एजेंसी। 20 जुलाई 1969 को इंसान ने पहली बार धरती के इस प्राकृतिक उपग्रह चांद पर अपने कदम उतार दिए। नासा ने अपोलो 11 मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देकर 20 जुलाई 1969 को अपने अंतरिक्ष यात्रियों नील आर्मस्ट्रांग और एडविन ई एल्ड्रिन जूनियर को चांद की सतह पर उतार कर वहां अमेरिका का झंडा गाड़ दिया। भौतिकी के प्रोफेसर रवि कुमार के अनुसार चांद पर सबसे पहले मानव भेजने को लेकर अमेरिका और सोवियत संघ के बीच जबर्दस्त प्रतिस्पर्द्धा थी। अपोलो 11 ने अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की इस तमन्ना को पूरा कर दिया कि 1960 के दशक के अंत तक अमेरिका को सोवियत संघ से पहले चांद पर मानव उतारना चाहिए। कैनेडी ने 1961 में कांग्रेस के सामने संबोधन में कहा था कि मेरा मानना है कि अमेरिका को इस दशक के अंत से पहले मानव को चांद पर उतारने और फिर धरती पर सुरक्षित वापस लाने के लक्ष्य को हासिल करना चाहिए। अपोलो 11 मिशन के तहत अमेरिकी अंतरिक्ष यान ने 16 जुलाई 1969 को फ्लोरिडा से चंद्रमा के लिए उड़ान भरी। इसमें तीन लोग कमांडर नील आर्मस्ट्रांग कमांड माड्यूल पायलट माइकल कोलिन्स और लूनर माड्यूल पायलट एडविन ई एल्ड्रिन जूनियर सवार थे। इनमें से आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन चांद की सतह पर उतर गए ्र वहीं कोलिन्स कक्षा में चक्कर लगाते रहे। इन लोगों को चंद्रमा पर ले जाने वाला ईगल नाम का यान 21 घंटे 31 मिनट तक चंद्रमा की सतह पर रहा। इस दौरान अंतरिक्ष यात्री धरती के प्राकृतिक उपग्रह पर चहलकदमी करते रहे। यान तीनों अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर 24 जुलाई को धरती पर सुरक्षित लौट आया। अंतरिक्ष यात्री अपने साथ चंद्र चट्टानों की 21.55 किलोग्राम मिट्टी लेकर आए। इस तरह अमेरिका चांद पर मानव भेजने वाला पहला देश बन गया और 20 जुलाई की तारीख अंतरिक्ष इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गई। चंद्रमा से लाई गई मिट्टी दुनियाभर के वैज्ञानिकों को अध्ययन के लिए बांटी गई। जिस समय अमेरिकी अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के लिए उड़ान भरी समूचे अमेरिका में टेलीविजन पर इसका प्रसारण हुआ था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने समूची प्रक्रिया को व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस से देखा था। इस अनोखी उपलब्धि को लेकर दुनियाभर के लोगों में विशेष उत्साह था।
कुछ दिनों पहले रूस के सेंट्रल टेलीविजन चैनल (आरटीआर) ने अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों के बारे में डाक्यूमेंटरी फिल्म दिखायी थी, जिसमें उनका सामना कथित रूप से पृथ्वीबाह्य सभ्यता के लोगों यानी एलियंस से हुआ था। इस फिल्म में रूसी यूफोलोजिस्ट व्लादिमीर अजाजा और खगोलविद येवजेनी अर्सुखिन को यह बताते हुए दिखाया गया कि 1969 से 1972 के बीच चंद्र-अभियानों का यूएफआ (अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑबजेक्ट्स या उड़नतश्तिरियों से हुआ था। तो क्या चंद्रमा पर ‘एलियन बेस’ यानी पृथ्वीबाह्य किसी बुद्धिमान सभ्यता का अड्डा है? अपोलो चंद्र अभियान से लेकर अब तक इस बारे में तरह-तरह की चर्चाएं सामने आती रही हैं। कहा जाता है कि चंद्रमा का दूसरा हिस्सा, जो पृथ्वी से नहीं दिखायी देता, वहां एलियंस का आधार शिविर है। अक्सर सवाल उठाया जाता है कि चंद्रमा पर मानव कदम पड़ने के कुछ अभियानों के बाद यह सिलसिला अचानक बंद क्यों कर दिया गया और वहां पर अब तक कोई आधार स्थापित करने का प्रयत्न क्यों नहीं किया गया? हालांकि अमेरिका ने 2020 तक एक बार फिर चांद पर आदमी उतारने का फैसला किया है लेकिन इस मामले में इतने सालों तक उसने क्यों मौन साधे रखा?
चांद पर एलियंस की कथित मौजूदगी को जिन्होंने सबसे ज्यादा हवा दी, वे चांद पर सबसे पहले कदम रखने वाले ‘नासा’ के अंतरिक्षयात्री ही थे, खासकर नील आर्मस्ट्रांग, जिनके मुताबिक चांद पर एलियंस का अड्डा है और उन्होंने मानव को चांद से दूर रहने के संकेत दिए। नौसेना के इंटेलीजेंसी ऑफिसर मिल्टन कूपर के मुताबिक वहां न सिर्फ एलियन मून बेस है बल्कि अमेरिकी नौसेना उसे ‘लूना’ नाम से संबोधित करती है और मानती है कि वहां व्यापक स्तर पर खनन कार्य संचालित है। वहां उनके विशाल यान मौजूद रहते हैं और छोटी-छोटी उड़न तश्तरियों के रूप में कभी-कभी वे पृथ्वी की यात्रा भी करते हैं। तो क्या सचमुच अपोलो 11 के अंतरिक्षयात्रियों का सामना उड़नतश्तरियों से हुआ था? इस बारे में टिमोर्थी गुड की किताब ‘अबव टॉप सीक्रेट’ भी प्रकाश डालती है, जिसके मुताबिक नील आर्मस्ट्रांग और एडविन ‘बज’ एल्डरिन ने 21 जुलाई 1969 को अपोलो-11 के चांद पर उतरने के कुछ ही देर बाद वहां उड़नतश्तरियां देखीं। इस ऐतिहासिक दिन उन्होंने चांद की सतह पर उतरने के बाद वहां खड्ड (क्रेटर) में प्रकाश देखने की बात कही। यह बात इस घटना के टेलीविजन प्रसारण के दौरान सुनी गयी। मिशन कंट्रोल ने इसके बाद और सूचना देने की बात कही लेकिन फिर स्पष्ट कुछ नहीं सुना गया। नासा के पूर्व कर्मचारी आटो बाइंडर ने रेडियो हैम्स में अपने निजी वीएचएफ रिसीविंग फैसिलिटी में नासा का एक वार्तालाप रिकार्ड किया, जिसमें नासा ने पूछा कि वहां क्या है? जवाब में अपोलो से बताया गया-‘दीज बेबीज आर ह्यूज, सर! इनार्मस! आह माय गॉड! यू वोंट बिलीव इट! आएम टेलिंग यू देअर आर अदर स्पेसक्राफ्ट आउट दियर, लाइंड अप ऑन फार साइड ऑफ क्रेटर एज! दे आर ऑन द मून, वॉचिंग अस’(ये आकृतियां बहुत, बहुत विशाल हैं श्रीमान! आप विश्वास नहीं करेंगे! लेकिन यहां क्रेटर के पास पंक्तिबद्ध और भी अंतरिक्षयान हैं! वे हम पर निगरानी रख रहे हैं। कहा जाता है चांद पर एलियंस व उनके यानों के बारे में नासा को पता था लेकिन सारे प्रकरण को गोपनीय रखा गया। अंतरिक्षयात्रियों को इस बारे मे कुछ भी कहने से मना कर दिया गया। चंद्र-अभियान के जितने भी दस्तावेज, वीडियो क्लिपिंग्स आदि थे, उनके बारे में घोषणा कर दी गयी थी कि वे चोरी हो गये हैं। 1979 में मॉरिस चैटलेन, जो कि नासा कम्युनिकेशन सिस्टम के मुखिया थे, ने इस बात की पुष्टि की कि आर्मस्ट्रांग ने चांद के एक क्रेटर पर दो यूएफओ यानी उड़नतश्तरियों को देखने की रिपोर्ट की। चैटलेन ने यह भी बताया-‘नासा को इसकी पूरी जानकारी थी लेकिन अब तक किसी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया।’ इस प्रकरण की सबसे पहले पुष्टि करने वाले सोवियत वैज्ञानिक थे। मास्को यूनिवर्सिटी में भौतिकी और गणित के पूर्व प्रोफेसर डा. व्लादिमीर अजाजा के मुताबिक चांद की सतह पर मॉड्यूल के उतरने के तुरंत बाद ही नील आर्मस्ट्रांग द्वारा इस एनकाउंटर की सूचना मिशन कंट्रोल को प्रेषित कर दी गयी थी। लेकिन यह संदेश पब्लिक द्वारा कभी नहीं सुना गया क्योंकि नासा ने इसे सेंसर कर दिया था। एक अन्य सोवियत वैज्ञानिक डॉ. अलेक्सेंद्र कजानतसेव के मुताबिक बज्ज एल्डरिन ने चांद की सतह पर उतरे मॉड्यूल के भीतर से ही इन उड़नतश्तरियों की रंगीन फोटो उतारी। वे तब तक इन्हें फिल्माते रहे जब तक कि वह और आर्मस्ट्रांग मॉड्यूल से बाहर नहीं आये। डॉ. अजाज का दावा है कि अंतरिक्षयात्रियों के चांद की सतह पर कदम रखने के चंद मिनटों बाद ही उड़नतश्तरियां वहां से उड़ गयीं। मॉरिस चैटलेन ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कई बार अपोलो-11 के रेडियो संदेश बाधित किये गये ताकि यह खबर दुनिया को पता न चले। चैटलेन के मुताबिक ‘सभी अपोलो और जेमिनी उड़ानों का एक दूरी से पीछा किया गया। जब कभी ऐसा हुआ, अंतरिक्षयात्रियों ने इसकी सूचना मिशन कंट्रोल को दी, जिस पर उन्होंने पूरी तरह चुप रहने का आदेश दे दिया। हालांकि नासा एक सिविल एजेंसी है लेकिन इसके ज्यादातर कार्यक्रमों के लिए फंड रक्षा बजट से आता है और इसके ज्यादातर अंतरिक्षयात्री सैन्य सुरक्षा नियमों के तहत आते हैं। वहां की नेशनल सेक्युरिटी एजेंसी न सिर्फ अंतरिक्ष अभियानों बल्कि रेडियो संप्रेषण की भी जांच करती है। कुछ वर्ष पहले एक पत्रिका में नासा द्वारा आयोजित सेमिनार में एक प्रोफेसर, जिसने अपना नाम व्यक्त नहीं किया, की आर्मस्ट्रांग से बातचीत प्रकाशित की थी। इसमें उसने पूछा था कि अपोलो-11 में क्या हुआ। इस पर आर्मस्ट्रांग ने बताया कि यह सब अविश्वसनीय था। ‘हमें इसकी उम्मीद भी थीं। हमें एक तरह से एलियंस से चेतावनी मिली थी, इसीलिए वहां स्पेस स्टेशन अथवा मून सिटी नहीं बनायी जा सकी।’ आर्मस्ट्रांग ने बताया था कि आकार और टेक्नोलॉजी में उनके यान हमारे यानों से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ थे। जब उनसे पूछा गया कि एलियंस के बारे में जानने के बावजूद नासा ने अपोलो-11 के बाद भी अभियान क्यों जारी रखे, इस पर आर्मस्ट्रांग ने बताया था कि उस समय नासा अपने कार्यक्रम के लिए प्रतिबद्ध था और नहीं चाहता था कि पृथ्वी पर इसको लेकर कोई खौफ पैदा हो। आर्मस्ट्रांग ने बताया कि यह पूरी तरह सच्ची घटना है लेकिन उन्होंने इस पर विस्तार में जाने से इनकार दिया सिवाय इसके कि इसे छुपाने में सीआइए का हाथ था।सच जो भी हो, लेकिन यह अबूझ रहस्य ही है कि अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों के चंद्रमा पर और नील आर्मस्ट्रांग के चंद्रसतह पर चलने संबंधित सारी फिल्में गायब हो गयीं और इन उड़ानों के दौरान मिशन कंट्रोल को भेजे गये 700 संदेश भी लापता हो गये। 1970 के आखिर तक यह रिकार्ड पहले अमेरिका के राष्ट्रीय अभिलेखागार में था, बाद में इन्हें नासा के पास आया और फिर गायब ही हो गया। शायद ही कोई इस बात पर विश्वास करेगा कि नासा (बल्कि मानवता) की इस सबसे बड़ी उपलब्धि के दस्तावेज इस तरह क्या कभी गायब हो सकते हैं?
एक पेन ने बचाया था अपोलो 11 अभियान
क्या आप सोच सकते हैं कि एक बॉल टिप वाली कलम किसी अंतरिक्ष अभियान को बचा सकती है। अपोलो 11 अंतरिक्ष यान में बैठकर चांद पर कदम रखने वाले तीन अंतरिक्ष यात्रियों को या तो मौत ले जाती या फिर वे अंतरिक्ष में ही रह जाते, अगर वह बॉल पॉइंट कलम नहीं होती।
नील आर्मस्ट्रॉंग और एडविन ऑल्ड्रिन ने गलती से उस स्विच को तोड़ दिया था जो उन्हें चंद्रमा से वापस धरती पर सफलतापूर्वक लाने के लिए बेहद जरूरी था। लेकिन ऑल्ड्रिन ने चतुराई दिखाते हुए कलम को उस छेद की जगह टिका दिया जहां स्विच था। इससे अंतरिक्ष यान दोबारा चंद्रमा की सतह से उड़ान भरने में कामयाब हो पाया।
एक वृत्तचित्र ने यह खुलासा किया है कि नासा, चंद्रमा अभियान में रूस को पछाड़ना चाहता था क्योंकि रूस अमेरिका से पहले अंतरिक्ष में पहला पुरुष, पहली महिला और जानवर भेजने में कामयाब हो गया था। इसलिए अमेरिका ने अपेक्षा से ज्यादा आशा करके इस अभियान को भेज दिया जो एक बड़े हादसे में तब्दील हो सकता था।
‘द मिरर’ समाचारपत्र ने यहां तक कहा कि उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए अपोलो 11 के तीनों अंतरिक्ष यात्री आर्मस्ट्रॉंग, ऑल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस के मृत्यु की घोषणा कर दी थी। अभी 76 वर्ष के हो चुके ऑल्ड्रिन ने फिल्म निर्माताओं को बताया कि जब स्विच टूटा तो उनका दिल ही बैठ गया था। वह स्विच शायद किसी एक अंतरिक्ष यात्री के भारी अंतरिक्ष पहनावे से लगकर टूट गया होगा।
पृथ्वी से चांद पर अपोलो-11 के रूप में पहला मानव मिशन भेजने का श्रेय अमेरिका के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र नासा को ही जाता है। 16 जुलाई 1969 को भेजे गए इस मिशन के कमांडर नील एल्डेन आर्मस्ट्रांग थे। वहीं, कमान माड्यूल पायलट माइकल कोलिन्स और लूनर माड्यूल पायलट एडविन यूजेन बज एल्ड्रिन जूनियर थे। जुलाई 1969 की 16 तारीख को कैनेडी स्पेस सेंटर से स्थानीय समयानुसार दोपहर एक बजकर 32 मिनट पर अपोलो-11 का प्रक्षेपण किया गया। यह 12 मिनट बाद अपनी कक्षा में पहुंचा। चंद दिन बाद 20 जुलाई को आर्मस्ट्रांग चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बन गए। कनफेडरेशन आफ इंडियन एच्ेच्योर एस्ट्रोनामर्स के उपाध्यक्ष नीलेश वायडा ने कहा कि नासा के अंतरिक्ष यान अपोलो-11 का चांद के मिशन पर जाना और वहां आर्मस्ट्रांग का कदम रखना खगोल विज्ञान के क्षेत्र में पिछली सदी की सबसे बड़ी और उल्लेखनीय उपलब्धि मानी जाती है। वायडा ने कहा कि निश्चित तौर पर इस मिशन से दूसरे देशों के कई अंतरिक्ष अभियानों को प्रेरणा मिली है। अपोलो-11 ने अंतरिक्ष और विशेषकर चांद में खगोलविदें की ज्यादा दिलचस्पी जगाने का मार्ग प्रशस्त किया था। उन्होंने कहा कि हमारे लिए गर्व की बात यह है कि नासा के चांद पर भेजे गए इस अभियान से कई भारतीय जुड़े हुए थे। मिशन में कोई एक हजार सदस्य शामिल थे जिनमें भारतीयों की भी भागीदारी थी। दरअसल चांद पर अभियान भेजने की परियोजना अमेरिकी राष्ट्रपति रहे जान एफ कैनेडी का सपना थी। 25 मई 1961 को अमेरिकी सदन के संयुक्त सत्र में उन्होंने कहा था कि मेरा मानना है कि इस राष्ट्र को यह दशक खत्म होने से पहले चांद पर मानव को उतारने और उसे सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाने का उद्देश्य हासिल करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए। अपोलो-11 मिशन में खास बात यह थी कि इससे जुड़े सभी सदस्य पहले भी अंतरिक्ष में जा चुके थे। 16 जुलाई 1969 को पृथ्वी से प्रक्षेपण के बाद अपोलो-11 ने 19 जुलाई को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। इसके बाद चंद्रमा के श्क्रेटर सेबिन डीश् से दक्षिण पश्चिम में करीब 20 किलोमीटर दूरी पर एक स्थान यान उतारने के लिए निर्धारित किया गया। यह स्थान इसलिए चुना गया क्योंकि रेंजर-8 और सर्वेयर-5 सर्वेक्षण यानों ने इस क्षेत्र को तुलनात्मक रूप से सपाट पाया था।
20 जुलाई 1969 को अपोलो-11 का एक हिस्सा (ईगल) कमांड माड्यूल श्कोलंबियाश् से अलग हो गया। आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन ने पाया कि वे लक्षित स्थान से कुछ दूरी पर हैं। ह्यूंस्टन स्थित अभियान नियंत्रण केंद्र ने यह संदेश भेजा कि अगर वे लक्ष्य से कुछ दूर भी हैं तब भी वे सुरक्षित हैं। इसके बाद उनका यान 440 मीटर व्यास वाले श्वेस्ट क्रेटरश् से पूर्वोत्तर में महज 25 सैकंड का ईंधन शेष रहते उतरा। इसके बाद आर्मस्ट्रांग ने कहा कि ईगल उतर चुका है। चांद की सतह को पाउडर की तरह करार देने के बाद आर्मस्ट्रांग ईगल से बाहर निकले और बाहरी दुनिया में कदम रखने वाले पहले मानव बन गए। उन्होंने कहा कि यह मानव के लिए एक छोटा कदम, पर मानव जाति के लिए एक बड़ी छलांग है। वैसे, चांद पर अपोलो-11 और उसके अंतरिक्ष यात्रियों के उतरने के बाद यह रिपोर्ट भी आईं कि अभियान झूठा था। इसके पीछे दलीलें दी गईं कि चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों की जो तस्वीरें खीचीं गईं उनमें प्रकाश के विभिन्न स्रोत नजर आ रहे थे। यह भी कहा गया कि जब चांद का अपना कोई मौसम नहीं है तो अमेरिका का ध्वज कैसे लहरा रहा था तथा वहां गुरुत्वाकर्षण बल नहीं होने के चलते आर्मस्ट्रांग के कदम रखने पर वहां इतना सटीक निशान कैसे बन गया। इस पर खगोलविद वायडा कहते हैं कि मैं इन दलीलों को दमदार नहीं मानता। अमेरिका में चलन है कि कोई भी बड़ी घटना होने पर उसे गलत साबित करती रिपोर्ट आने लग जाती हैं। अपोलो-11 के चांद पर उतरने में हमें कोई संदेह नजर नहीं आता।