मोदी सरकार देश भर के समाचार पत्र, पत्रिकाओ को बन्द करने पर उतारू ——-
संघ के इशारे पर मोदी सरकार देश के विभिन्न भाषाओ मे प्रकाशित होने वाले लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओ पर जन विरोधी, संघीयता विरोधी कार्पोरेट परस्त वस्तु एवं सेवा कर (जी एस टी )जिसे मोदी सरकार ने 1 जुलाई 2017 से थोप कर देश को तबाही के कगार पर खड़ा कर दिया है । अपनी लेखनी की स्वतंत्रता के लिए मशहूर देश की विभिन्न भाषाओ में छपने वाले पत्र पत्रिकाओ पर भारत के इतिहास में पहली बार मोदी सरकार ने टैक्स लगाकर उन्हे बन्द करने का प्रयास कर रही है जो सफल नही होगा । भारत की आजादी में स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज बुलंद कर देश को आजाद कराने में महती भूमिका निभाई, तथा संघ के चाल चरित्र को जनता के सामने बेनकाब किया था जबकि देश के बड़े समाचार पत्र अंग्रेजो की गुलामी करते थे तभी से यह संगठन देश में प्रकाशित होने वाले लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओ की स्वतंत्र लेखनी को दबाने के लिए ही संघ ने ‘पांचजन्य ‘ जैसे समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया था । जो एक सावंत वादी विचार धारा का पोशक है लेकिन इस के बाद भी लघु एंव मध्यम समाचार पत्र प्रकाशित होते रहे । लघु समाचार पत्रो को पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के काय॔ काल में भी इस संगठन ने लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो पर अंकुश लगाने का प्रयास किया था लेकिन समाचार पत्रो के भारी विरोध के चलते सफल नही हुए थे । 2014 के संसदीय चुनाव मे प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया इलैक्ट्रिक मीडिया के बड़े सम॔थन के बाद भी संघ के प्रभाव में आकर जो स्वतंत्रता आंदोलन की टीस, भूल नही पाये थे अब मौका मिलते ही लघु समाचार पत्रो को मिटाने पर उतारू है । बिना पी आई वी एक्ट में संशोधन और बिना गजट किए विज्ञापन पालिसी 2016 लाकर समाचार पत्रो की ग्रेडिंग शुरू कर दी तथा ऐसे तमाम मन माने ढंग से बिन्दु जोड़ दिए जिनका पालन करना मुश्किल था फलस्वरूप देश के लग भग 70% समाचार पत्रो के विज्ञापन बंद हो गए । इसके विरोध में दिल्ली से लेकर प्रदेश की राजधानियों पर विरोध हुए लेकिन हठधर्मी मोदी सरकार और उनके गुलाम अधिकारियो ने आंदोलन रत पत्रकारो / प्रकासको की न्यायोचित बात नही सुनी तो इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में पी आई एल दाखिल की गई जिसमें चीफ जस्टिस दीपक कुमार मिश्रा की बेंच ने भारत सरकार को नोटिस जारी कर दिया है लेकिन भारत सरकार इस गंभीर मामले की सुनवाई नही होने दे रही है ।जब यह सरकार महात्मा गांधी जैसे महान व्यक्ति की जयंती, सहित राष्ट्रीय पव॔ 26 जनवरी 15 अगस्त के विज्ञापन बंद कर सकती है जिसकी कीमत मात्र 500 से 1000 रूपये होती थी और अपने प्रचार के लिए बजट में 1153 करोड़ रुपए का बजट पास कर लेती है यह कितना श॔म सार करने वाली बात है ।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देशो में आज भी लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो पर किसी भी प्रकार का टैक्स नही है तथा उन्हे आजादी दे रखी है जबकि विकास का ढिंढोरा पीटने वाली मोदी सरकार समाचार पत्रो का गला दबाकर उन्हे बन्द करना चाहती है। और दुसरी तरफ कार्पोरेट घरानो की मीडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है जो सिर्फ व सिर्फ पैसा व सत्ता के लिए है ।
मोदी सरकार का विरोध पुरे देश में लघु एवं मीडियम समाचार पत्रो ने शुरू कर दिया है । मोदी सरकार ने तो देश की एक बड़ी आबादी को रोजगार मुहैया कराने वाले लघु, कुटीर उद्योगो को पहले ही बंदी के कगार पर खड़ा कर दिया है और अब लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो को बन्द कराने का प्रयास कर रहे है। नोटबंदी और इसके बाद जी एस टी दोनो का मकसद कार्पोरेट घरानो के हाथ में सम्पति का विकेन्द्री करण है । जो संघ की पुरानी सोच है /: नरेश दीक्षित संपादक समर विचार