राजकुमारी दुबे जिन्हें इनके पहले नाम “राजकुमारी” के नाम से ज्यादा बेहतर जाना जाता है, एक भारतीय पार्श्व गायिका थी, जो कई हिन्दी फिल्मों में 1930 से 1940 के दशक तक काम की थी। इन्हें इनके बावरे नैन (1950) के गाने “सुन बैरी बालम सच बोल”, महल (1949) के गाने “घबराना के जो हम सर को टकरायन” और पाकीज़ा (1972) के गाने “नजरिया की मारी के कारण काफी जानी जाती हैं।
मात्र 11 वर्ष की आयु में ही इन्होंने हिन्दी सिनेमा से जुड़ गई थी। एक बाल कलाकार के रूप में इन्होंने राधे श्याम और ज़ुल्मी हंस (1932) में काम किया। इसके बाद फिल्मों में आने से पहले, कुछ सालों तक ये थियेटर में काम करने लगी और प्रकाश पिक्चर्स में अभिनेत्री और गायिका के रूप में जुड़ गईं। उस समय के बड़ी बड़ी गायिकाओं में सबसे अधिक उच्च आवाज इनकी थी। अगले दो दशकों में इन्होंने
इनका जन्म 04 दिसम्बर 1924 को वाराणसी, ब्रिटिश इंडिया में हुआ था। इन्हें गाना गाने की कला सीखने का कभी मौका ही नहीं मिला, लेकिन इनका परिवार हमेशा ही इनके इस कला हेतु प्रोत्साहित और समर्थन करता था। इन्होंने 1934 में जब इनकी आयु मात्र दस वर्ष थी, इनका पहला गाना रिकॉर्ड किया गया था। इन्होंने अपने जीवन में बहुत वक्त बाद बनारस के वीके दुबे से शादी की। इनके पति ज़्यादातर समय बनारस में ही बिताते थे, क्योंकि वहीं इनकी अपनी दुकान थी। जबकि राजकुमारी बॉम्बे में रहने लगी थी। बाद में इनके पति भी बॉम्बे में आ गए।
करियर
इन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1934 में एचएमवी के लिए गाना गा कर की थी। इस समय इनकी आयु मात्र दस वर्ष ही थी। इस गाने के रिकॉर्ड होने के बाद इन्होंने स्टेज में एक कलाकार के रूप में काम करना शुरू किया था। प्रकाश पिक्चर्स के विजय भट्ट और शंकर भट्ट ने उन्हें एक स्टेज शो करते हुए देखा और उन्हें उनकी आवाज बहुत अच्छी लगी। वे चाहते थे कि राजकुमारी स्टेज शो बंद कर गाने में ध्यान दे, क्योंकि उस समय माइक नहीं होते थे, और आवाज दर्शकों तक पहुंचाने के लिए बहुत ज़ोर से बोलना पड़ता था, जिससे उनकी आवाज खराब हो सकती थी। इस कारण राजकुमारी ने थियेटर में काम करना छोड़ दिया और प्रकाश पिक्चर्स में अभिनेत्री और गायिका के रूप में काम करने लगीं।1952 में राजकुमारी ने ओ. पी. नैयर के साथ भी कई गीत गाए। यह अलग बात है कि उनका नाम भले ही राजकुमारी था, लेकिन उनका अंत मुफलिसी में हुआ। इस दौरान उन्होंने गायिका और अभिनेत्री के रूप में जो काम बॉलीवुड में किया, वह शायद ही कभी भुला लोग पाएँ। 1955 में गुमनामी की ओर बढ़ती सरस्वती देवी को एक ही गीत ‘इनाम’ फिल्म में मिला। ये भक्ति गीत “तू ही मारे, तू ही तारे, तू ही बिगड़ी बार संवारे” राजकुमारी ने मोहनतारा के साथ गाया था। गीत तो अच्छा है पर दोनों गायिकाओं और संगीतकारा की बिगड़ी संवार नहीं पाया। 1956 में चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी की बाल फिल्म ‘जलदीप’ किदार शर्मा ने निर्देशित की थी। ये फिल्म 1957 में वेनिस में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वोत्तम बाल फिल्म का पुरस्कार लाई थी। राजकुमारी का इसमें कम से कम एक गीत “देखो देखो पंछी देखी ये फुलवारी कैसी” गाया था। ये गीत वक्त के साथ खो गए। धीरे-धीरे नए ज़माने ने राजकुमारी से मुख मोड़ लिया था और राजकुमारी उसके बाद वर्षों तक गुमनामी की ज़िन्दगी में चली गईं।
नब्बे के दशक के अन्त में सारेगामा पर राजकुमारी दुबे को काफ़ी सराहा गया था। उनका साक्षात्कार कमर जलालाबादी की सुपुत्री स्वर जलालाबादी ने लिया था। राजकुमारी गुमनामी में जी तो रही थीं, पर कार्यक्रमों में उनके गायन ने नई पीढ़ी के कई लोगों को उनके बारे में अवगत करा दिया था। वक्त ने उनसे उनकी रोज़ी तो छीन ली थी, पर उनकी आवाज़ की मिठास नहीं छीन सका था। 18 मार्च, 2000 को इस महान् गायिका ने हमेशा के लिए आँखें मूँद लीं। उनके जनाज़े में फिल्म इन्डस्ट्री से सिर्फ गायक सोनू निगम मौजूद थे।एजेन्सी।