एक लालची आदमी, जिसे संयोग से एक यक्ष का पता मिल जाता है, बार-बार उसके पास जाकर उससे अपना दुखड़ा रोता है और यक्ष उसे कोई न कोई चमत्कारी चीज़ दे कर उसे संतुष्ट करता रहता है लेकिन जब यक्ष को पता चलता है कि वह आदमी बेहद लालची है तो एक दिन वह उससे सारी चमत्कारी चीज़ें वापस लेकर एक शंख दे देता है और बताता है कि अब उसे यक्ष के पास आने की जरूरत नहीं क्योंकि ये शंख (ढपोर शंख) ही उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर देगा। कुछ भी पाने के लिए उसे प्रातः उस शंख की पूजा करके अपनी मंशा बतानी होगी और फिर अगले दिन शंख उसे वांछित वस्तु प्रदान करेगा।
ढपोर शंख को लेकर वह आदमी अपने घर पहुँचता है और अगली ही सुबह शंख की पूजा करके उससे अपने लिए एक जोड़ी बैल मांगता है। ढपोर शंख कहता है- इसमें कौन सी बड़ी बात है। दो जोड़ी दे दूंगा। दूसरे दिन उठते ही आदमी अपनी चरनी (गोशाला) में पहुँचता है, लेकिन ये देखकर उसे आश्चर्य होता है कि वहां कोई बैल नहीं है। अब वह वापस ढपोर शंख के पास आता है और उससे बैल न देने का कारण पूछता है।
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ढपोर शंख जवाब देता है- मैंने सोचा कि बैलों से खेती करने में तुम्हे अत्यधिक श्रम करना पड़ेगा इसलिए सोचा क्यों न तुम्हें गोदाम भर कर अनाज ही दे दिया जाए। लालची आदमी बड़ा प्रसन्ना हुआ उसने कहा ये तो और अच्छा है, अनाज ही दे दो। ढपोर शंख ने कहा लेकिन इसके लिए तो तुम्हें मेरी पूजा करके मुझसे वर माँगना पड़ेगा मैं तो नियमो से बंधा हूँ न ! आदमी ने फिर ढपोर शंख की पूजा की और एक गोदाम भरकर अनाज माँगा। ढपोर शंख ने कहा- इसमें कौन सी बड़ी बात है। दो गोदाम भरके दे दूंगा। आदमी बड़ा खुश ! दूसरे दिन वह आदमी उठते ही भण्डार-गृह में पहुँचता है लेकिन ये देखकर उसे आश्चर्य होता है कि वहां अनाज का एक दाना भी नहीं है। अब वह वापस ढपोर शंख के पास आता है और उससे इसका कारण पूछता है। ढपोर शंख जवाब देता है- मैंने विचार किया कि अनाज में चूहों और घुन का भय रहेगा और उसकी व्यवस्था में तुम्हे धन व् श्रम दोनों व्यय करना पड़ेगा इसलिए सोचा क्यों न तुम्हें स्वर्ण मुद्राएँ दे दी जाए ? लालची आदमी बड़ा प्रसन्न हुआ उसने कहा ये तो और अच्छा है, स्वर्ण ही दे दो ! ढपोर शंख ने कहा लेकिन इसके लिए तो तुम्हें मेरी पूजा करके मुझसे वर माँगना पड़ेगा मैं तो नियमो से बंधा हूँ न ! आदमी ने फिर ढपोर शंख की पूजा की और एक थैली भर कर स्वर्ण मुद्राएँ माँगी। ढपोर शंख ने कहा- इसमें कौन सी बड़ी बात है। दो थैली भरके दे दूंगा। आदमी बड़ा खुश ! तीसरे दिन वह आदमी उठते ही अपनी तिजोरी खोलता है लेकिन फिर ढाक के तीन पात, न मुद्राएँ मिलनी थीं न मिली क्रोधित होकर वह वापस ढपोर शंख के पास आता है और उससे कहता है- ये क्या मजाक है तुम हर बार झूठ बोलते हो ! आज भी तुमने कुछ नहीं दिया ! ढपोर शंख जवाब देता है- बेवक़ूफ़ आदमी मेरा नाम ही ढपोर शंख है मैं सिर्फ बड़ी-बड़ी बात करता हूँ कुछ देता नहीं मेरा यही काम है ! copy