दलितों को आधार बनाकर कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी बनायी और जो काम जगजीवन राम जैसे नेता नहीं कर पाये वह मुकाम सुश्री मायावती ने हासिल कर लिया। बसपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया। उत्तर प्रदेश में तीन बार सरकार बना ली लेकिन फिर ऐसा झटका भी लगा जिसकी कल्पना सुश्री मायावती ने नहीं की होगी। भाजपा ने 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी को जब अपना नायक बनाया तो वे एक महानायक बनकर उभरे और उत्तर प्रदेश में सुश्री मायावती की पार्टी को एक भी सांसद नहीं मिल सका। यूपी ही उनका प्रमुख गढ़ था और यहीं पर सूखा पड़ गया तो पंजाब जैसे राज्य कहां से सांसद दे सकते थे। इसके बाद 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए और सुश्री मायावती भाजपा को तब भी समझ नहीं पायीं। नतीजा यह हुआ कि स्वामी प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक जैसे उसके प्रभावशाली नेता भाजपा की गोद में बैठ गये। विधानसभा चुनाव में सुश्री मायावती को लोकसभा की तरह सूखा तो नहीं मिला लेकिन बसपा तीसरे स्थान पर पहुुंच गयी और इतने विधायक भी नहीं है कि बहन जी को राज्यसभा में भेज सकते। यही कारण रहा कि सुश्री मायावती को अपनी सियासी किलेबंदी मजबूत करनी पड़ रही है। सबसे पहले उन्हांे उत्तर प्रदेश में ईंट-गारा लगाया है और इसके बाद कर्नाटक में अपने एक विधायक की बदौलत बाहरी राज्य में सरकार का सुख प्राप्त किया है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी सुश्री मायावती राजनीतिक गठबंधन करने जा रही है। इन सभी गठबंधनों का लक्ष्य है 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के सांसद जुटाना।
बसपा प्रमुख राजनीति का कैरम बहुत सोच-समझकर खेल रही हैं। वह सीेधे गोटी पर हिट नहीं करती हैं बल्कि इस तरह रिवर्स मारती हैं जिससे क्वीन उनके कब्जे में रहे। कर्नाटक में उनका प्रयोग सफल रहा है। मायावती ने वहां कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई को समझने में कोई गलती नहीं की थी और उन्हंे पता था कि इन्हींे में से कोई सरकार बनाएगा लेकिन जेडीएस किंग मेकर की भूमिका में रहेगा, इसलिए बसपा प्रमुख ने जेडीएस से समझौता करके चुनाव लड़ा। कर्नाटक में बसपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं था लेकिन पाने को बहुत कुछ उनकी सतर्क निगाहें चुनाव नतीजों पर लगी थीं और जैसे ही लगा कि कांग्रेस के साथ जेडीएस की सरकार बन सकती है तो बसपा प्रमुख ने गठबंधन सरकार बनवाने की कोशिश शुरू कर दी। कर्नाटक में गठबंधन की सरकार बनी और बसपा का एक विधायक भी मंत्री बन गया। पहली बार बसपा को किसी दूसरे राज्य में सरकार बनाने का अवसर मिला और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी बरकरार रहा। अब इसी प्रकार की किलेबंदी इसी साल के अंत में होने जा रहे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कर रही है। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और मध्य प्रदेश में कांग्रेस के साथ चुनावी समझौते की संभावनाएं प्रबल हैं। यहां भी सुश्री मायावती का लक्ष्य वही है जो कर्नाटक में था।
बसपा प्रमुख के लिए सबसे अच्छी स्थिति छत्तीसगढ़ में है। यहां भी कर्नाटक की तरह उनके पास खोने को कुछ लहीं है लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। अजीत जोगी ने कांग्रेस से नाता तोड़कर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जाकांछ) बना ली है। पहले वह कांग्रेस के नेता थे और उन्हंे मुख्यमंत्री भी बनाया गया था, तब कांग्रेस के ही कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल उनका विरोध करते थे। अजीत जोगी अपनी महत्वाकांक्षा के चलते ही पार्टी से बाहर आये हैं और यही संभावना जतायी जाती है कि विधानसभा चुनाव के बाद वह उसी पार्टी से जुड़ेंगे जो सरकार बनाएगी। भाजपा लगातार तीन बार से वहां सरकार बना रही है। डा. रमन सिंह की ख्याति अच्छी है लेकिन नक्सली समस्या ने सरकार की छवि को धूमिल किया है। इसलिए भाजपा के लिए भी इस बार का मुकाबला कठिन नजर आता है। ऐसे में तीसरा मोर्चा बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं। बसपा के संस्थापक स्व. कांशीराम ने छत्तीसगढ़ के जांजगीर से ही चुनावी राजनीति का आगाज किया था। छत्तीसगढ़ के पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में बसपा के दो-दो विधायक निर्वाचित हुए थे। इस बार की विधानसभा में भी बसपा का एक विधायक है। कांग्रेस और भाजपा के अलावा यहां बसपा ही विधायक जुटाने में सफल रहती है। इसलिए अजित जोगी का मोर्चा और बसपा मिलकर छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणात्मक कर सकेंगे। सुश्री मायावती यहां भी कर्नाटक की तरह ही सरकार का हिस्सा बन सकती है।
इसी तरह के समीकरण मध्य प्रदेश में भी बसपा प्रमुख बना रही हैं। मध्य प्रदेश में भी इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच का है। कांग्रेस ने कई उपचुनाव जीते हैं और इस बार सरकार बनाने का दावा भी कर रही है। सुश्री मायावती चाहती हैं कि कांग्रेस से समझौता करके विधानसभा चुनाव लड़े जाएं। हालांकि इस समझौते का क्षेत्र किसी विधानसभा चुनाव तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि लोकसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हिस्सेदारी तक जाएगा। इसलिए दिल्ली में दोनों पार्टियां चर्चा कर रही है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति वर्ग के वोटों को साधने के लिए विशेष रणनीति बनाने की तैयारी मंे है। इस वर्ग को लेकर शिवराज सिंह चैहान की सरकार की घोषणाओं का जवाब देने के लिए पार्टी के अनुसूचित जाति विभाग को जिम्मेदारी दी गयी है, वहीं बहुजन समाज पार्टी के साथ सीटों के तालमेल को लेकर भी कांग्रेस में चर्चा का दौर शुरू हो गया है। मध्य प्रदेश कांग्रेस अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष सुरेन्द्र चैधरी की दिल्ली में मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया से बात हुई है। अनुसूचित जाति विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. नितिन रावत भी इसी पक्ष मंे है कि बसपा से समझौता करके चुनाव लड़ा जाए।
जानकारी यह भी मिली है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने श्री सुरेन्द्र चैधरी को बसपा से सीटों समझौते को लेकर फार्मूला तैयार करने की जिम्मेदारी सौंप दी है। इस समझौते के तहत 2013 और इसके पहले कुछ विधानसभा चुनाव में बसपा के प्रभावशाली सीटों का अध्ययन कर वहां कांग्रेस की स्थिति की रिपोर्ट मांगी गयी है। इसके बाद अगले दौर की बैठक में इस मुद्दे पर नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर लिया जाएगा। कांग्रेस चाहती है कि चैहान की सरकार अनुसूचित जातियों के लिए जिन योजनाओं का प्रचार कर रही है, उन पर प्रतिक्रिया देने के लिए बसपा के नेताओं को ही लगाया जाए। इस प्रकार बसपा प्रमुख सुश्री मायावती ने उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में भी बसपा के विस्तार की सुनियोजित रणनीति तैयार की है जिससे बसपा को सियासी लाभ मिलना तय है। (हिफी)