मदन मोहन हिन्दी फि़ल्मों के प्रसिद्ध 1950, 1960, और 1970 के दशक के बॉलीवुड फि़ल्म संगीत निर्देशक थे। इनका पूरा नाम मदन मोहन कोहली था। उन्हें विशेष रूप से फि़ल्म उद्योग में गज़लों के लिए याद किया जाता है।मदन मोहन का जन्म 25 जून 1924 बगदाद,( इराक) में हुआ था। जहाँ उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस के साथ एकाउंटेंट जनरल के रूप में काम कर रहे थे, मध्य पूर्व में जन्मे मदन मोहन ने अपने जीवन के पहले पाँच साल यहाँ बिताए। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल फि़ल्म व्यवसाय से जुड़े थे और बाम्बे टाकीज और फि़ल्मीस्तान जैसे बड़े फि़ल्म स्टूडियो में साझीदार थे।
घर में फि़ल्मी माहौल होने के कारण मदन मोहन भी फि़ल्मों में काम कर बड़ा नाम करना चाहते थे लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला ले लिया और देहरादून में नौकरी शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद उनका तबादला दिल्ली में हो गया। लेकिन कुछ समय के बाद उनका मन सेना की नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ लखनऊ आ गये। लखनऊ में मदन मोहन आकाशवाणी के लिये काम करने लगे। आकाशवाणी में उनकी मुलाकात संगीत जगत से जुड़े उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ, उस्ताद अली अकबर ख़ाँ, बेगम अख़्तर और तलत महमूद जैसी जानी मानी हस्तियों से हुई। इन हस्तियों से मुलाकात के बाद मदन मोहन काफ़ी प्रभावित हुये और उनका रूझान संगीत की ओर हो गया। अपने सपनों को नया रूप देने के लिये मदन मोहन लखनऊ से बम्बई अब मुंबई आ गये।
बम्बई अब मुंबई आने के बाद मदन मोहन की मुलाकात एस. डी. बर्मन, श्याम सुंदर और सी. रामचंद्र जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों से हुई और वह उनके सहायक के तौर पर काम करने लगे। बतौर संगीतकार 1950 में प्रदर्शित फि़ल्म आँखें के ज़रिये मदन मोहन फि़ल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। फि़ल्म आँखें के बाद लता मंगेशकर मदन मोहन की चहेती पाश्र्वगायिका बन गयी और वह अपनी हर फि़ल्म के लिये लता मंगेश्कर से हीं गाने की गुज़ारिश किया करते थे। लता मंगेश्कर भी मदन मोहन के संगीत निर्देशन से काफ़ी प्रभावित थीं और उन्हें गज़लों का शहजादा कहकर संबोधित किया करती थी।
मदन मोहन के पसंदीदा गीतकार के तौर पर राजा मेंहदी अली खान, राजेन्द्र कृष्ण और कैफी आजमी का नाम सबसे पहले आता है। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गीतकार राजेन्द्र किशन के लिये मदन मोहन की धुनों पर कई गीत गाये। जिनमें ‘यूं हसरतों के दाग़..अदालत (1958), ‘हम प्यार में जलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ.. जेलर (1958), ‘सपने में सजन से दो बातें एक याद रहीं एक भूल गयी..गेटवे ऑफ इंडिया (1957), ‘मैं तो तुम संग नैन मिला के..मनमौजी, ‘ना तुम बेवफा हो.. एक कली मुस्काई, ‘वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी..संजोग (1961) जैसे सुपरहिट गीत इन तीनों फनकारों की जोड़ी की बेहतरीन मिसाल है।पचास के दशक में मदन मोहन के संगीत निर्देशन में राजेन्द्र कृष्ण के रचित रूमानी गीत काफ़ी लोकप्रिय हुये। उनके रचित कुछ रूमानी गीतों में ‘कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिये.. देख कबीरा रोया (1957), ‘मेरा करार लेजा मुझे बेकरार कर जा.. (आशियाना)1952, ‘ए दिल मुझे बता दे..भाई-भाई 1956 जैसे गीत शामिल हैं।मदन मोहन के संगीत निर्देशन में राजा मेंहदी अली खान रचित गीतों में ‘आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे..अनपढ़ (1962), ‘लग जा गले..(वो कौन थी) 1964, ‘नैनो में बदरा छाये.., ‘मेरा साया साथ होगा.. मेरा साया (1966) जैसे गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है। मदन मोहन ने अपने संगीत निर्देशन से कैफी आजमी रचित जिन गीतों को अमर बना दिया उनमें ‘कर चले हम फिदा जानो तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों… हकीकत (1965), ‘मेरी आवाज़ सुनो..प्यार का राज सुनो..नौनिहाल (1967), ‘ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही.. हीर रांझा (1970), ‘सिमटी सी शर्मायी सी तुम किस दुनिया से आई हो…परवाना (1972), ‘तुम जो मिल गये हो ऐसा लगता है कि जहां मिल गया.. हंसते जख्म (1973) जैसे गीत शामिल है।महान संगीतकार ओ.पी. नैयर अक्सर कहा करते थे। ..मैं नहीं समझता कि लता मंगेशकर , मदन मोहन के लिये बनी हुयी है या मदन मोहन लता मंगेशकर के लिये लेकिन अब तक न तो मदन मोहन जैसा संगीतकार हुआ और न लता जैसी पाश्र्वगायिका.. मदन मोहन के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले ने फि़ल्म ‘मेरा साया के लिये ‘झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में.. गाना गाया जिसे सुनकर श्रोता आज भी झूम उठते हैं। मदन मोहन से आशा भोंसले को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि- आप अपनी हर फि़ल्मों के लिये लता दीदी को हीं क्यो लिया करते है, इस पर मदन मोहन कहा करते थे जब तक लता जि़ंदा है मेरी फि़ल्मों के गाने वही गायेगी।1965 में प्रदर्शित फि़ल्म हकीकत में मोहम्मद रफी की आवाज़ में मदन मोहन के संगीत से सज़ा यह गीत ‘कर चले हम फिदा जानों तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों…आज भी श्रोताओं में देशभक्ति के जज्बे को बुलंद कर देता है। आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत मदन मोहन ही दे सकते थे। 1970 में प्रदर्शित फि़ल्म दस्तक के लिये मदन मोहन सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये गये। मदन मोहन ने अपने ढ़ाई दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 100 फि़ल्मों के लिये संगीत दिया।
अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं के दिल में ख़ास जगह बना लेने वाले मदन मोहन 14 जुलाई 1975 को इस दुनिया से जुदा हो गए। उनकी मौत के बाद 1975 में हीं मदन मोहन की मौसम और लैला मजनू फि़ल्में प्रदर्शित हुयी जिनके संगीत का जादू आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करता है।स्वप्निल संसार