जेटली ने गब्बर सिंह टैक्स पर ली चुटकी
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी के गब्बर सिंह टैक्स पर जमकर प्रहार किया और बताया कि यूपीए तो 30 फीसद से ऊपर टैक्स लगाती थी, तब उन्हंे गब्बर सिंह टैक्स नहीं दिखाई पड़ रहा था लेकिन जीएसटी में 18 फीसद टैक्स को वह गब्बर सिंह टैक्स बताते हैं। इसी के साथ श्री जेटली ने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ भारत को अर्थव्यवस्था में लाभ मिलेगा। गत दिनों लोकसभा मंे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विश्वास् व्यक्त करते हुये कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में आ रही तेजी को भारत का भी फायदा होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय 7 से 8 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ रही है जो कि उसके लिये नया सामान्य वृद्धि स्तर बन गया है। वित्त मंत्री ने लोकसभा में चालू वित्त वर्ष की अनुपूरक अनुदान मांगों की दूसरी किस्त पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुये कहा कि पेट्रालियम उत्पादों को माल एवं सेवाकर (जीएसटी) के दायरे में लाने का फैसला जीएसटी परिषद द्वारा ही लिया जायेगा। वित्त मंत्री के जवाब के बाद निचले सदन ने 66,113 करोड़ रुपए की अतिरिक्त खर्च से जुड़ी अनुपूरक अनुदान मांगों और तत्संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी। इस राशि में निवल अतिरिक्त खर्च 33,379 करोड़ रुपए का होगा।
श्री जेटली ने इस दौरान मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पर चुटकी लेते हुये कहा कि जब अप्रत्यक्ष कर की औसत दर 31 से 31.5 प्रतिशत के बीच थी तब गब्बर सिंह टैक्स की कोई बात नहीं होती थी। जब आप उत्पाद शुल्क, वैट, सीएसटी और इसके आगे पडने वाले प्रभाव सहित कुल 31.5 प्रतिशत की दर से कर लगाते थे तब किसी को गब्बर सिंह टैक्स याद नहीं आया। लेकिन अब कर की दर केवल 18 प्रतिशत है। उल्लेखनीय है कि गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने माल एवं सेवाकर (जीएसटी) को गब्बर सिंह टैक्स बताया था। पेट्रोलियम पदाथो को जीएसटी के दायरे में लाने के मुद्दे पर जेटली ने कांग्रेस पार्टी को चुनौती देते हुये कहा कि वह अपने मुख्यमंत्रियों से कहें कि वे खुलेआम यह स्वीकार करें कि वह पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के पक्षधर हैं। उन्होंने आगे कहा कि पेट्रोलियम पदार्थेां पर जीएसटी के तहत शून्य दर लागू है। इनके बारे में कोई भी फैसला जीएसटी परिषद में ही लिया जायेगा। जेटली ने यह भी कहा कि सरकार जीएसटी को लागू करने का समय आगे के लिये नहीं टाल सकती थी क्योंकि संविधान में यह व्यवस्था कर दी गई थी कि 16 सितंबर 2017 से नई कर व्यवस्था को लागू किया जाना था। उन्होंने सदन में एक बार फिर आश्वस्त किया कि जीएसटी लागू होने से किसी भी राज्य को राजस्व का नुकसान नहीं होने दिया जायेगा। केन्द्र ने इस बारे में पांच साल तक राज्यों को क्षतिपूर्ति की गारंटी दी है। उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। विश्व अर्थव्यवसथा में तेजी आने का फायदा भारत को भी होगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय सात से 8 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है और यह उसके लिये नया सामान्य वृद्धि स्तर बन गया है। विश्व अर्थव्यवस्था को 2017 में 3.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हासिल करने का अनुमान है। माना जा रहा है कि इससे अगले वर्ष में इसमें 3.7 प्रतिशत वृद्धि हासिल होगी।
साढ़े तीन सौ परियोजनाओं का बढ़ा व्यय
देश भर में करीब 350 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के समय से पूरा नहीं होने से इनकी लागत 2.65 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्री विजय गोयल ने लोकसभा में यह जानकारी दी। इन सभी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों की लागत 150 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा है। देरी के कारणों से परियोजनाओं की लागत बढ़ने का बोझ सरकार के खजाने पर पड़ता है। गोयल ने लिखित जवाब में कहा कि पहली अक्टूबर, 2017 को उनके मंत्रालय की निगरानी में कुल 1,263 परियोजनाएं थीं। इनमें से 297 प्रोजेक्ट देरी का शिकार हुए हैं, जबकि 350 की लागत बढ़ चुकी है। ऐसे प्रोजेक्टों की संख्या 103 है जिनमें देरी और लागत वृद्धि दोनों हुई है। जहां तक परियोजनाओं में देरी का सवाल है, तो इसके लिए भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण मंजूरी में विलंब, फंडिंग संबंधी अवरोध और पुनर्वास के मुद्दे मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
सरकार के पास 7,400 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम
सरकार के पास दूरसंचार क्षेत्र के लिए 7,446 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम उपलब्ध है। इसमें से 80 फीसद दो नए बैंड में है। ये दोनों बैंड मोबाइल टेलीफोन सेवा के लिए निर्धारित किए गए हैं। संचार मंत्री मनोज सिन्हा ने लोकसभा में यह जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार का अगले वर्ष मार्च तक राष्ट्रीय दूरसंचार नीति को अंतिम रूप देने का इरादा है। नई नीति में दूरसंचार क्षेत्र में हो रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य और नीतियां तय की जाएंगी। सिन्हा ने कहा कि 770 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम 700 मेगाहर्ट्ज के प्रीमियम बैंड में उपलब्ध है। इसी तरह 2100 मेगाहर्ट्ज बैंड में 275 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की उपलब्धता है। अन्य बैंडों पर भी कम मात्र में स्पेक्ट्रम बचा हुआ है। सरकार की ओर से टेलीकॉम सेवा के लिए चिह्नित दो नए बैंड 3300-3400 मेगाहर्ट्ज और 3400-3600 मेगाहर्ट्ज हैं। अकेले 3300-3400 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम की उपलब्धता 6,050 मेगाहर्ट्ज की है। दूरसंचार विभाग जल्द ही कुछ स्पेक्ट्रम की नीलामी पर विचार कर रहा है। भारत में उत्पादों की मैन्यूफैक्चरिंग को प्रोत्साहनों की खातिर चयनित इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों ने 30 सितंबर तक 72 परियोजनाओं में 3,585 करोड़ रुपये का निवेश किया है। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आइटी राज्यमंत्री अलफोंस कन्ननथनम ने लोकसभा में यह जानकारी देते हुए बताया कि इन कंपनियों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर 27,804 लोगों को रोजगार दिया है।
अनिल अंबानी ने बेच दी रिलायंस एनर्जी
रिलायंस उद्योग समूह के अनिल अंबानी को कर्ज में डूबे रिलायंस एनर्जी को बेचना पड़ा है। अडानी ग्रुप ने रिलायंस एनर्जी के मुंबई बिजनेस को 18,800 करोड़ रुपये में खरीद लिया है। रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के अंतर्गत आने वाली रिलायंस एनर्जी इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन क्षेत्र में सक्रिय है। अधिग्रहण के साथ ही अडानी ट्रांसमिशन अब इसका कामकाज देखेगी। अडानी ने कैश डील के तहत यह खरीद समझौता किया है। रिलायंस एनर्जी का मुंबई में तकरीबन 30 लाख उपभोक्ता हैं, जिन्हें आने वाले समय में अडानी के नाम से बिल दिया जाएगा। हाल के दिनों में पावर सेक्टर में इसे सबसे बड़ा अधिग्रहण बताया जा रहा है।
रिलायंस इंफ्रा और अडानी ट्रांसमिशन ने एसपीए (शेयर परचेज एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। वैधानिक मंजूरी मिलने के बाद इसे औपचारिक रूप दे दिया जाएगा। रिलायंस एनर्जी पूर्वी और पश्चिमी मुंबई में बिजली आपूर्ति का काम देखती है। खरीद समझौते के साथ ही सभी उपभोक्ता अब अडानी ट्रांसमिशन के हो जाएंगे। रिलायंस इंफ्रा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनिल जालान ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि 15,000 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाने के बाद तीन हजार करोड़ रुपया बचेगा। उन्होंने बताया कि रिलायंस इंफ्रा अब कंस्ट्रक्शन, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट और डिफेंस सेक्टर में अपना ध्यान केंद्रित कर सकेगी। अनिल जालान ने कहा कि कर्ज न होने से बाजार से फंड उठाना ज्यादा आसान होगा। उनके अनुसार, रिलायंस-इंफ्रा के पास 10,000 करोड़ रुपये मूल्य का प्रोजेक्ट है। यह कंपनी भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी है।
रिलायंस एनर्जी को खरीदने के साथ ही अडानी ग्रुप इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन-ट्रांसमिशन के बाद अब डिस्ट्रीब्यूशन क्षेत्र में भी अपने पैर जमा सकेगा। कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा, ‘भारत में चैबीसों घंटे बिजली मुहैया कराने की योजना है, ऐसे में बिजली वितरण अगला सनराइज सेक्टर है।’ भविष्य में संभावनाओें वाले क्षेत्र को सनराइज सेक्टर कहा जाता है। रिलायंस एनर्जी के मुंबई बिजनेस को बेचने से रिलायंस इंफ्रा को सीधे तौर पर 13,251 करोड़ रुपये मिलेंगे। इसके साथ ही कंपनी का मालिकाना हक ट्रांसफर होने पर 550 करोड़ रुपये और मिलेंगे। (हिफी)