मुबारक साल गिरह- ‘स्वप्निल संसार’ 26 अप्रैल 1948 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्मी मौसमी चटर्जी ने अपने अभिनय जीवन की शुरूआत 1967 में प्रदर्शित बांग्ला फिल्म बालिका बधू से की. फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी. बॉलीवुड में मौसमी चटर्जी ने अपने कैरियर की शुरूआत 1972 में प्रदर्शित फिल्म अनुराग से की. इस फिल्म में मौसमी के अपोजिट विनोद मेहरा थे. शक्ति सामंत के निर्देशन में बनी अनुराग में मौसमी चटर्जी ने अंधी लड़की का किरदार निभाया था. कैरियर की शुरूआत में इस तरह का किरदार किसी भी नयी अभिनेत्री के लिये जोखिम भरा हो सकता था, लेकिन मौसमी ने अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस फिल्म के लिये मौसमी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित किया गया. 1974 में मौसमी चटर्जी ने रोटी कपड़ा और मकान और बेनाम सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया. रोटी कपड़ा और मकान के लिये मौसमी चटर्जी को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार का नामांकन मिला. 1976 में मौसमी चटजी की एक और सुपरहिट फिल्म सबसे बड़ा रूपया प्रदर्शित हुयी. इस फिल्म में एक बार फिर से मौसमी चटर्जी और विनोद मेहरा की जोड़ी काफी पसंद की गयी. मौसमी चटर्जी के कैरियर में उनकी जोड़ी सबसे अधिक विनोद मेहरा के साथ पसंद की गयी. इसके अलावा मौसमी चटर्जी ने संजीव कुमार, जीतेन्द्र, राजेश खन्ना, शशि कपूर और अमिताभ बच्चन जैसे सुपर सितारों के साथ भी काम किया. मौसमी चटर्जी ने हिंदी फिल्मों के अलावा कई बंगला फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया है.
मौसमी चटर्जी की कुछ अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में कच्चे धागे, जहरीला इंसान, स्वर्ग नरक, फूल खिले है गुलशन गुलशन, मांग भरो सजना, ज्योति बने ज्वाला, दासी, अंगूर, घर एक मंदिर, घायल, संतान, जल्लाद, करीब, जिंदगी रॉक्स आदि शामिल है. 14 साल की उम्र में इंदिरा बालिका वधू बन गईं. लेकिन उन्हें अपना नाम बदलना पड़ा. तरुण मजूमदार ने कहा था कि इंदिरा से ज्यादा उन पर मौसमी नाम सूट करेगा और इस तरह मौसमी चटर्जी फिल्मी दुनिया में आ गई पांचवीं कक्षा में पढ़ती थीं इंदिरा चटर्जी. कंधे पर बस्ता टांगे हुए, लंबी- लंबी दो चोटियां, खिलखिलाती सहेलियों के साथ स्कूल जाते हुए. मासूमियत भरी मस्ती और हंसने पर बढ़ा हुआ दांत दिखना उन्हें और भी मासूम बना देता था. मशहूर बंगाली फिल्म निर्देशक तरुण मजूमदार रोज इंदिरा को देखते. उनकी निगाह में इंदिरा की मासूमियत इस कदर बस गई कि उन्होंने सोच लिया कि इंदिरा ही उनकी फिल्म में बालिका वधू बनेंगी. वे अपनी नई फिल्म शुरू करने की तैयारी में थे. नायिका के रोल के लिए उन्हें स्कूली लड़की की तलाश थी, जो देखने में मासूम लगे और चंचल भी. तरुण मजूमदार को लगा कि यह छात्रा उस रोल के लिए सही रहेगी. उन्होंने जब इंदिरा से पूछा कि मेरी फिल्म में काम करोगी, तब बड़ी मासूमियत से उन्होंने कह दिया, ‘हां..करूंगी, कब से काम शुरू करना है? क्या आज से ही करना होगा? लेकिन मैं स्कूल से छुट्टी नहीं ले सकती. मुझे बाबा (पिताजी) से पूछना पड़ेगा.’सेना में नौकरी करने वाले सख्त स्वभाव वाले इंदिरा के पिता प्रांतोष चट्टोपाध्याय ने साफ मना कर दिया, ‘सवाल ही नहीं उठता. मेरी बेटी पढ़ेगी और खूब पढ़ेगी.’ तब तरुण मजूमदार ने बाबा को मनाने की जिम्मेदारी अपनी पत्नी संध्या राय को सौंपी जो उस समय बंगाल की लोकप्रिय कलाकार थीं. संध्या ने जैसे-तैसे बाबा को मना लिया और इस तरह चैदह साल की उम्र में इंदिरा बालिका वधू बन गई. लेकिन उन्हें अपना नाम बदलना पड़ा. तरुण मजूमदार ने कहा था कि इंदिरा से ज्यादा उन पर मौसमी नाम सूट करेगा और इस तरह मौसमी चटर्जी फिल्मी दुनिया में आ गई.मौसमी जितनी कम उम्र में परदे पर आई, उतनी ही कम उम्र में उनका विवाह भी हो गया. संयोग से प्रसिद्ध गायक हेमंत कुमार ने अपने बेटे रीतेश के लिए मौसमी का हाथ मांग लिया. विवाह कोलकाता में हुआ लेकिन स्वागत समारोह मुंबई में आयोजित हुआ.जिमखाना क्लब में पार्टी दी गई. फिल्मों के काफी लोग जुटे. सभी को उस युवती को देखने की उत्सुकता थी, जिन्होंने अपनी पहली ही फिल्म के जरिए पूरे बंगाल का दिल जीत लिया था.कोलकाता से मुंबई आने पर हेमंत कुमार ने मौसमी से कहा, ‘तुममें अच्छे कलाकार के सभी गुण मौजूद हैं. तुम्हारा चेहरा भी सिल्वर स्क्रीन के लिए एकदम सही है. तुम प्रतिभावान हो, फिल्मों में अभिनय जारी रखो.’उस समय तक कई जाने-माने निर्देशक पटकथा लेकर हेमंत कुमार के पास आते थे. तब उन्हें शक्ति सामंत की फिल्म ‘अनुराग’ की कहानी बहुत पसंद आई और 1972 में उन्होंने ‘अनुराग’ में काम करने के लिए शक्ति सामंत को हामी भर दी. इसमें उनके अपोजिट विनोद मेहरा थे लेकिन फिल्म में उस जमाने के सुपर स्टार राजेश खन्ना की भी खास भूमिका थी. ‘अनुराग’ में मौसमी ने अंधी लड़की की भूमिका इतने सशक्त ढंग से निभाई कि उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार उन्हें दिया गया. इस फिल्म के सभी गाने खूब लोकप्रिय हुए थे. इस तरह यह सिलसिला चल निकला.उसके बाद मौसमी ने कई प्रमुख फिल्मों में उस दौर के सभी बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया. ‘रोटी, कपड़ा और मकान’, ‘उधार की जिंदगी’, ‘मंजिल’, ‘बेनाम’, ‘जहरीले इंसान’, ‘हमशक्ल’, ‘सबसे बड़ा रुपइया’ और ‘स्वयंवर’ उल्लेखनीय फिल्में हैं. लेकिन 1982 में गुलजार की फिल्म ‘अंगूर’ ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की थी. यों तो फिल्म की सफलता का पूरा श्रेय संजीव कुमार और देवेन वर्मा को मिला था लेकिन मौसमी चटर्जी ‘अंगूर’ में काम करके बेहद खुश हुई थीं. 2010 में अर्पणा सेन अपनी फिल्म ‘द जैपनीज वाइफ’ में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका दी थी. मौसमी की बड़ी बेटी मेघा को भी उनकी ही तरह तरुण मजूमदार बंगाली फिल्म ‘भालोबासेर अनेक’ नाम से फिल्मी दुनिया में पदार्पण करवा चुके हैं. यह जानना दिलचस्प होगा कि इस फिल्म में मौसमी ने मेघा की चचेरी बहन की भूमिका अदा की है. उनकी छोटी बेटी पायल भी कैमरे की बारीकियां समझने लगी हैं. हाल ही में मौसमी चटर्जी को बंगाल सिने आर्टिस्ट द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया.बॉलीवुड में मौसमी चटर्जी को एक ऐसी अभिनेत्री के तौर पर शुमार किया जाता है, जिन्होंने 70 और 80 के दशक में अपनी रूमानी अदाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाये रखा. इनको आखिरी बार 2015 की फिल्म पीकू में देखा गया था ।