स्वप्निल संसार । कर्ण सिंह राजनेता, लेखक और कूटनीतिज्ञ हैं। 1949 में उनके पिता (महाराजा हरि सिंह) ने उन्हें राजप्रतिनिधि नियुक्त कर दिया। इसके पश्चात अगले 18 वर्षों के दौरान वे राजप्रतिनिधि, निर्वाचित सदर-ए-रियासत और राज्यपाल के पदों पर आसीन रहे। कर्ण सिंह का जन्म 9 मार्च, 1931 को फ्रांस में हुआ। जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और महारानी तारा देवी के उत्तराधिकारी (युवराज) के रूप में जन्मे डॉ. कर्ण सिंह ने 18 वर्ष की उम्र में ही राजनीति में प्रवेश कर लिया था। कर्ण सिंह ने देहरादून स्थित दून स्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण की और इसके बाद जम्मू और कश्मीर विश्वविद्यालय के प्रताप सिंह कॉलेज से स्नातक उपाधि प्राप्त की। वे इसी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रह चुके हैं। 1957 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीतिक शास्त्र में एम.ए. उपाधि हासिल की। उन्होंने अरविन्द की राजनीतिक विचारधारा पर शोध प्रबन्ध लिख कर दिल्ली विश्वविद्यालय से डाक्टरेट उपाधि (पी.एच.डी) का अलंकरण प्राप्त किया। 5 मार्च, 1950 में डॉ. कर्ण सिंह ने राजकुमारी यशो राज्यलक्ष्मी से विवाह किया जो नेपाल के अंतिम राणा प्रधानमंत्री श्मोहन शमशेर जंग बहादुर राणा की पोती थी। इनके एक पुत्री ज्योत्सना और दो पुत्र विक्रमादित्य व अजातशत्रु हैं।
डॉ. कर्ण सिंह को 1967 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। इसके तुरन्त बाद कर्ण सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में जम्मू और कश्मीर के उधमपुर संसदीय क्षेत्र से भारी बहुमत से जीतकर लोकसभा के सदस्य बनकर संसद में प्रवेश हुए। इसी क्षेत्र से वे 1971, 1977 और 1980 में दोबारा चुने गए। डॉ. कर्ण सिंह को पहले पर्यटन और नगर विमानन मंत्रालय सौंपा गया। वे 6 वर्ष तक इस मंत्रालय में रहे, जहाँ उन्होंने अपनी सक्रियता की अमिट छाप छोड़ी। 1973 में वे स्वास्थ्य और परिवार नियोजन मंत्री बने। 1976 में जब उन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की तो परिवार नियोजन का विषय एक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के रूप में उभरा। 1976 में कर्ण सिंह शिक्षा और संस्कृति मंत्री बने। डॉ. कर्ण सिंह देशी रजवाड़े के अकेले ऐसे पूर्व शासक थे, जिन्होंने स्वेच्छा से प्रिवी पर्स का त्याग किया। उन्होंने अपनी सारी राशि अपने माता-पिता के नाम पर भारत में मानव सेवा के लिए स्थापित हरितारा धर्मार्थ न्यास को दे दी। उन्होंने जम्मू के अपने अमर महल (राजभवन) को संग्रहालय एवं पुस्तकालय में परिवर्तित कर दिया। इसमें पहाड़ी लघुचित्रों और आधुनिक भारतीय कला का अमूल्य संग्रह तथा 20 हजार अधिक पुस्तकों का निजी संग्रह है। डॉ. कर्ण सिंह धर्मार्थ न्यास के अन्तर्गत चल रहे सौ से अधिक हिन्दू तीर्थ-स्थलों तथा मंदिरों सहित जम्मू और कश्मीर में अन्य कई न्यासों का काम-काज भी देखते हैं। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञान, संस्कृति और चेतना केंद्र की स्थापना की है। यह केंद्र सृजनात्मक दृष्टिकोण के महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभर रहा है। कर्ण सिंह कई वर्षों तक जम्मू और कश्मीर विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुल अधिपति भी रहे हैं। कर्ण सिंह केंद्रीय संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष, भारतीय लेखक संघ, भारतीय राष्ट्र मण्डल सोसायटी और दिल्ली संगीत सोसायटी के सभापति रहे हैं कर्ण सिंह नेहरू जी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष, टेम्पल ऑफ अंडरस्टेंडिंग (एक प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय अन्त र्विश्वास संगठन) के अध्यक्ष, भारत पर्यावरण और विकास जनायोग के अध्यक्ष, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर और विराट हिन्दू समाज के सभापति हैं। कर्ण सिंह कई वर्षों तक भारतीय वन्यजीव बोर्ड के अध्यक्ष और अत्यधिक सफल-प्रोजेक्ट टाइगर -के अध्यक्ष रहने के कारण उसके आजीवन संरक्षक कर्ण सिंह को अनेक मानद उपाधियों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और सोका विश्वविद्यालय, तोक्यो से प्राप्त डाक्टरेट की मानद उपाधियाँ उल्लेखनीय हैं।
1999 में कर्ण सिंह ने लखनऊ लोक सभा सीट से चुनाव लड़ा और हर गए थे -उनके सामने भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता अटल बिहारी बाजपेइ । 2005 में भारत सरकार ने कर्ण सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में अपनी गहन अन्तर्दृष्टि और पश्चिमी साहित्य और सभ्यता की विस्तृत जानकारी के होने के कारण कर्ण सिंह को भारत और विदेशों में एक विशिष्ट विचारक और नेता के रूप में पहचान हैं।संयुक्त राज्य अमरीका में भारतीय राजदूत के रूप में उनका कार्यकाल हालांकि कम ही रहा है, परंतु इस दौरान उन्हें दोनों ही देशों में व्यापक और अत्यधिक अनुकूल मीडिया कवरेज मिली। डॉ. कर्ण सिंह ने राजनीति विज्ञान पर अनेक पुस्तकें, दार्शनिक निबन्ध, यात्रा-विवरण और कविताएँ अंग्रेजी में लिखी हैं। उनके महत्त्वपूर्ण संग्रह वन मैन्स वर्ल्ड और हिन्दूवाद पर लिखे निबंधों की काफी सराहना हुई। उन्होंने अपनी मातृभाषा डोगरी में कुछ भक्तिपूर्ण गीतों की रचना भी की है।एजेन्सी।