इ.डी एस ओझा ।
धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे । वे बड़े भाई थे । लेकिन अंधे होने के कारण भीष्म पितामह को हस्तिनापुर की सत्ता उनके छोटे भाई पाण्डु को सौंपनी पड़ी । धृतराष्ट्र को इस बात का मलाल जिंदगी भर रहा । हालांकि पाण्डु के मरने के बाद सत्ता उनको मिल गयी थी , पर उन्होंने इसे एक खैरात से ज्यादा कभी नहीं माना । धृतराष्ट्र तो अंधे थे , पर गांधारी ने अपनी आंखों पर पट्टी क्यों बांध ली ? प्रत्यक्षतः यह पति के प्रति सदाशयता व समर्पण का प्रतीक हो सकता है , पर अप्रत्यक्ष रूप से यह उस व्यवस्था का विरोध भी हो सकता है ,जिसमें बाहुबल हीं सर्वोपरि था । बाहुबल के हीं कारण भीष्म ने उसे बलात् धृतराष्ट्र की पत्नी बनाया अन्यथा उसका रिश्ता पुरूषपुर (पेशावर )के सुदर्शन राजकुमार से होने वाला था । धृतराष्ट्र व गांधारी के अंधे होते हीं पूरा राष्ट्र हीं अंधा हो गया । गांधारी ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली । उसने शकुनि को हस्तिनापुर के विनाश की अग्नि प्रज्वलित करने की खुली छूट दे दी । विदुर नीति तेल लेने चली गयी । भीष्म पितामह हस्तिनापुर से बंधे रहे । कुटिल शकुनि ने बड़े धैर्य से युवराज दुर्योधन के सहारे हस्तिनापुर के विनाश की हर इबारत लिखी ।
हर आदमी के हिस्से का कोई न कोई नफा होता है । सूरदास के हिस्से का नफा था उनका अंधापन । कहते हैं कि दृष्टि न होने पर मानव मस्तिष्क कुछ नई क्षमताएं अर्जित कर लेता है । सूंघने , स्पर्श व सुनने की क्षमता बढ़ जाती है । सूरदास में कवित्व शक्ति आ गयी । कृष्ण का वात्सल्य वर्णन जिस प्रकार उन्होंने किया है उस तरह का वर्णन आज तक किसी ने नहीं किया । वात्सल्य वर्णन में उनकी कोई शानी नहीं थी । कहा जाता है कि सूरदास जन्म से अंधे थे । लेकिन जिस तरह से सूरदास ने कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है , उस तरह का वर्णन केवल आंख वाला मानव मन हीं कर सकता है । यह वर्णन वही कर सकता है , जिसने एक बच्चे को अपने सामने देखा हो । उसकी अठखेलियों से दो चार हुआ है । सूरदास ने भी अपनी एक आंख होने के बारे में स्वीकारोक्ति दी है । लिखा है उनकी एक हीं आंख है , वह भी कुछ कुछ कानी है –सूरदास की एक आंखि है , ताहू में कछु कानो ।
अंधे लोग सामान्य लोगों से गणित में बहुत बेहतर होते हैं । हांलाकि गणित और दृष्टि एक दूसरे के घनिष्ट होते हैं , पर यहां उसके बिल्कुल उलट है । यहां गणित और अदृष्टि एक दुसरे के समानुपातिक हैं । प्रसिद्ध गणितज्ञ लियोनार्ड यूलर ने 17 साल अंधेपन में गुजारे थे । निकोलस साउंडर्सन जन्मांध थे , पर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर थे । फिल्म स्पर्श(1980) में नसीरूद्दीन शाह ने एक अंधे प्रिंसिपल का रोल किया है । अंधे लोग बड़े बड़े पदों पर भी पहुंचे हैं । एक कम्पनी के सी ई ओ अंधे हैं जिन्होंने 50 करोड़ की कम्पनी खड़ी कर दी है । एक जन्मांध ने देवी की मूर्ति भी गढ़ी थी । रवीन्द्र जैन भी जन्मांध थे , पर वे आला दर्जे के संगीतकार थे । वे बहुत अच्छा गाते भी थे । मिल्टन बाद में अंधे हुए , पर अंधे होने के बाद भी वे कविता लिखते रहे ।
कुछ अंधे लोग चीजों को देख नहीं सकते , पर महसूस कर सकते हैं । स्काॅटलैण्ड की मिलिना किनिंग को ब्रेन स्ट्रोक हुआ था । वे कोमा में चली गयीं थीं । जब वे कोमा से बाहर निकलीं तो उनकी आंखों की रोशनी चली गयी । वे अब चीजें देख नहीं सकतीं , लेकिन उन्हें महसूस कर सकती हैं । ड्राइंग रूम में कोई बैठा है तो उन्हें उसकी शकल का आभास तो नहीं होगा , पर इतना जरूर महसूस होगा कि कोई इंसान बैठा है । इसे “ब्लाइंड साईट ” कहते हैं । मिलिना किनिंग की महसूस करने की आदत उनसे खाना भी बनवा लेती है । वे चीजों को महसूस करती हैं और उन्हें उठाती हैं । वे पूरे घर में बेफिक्री से घूमती रहती हैं । कोई टकराने की कोशिश करे तो वह बच के निकल जाती हैं ।
अंधे लोग भी सपने देखते हैं । जो लोग 5 साल की उम्र से पहले अंधे हो जाते हैं वे जो सपने देखते हैं वह स्पर्श , सूंघने व सुनने का सपना होता है , क्योंकि 5 साल से कम का बच्चा दृश्य चीजों को भूल गया होता है । 5-7 साल के बच्चे मिश्रित सपने देखते हैं , जो कि श्रब्य और दृश्य दोनों तरह के होते हैं । 7 साल के बाद के जो लोग अंधे होते हैं वे केवल दृश्य सपने हीं देखते हैं । ऐसे लोग प्रकाश को भी महसूस कर सकते हैं । अगर कोई अंधा आदमी अंधेरे कमरे में बैठा है अचानक लाइट जला दी जाय तो वह उस लाइट को महसूस करेगा । कुछ लोग रास्तों पर चलते चलते इतने एक्सपर्ट हो जाते हैं कि उन्हें पता चल जाता है कि वे कहां कहां से होके गुजर रहे हैं । चण्डीगढ़ के सेक्टर 17 में मुझे एक ऐसे हीं सज्जन से मिलने का सुयोग मिला था । मैं उनका हाथ पकड़ के ले जा रहा था । वे बता रहे थे –” हम दुकानों से होकर गुजर रहे हैं । अब कोर्ट आ गया है । बस आप बायीं ओर ले चलो । ” उनका दफ्तर आ गया था । वे बोले मैं चलता हूं , लिफ्ट आ चुकी है । वे तेज कदमों से लिफ्ट में जा घुसे ।
जो जन्मांध होते हैं उनकी आंखों की रोशनी यदि आ जाय तो उन्हें बहुत दिक्कत होती है । जो जन्मांध नहीं होते उनकी भी एक ब एक आंखों की रोशनी वापस आ जाय तो उन्हें एडजस्ट होने में बहुत दिक्कत होती है । एक फिल्म में मौसमी चटर्जी की आंखें जब सही हो जाती हैं तो उसे पता हीं नहीं चलता कि वह किधर जाय । फिर वह अपनी आंखें बंद करती है । वह छू छूकर पूरे घर में घूमती है । तब उसे पता चलता है कि वह कहां है ! उसे अंधेरे में हीं सूकून था । रोशनी से उसका कोई वास्ता नहीं था । बहुत सुकूं से रहते थे हम अंधेरे में ,फसाद पैदा हुआ रोशनी के आने से ।