जयंती पर विशेष
रास बिहारी घोष राजनीतिज्ञ जानेमाने अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वह गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनके लिए भारत में ब्रिटिश शासन एक आशीर्वाद था और उन्हें ब्रिटेन पर काफ़ी भरोसा था। 1906 में कलकत्ता में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में रास बिहारी घोष स्वागत समिति के अध्यक्ष बने थे। इसके अगले ही वर्ष उन्होंने सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।
रास बिहारी घोष का जन्म पश्चिम बंगाल के बर्दवान में 23 दिसंबर, 1845 को हुआ था। कुछ समय के लिए स्थानीय पाठशाला में पढ़ने के बाद उन्होंने बर्दवान राज कॉलेजिएट स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। बांकुड़ा से प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में प्रवेश लिया। उन्होंने प्रथम श्रेणी में एम.ए. अंग्रेज़ी की परीक्षा पास की। 1871 में उन्होंने क़ानून की शिक्षा ग्रहण की और फिर 1884 में उन्हें डॉक्टर ऑफ़ लॉ की मानद उपाधि से नवाजा गया। रास बिहारी घोष की मृत्यु- 1921में हुई थी ।
रामवृक्ष बेनीपुरी
23 दिसम्बर, 1899., मुजफ्फरपुर, 9 सितम्बर, 1968, प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार और नाटककार थे। ये एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी, साहित्यकार, पत्रकार और संपादक के रूप में भी अविस्मणीय हैं। बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य के ‘शुक्लोत्तर युग’ के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। ये एक सच्चे देश भक्त और क्रांतिकारी भी थे। इन्होंने ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ में आठ वर्ष जेल में बिताये। हिन्दी साहित्य के पत्रकार होने के साथ ही इन्होंने कई समाचार पत्रों, जैसे- ‘युवक’ (1929) आदि भी निकाले। इसके अलावा कई राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम संबंधी कार्यों में भी संलग्न रहे।
पुण्य तिथि पर विशेष
स्वामी श्रद्धानन्द
का जन्म 22 फ़रवरी, 1856. को पंजाब प्रान्त के जालंधर ज़िले में तलवान में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला नानकचन्द था, जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा शासित ‘यूनाइटेड प्रोविन्स’ (अब उत्तर प्रदेश) में पुलिस अधिकारी के पद पर नियुक्त थे। श्रद्धानन्द जी के बचपन का नाम ‘बृहस्पति’ रखा गया था, फिर बाद में वे ‘मुंशीराम’ नाम से भी पुकारे गए।
वे ऐसे महान् राष्ट्रभक्त सन्न्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था। स्वामी श्रद्धानंद ने स्वराज्य हासिल करने, देश को अंग्रेज़ों की दासता से छुटकारा दिलाने, दलितों को उनका अधिकार दिलाने और पश्चिमी शिक्षा की जगह वैदिक शिक्षा प्रणाली का प्रबंध करने जैसे अनेक कार्य किए थे।स्वामी श्रद्धानन्द की मृत्यु- 23 दिसम्बर, 1926, दिल्ली में हुई थी।
पामुलापति वेंकट नरसिंह राव
प्रधानमंत्री बनने में भाग्य का बहुत बड़ा हाथ रहा। 29 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। ऐसे में सहानुभूति की लहर के कारण कांग्रेस को निश्चय ही लाभ प्राप्त हुआ। 1991 के आम चुनाव दो चरणों में हुए। प्रथम चरण के चुनाव राजीव गांधी की हत्या से पूर्व हुए थे और द्वितीय चरण के चुनाव उनकी हत्या के बाद। प्रथम चरण की तुलना में द्वितीय चरण के चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा। इसका प्रमुख कारण राजीव गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर थी। इस चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त हुआ, लेकिन वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। कांग्रेस ने 232 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। फिर नरसिम्हा राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व प्रदान किया गया। ऐसे में उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश किया। सरकार अल्पमत में थी, लेकिन कांग्रेस ने बहुमत साबित करने के लायक़ सांसद जुटा लिए और कांग्रेस सरकार ने पाँच वर्ष का अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूर्ण किया।
पी. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून, 1921 को आंध्र प्रदेश के वांगरा ग्राम करीम नागर में हुआ था। पूरा नाम परबमुल पार्थी वेंकट नरसिम्हा राव था। इनके पिता का नाम पी. रंगा था। नरसिम्हा राव ने उस्मानिया विश्वविद्यालय तथा नागपुर और मुम्बई विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने विधि संकाय में स्नातक तथा स्नातकोत्तर की उपाधियाँ प्राप्त कीं। इनकी पत्नी का निधन इनके जीवन काल में ही हो गया था। वह तीन पुत्रों तथा चार पुत्रियों के पिता बने थे। पी. वी. नरसिम्हा राव विभिन्न अभिरुचियों वाले इंसान थे। वह संगीत, सिनेमा और थियेटर अत्यन्त पसन्द करते थे। उनको भारतीय संस्कृति और दर्शन में काफ़ी रुचि थी। इन्हें काल्पनिक लेखन भी पसन्द था। वह प्राय: राजनीतिक समीक्षाएँ भी करते थे। नरसिम्हा राव एक अच्छे भाषा विद्वानी भी थे। उन्होंने तेलुगु और हिन्दी में कविताएँ भी लिखी थीं। समग्र रूप से इन्हें साहित्य में भी काफ़ी रुचि थी। उन्होंने तेलुगु उपन्यास का हिन्दी में तथा मराठी भाषा की कृतियों का अनुवाद तेलुगु में किया था।
नरसिम्हा राव में कई प्रकार की प्रतिभाएँ थीं। उन्होंने छद्म नाम से कई कृतियाँ लिखीं। अमेरिकन विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया और पश्चिमी जर्मनी में राजनीति एवं राजनीतिक सम्बन्धों को सराहनीय ढंग से उदघाटित किया। नरसिम्हा राव ने द्विमासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। मानव अधिकारों से सम्बन्धित इस पत्रिका का नाम ‘काकतिया’ था। ऐसा माना जाता है कि इन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की 17 भाषाओं का ज्ञान था तथा भाषाएँ सीखने का जुनून था। वह स्पेनिश और फ़्राँसीसी भाषाएँ भी बोल व लिख सकते थे।
नरसिम्हा राव का स्वास्थ्य 2004 में ख़राब रहने लगा था। उन्हें 9 दिसम्बर को एम्स में दाख़िल कराया गया। इन्हें साँस लेने में कठिनाई हो रही थी। 23 दिसम्बर, 2004 को शरीर त्याग दिया। आर्थिक सुधारों के लिए इन्हें सदैव याद रखा जाएगा। एजेंसी