चलकर गुलाम देश व देशवासियों पर हो रहे अत्याचारों को रोका व देश को आजाद कराया। सारी कठिनाइयों से जूझते हुए भी उन्होंने कभी भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा।
सभी को उस रास्ते पर चलने की शिक्षा दी। शांति एवं नम्रता का व्यवहार सबको करने की शिक्षा दी। गाँधी जी के विषय में एक घटना इस प्रकार है- एक बार की बात है। गाँधी जी बारडोली गये हुए थे सत्याग्रह के लिये। एक दिन गाँधी जी के साथियों को समाचार मिला कि मस्जिद में एक मोटा-तगड़ा काबुली आया है। उसकी नीयत अच्छी मालूम नहीं होती। साथियों को इस समाचार से चिंता हुई। वह गाँधीजी को बचाने का उपाय सोचने लगे। जिस मकान में गाँधी जी ठहरे थे उसके चारों ओर कंटीले तारों की बाड़ लगी थी उसके दरवाजे को, जो हमेशा खुला रहता था, बंद कर दिया गया, इतना ही नहीं रात के समय उस पर पहरा बिठा दिया गया। वह काबुली रात को तार की बाड़ के पास आया, लेकिन पहरेदारों ने उसे अंदर जाने नहीं दिया। दूसरे दिन गाँधी जी प्रार्थना करके जब चरखा कातने बैठे, तो काबुली तार की बाड़ के पास आ खड़ा हुआ। काबुली को गाँधी जी ने अपने पास बुलाया, और पूछा, ‘क्यों भाई, तुम वहां क्यों खड़े हो वह बोला, ‘आप अहिंसा का उपदेश देते हैं। इसलिए मुझे आपकी नाक काटकर यह परीक्षा करनी थी, कि ऐसे मौके पर आप कहां तक अहिंसक रह सकते हैं। गाँधी जी ने उससे कहा, ‘सिर्फ नाक ही क्यों अपना यह धड़ और सिर भी मैं सौंप देता हूं। तुम्हें जो भी प्रयोग करना हो बिना संकोच के करो।
गाँधी जी के इन शब्दों को सुनकर काबुली खुश हो गया और बोला ‘आपके दर्शन से मुझे विश्वास हो गया कि आप अहिंसा के सच्चे पुजारी हैं। मेरा अपराध क्षमा कीजिए।
इस प्रकार गाँधी जी का मानना था कि अहिंसा का मूल प्रेम में है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम् का आदर्श उन्होंने अपने जीवन द्वारा दूसरों के सामने रखा था। अपने इसी प्रेम के कारण गाँधी जी सबके बापू बने, राष्ट्रपिता कहलाये। भारत से विदेशी सत्ता हटाने के लिये गाँधी जी ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। कई आन्दोलन चलाये। अंग्रेजी-शासन ने उन्हें और उनके देशवासियों को बहुत सताया, जेल में डाला, भारतीयों को बहुत प्रताडि़त किया। गाँधी जी का हृदय यह सब देखकर द्रवित हो उठता था। उन्होंने देश की आजादी के लिये जी-जान से लड़ाई लड़ी। अंत में विजयी भी हुए।
गाँधी जी जीवन भर मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने के लिये निरन्तर प्रयासरत रहे। उनमें महावीर की अहिंसा और बुद्ध की करुणा का सामंजस्य था। अहिंसा के प्रति गाँधीजी की इतनी गहरी आस्था थी कि वह एक क्षण को भी हिंसा को सहन नहीं कर सकते थे। इस प्रकार अहिंसा के पुजारी गाँधी जी देश के राष्ट्रपिता कहलाये। प्यार से उन्हें लोग ‘बापू कहने लगे। आज वह हमारे बीच न होते हुए भी है। सबके प्यारे ‘बापूू सारे जग के न्यारे बापू। (हिफी)