चन्द्रशेखर राव का जोखिम नवगठित राज्य तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव अब अनुभवी राजनेताओं में गिने जाते हैं। देश भर में चल रहे विपक्षी एकता के सूत्रधारों में उनका शुमार है। उन्होंने फार्मूला भी बताया है। तेलंगाना को लेकर लगभग एक दशक की राजनीति के बाद उन्हें अलग राज्य बनवाने और उस राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी मिला है। जनता ने उन्हें स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाने के योग्य समझा। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि 6 सितम्बर 2018 को के- चन्द्रशेखर राव ने अपने राज्य की विधानसभा भंग करने का जो निर्णय लिया, वह जल्दबाजी में लिया होगा बल्कि इसके लिए उन्होंने सोच-समझकर और शुभ दिन का चुनाव किया है। तेलंगाना जिस आंध्र प्रदेश को तोड़कर बनाया गया है, उसी आंध्र प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्र बाबू नायडू ने भी समय पूर्व चुनाव कराने का जोखिम उठाया था। चन्द्र शेखर राव का भी यह फैसला जोखिम भरा है और उन्होंने एक बार धनुष से तीर छोड़ दिया है तो उनके वश में उसे वापस लाना नहीं है। तेलंगाना सरकार ने विधान सभा भंग करने की सिफारिश कर दी है। मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने कैबिनेट में प्रस्ताव पास किया था। विधानसभा भंग करने की घोषणा के बाद वह 6 सितम्बर को राज्य के राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन से मिलने पहुंचे और राज्य में जल्द चुनाव कराने की मांग की। राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने उनसे कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने को कहा है। सीएम और राज्यपाल का खेल यहीं तक सीमित था। आगे का खेल नरेन्द्र मोदी और अमितशाह को खेलना है।
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश विधानसभा दोनों का कार्यकाल 2019 में समाप्त हो रहा था। पहले ऐसा नहीं था। आंध्र प्रदेश ही उस समय राज्य था और तेलंगाना राष्ट्र समिति अलग राज्य के लिए संघर्ष कर रही थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू तब राजग के साथ वहां सरकार चला रहे थे। चन्द्रबाबू नायडू नहीं चाहते थे कि तेलंगाना के नाम से अलग राज्य बने और इसका समर्थन भी उस समय भाजपा को करना पड़ा था। भाजपा ने यह समर्थन मजबूरी में किया था अथवा सोची-समझी नीति के तहत, यह बात स्पष्ट नहीं हो पायी थी और चन्द्रबाबू नायडू ने हमेशा तिकडम की राजनीति का सहारा लिया है। उन्होंने एक तरफ तेलंगाना का अलग राज्य के रूप में विरोध किया तो दूसरी तरफ नक्सलियों के खिलाफ अभियान तेज कर दिया। संयोग से नक्सलियों के हमले में चन्द्रबाबू नायडू गंभीर रूप से घायल हुए और श्री नायडू को लगा कि नक्सलियों ने जिस प्रकार उन पर हमला किया है, उससे उनको जनता की व्यापक सहानुभूति मिलेगी। इसी रणनीति के तहत चन्द्रबाबू नायडू ने भाजपा से नाता तोड़कर, राज्य सरकार को इसी तरह भंग किया था जैसे 6 सितम्बर 2018 को के. चन्द्रशेखर राव ने भंग कर दिया है।
मुख्यमंत्री के. चंन्द्रशेखर राव ने समय से पहले विधानसभा भंग करने और विधान सभा चुनाव कराने के संकेत तभी दे दिये जब पांच दिनों के अंदर दूसरी बार मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई। बताया जा रहा है कि चन्द्रशेखर राव ने 6 सितम्बर का दिन ही क्यों चुना, इसके पीछे शुभ और अशुभ तारीख का मामला है। उनकी पार्टी के ही कुछ लोग बताते हैं कि श्री चन्द्रशेखर राव 6 की संख्या को बहुत भाग्यशाली मानते है। श्री राव का मानना है कि यह तारीख उनके लिए कई मायनो में खास और फलदायक साबित हो सकती है। अब इस शुभ तिथि का नतीजा पहली बार तो तब मिलेगा जब केन्द्र सरकार इसपर अपनी मुहर लगा दे। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि विधान सभा का भंग होना पक्का है। मंत्रिमंडल सदन भंग करने का फैसला कर सकता है। तेलंगाना में विधान सभा चुनाव अगले साल लोकसभा के चुनाव के साथ होने है क्योंकि 2004 में तत्काल मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू ने इसकी शुरूआत करवाई थी। चन्द्रबाबू नायडू ने भी समय पूर्व विधानसभा भंग करवा दी और लोकसभा के चुनाव होने थे, इसलिए उसी के साथ आंध्र प्रदेश विधान सभा के भी चुनाव हुए थे। श्रीमती सोनिया गांधी ने उसी वर्ष कांग्रेस को गठबंधन की राजनीति से जोड़ा था जबकि भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) पहले से बना रखा था। श्रीमती सोनिया गंधी ने आंध्र प्रदेश में उभरते कांग्रेस नेता वाई एस आर रेड्डी को कमान सौंपी और श्री रेड्डी ने तत्कालीन टीआरएस नेता के. चन्द्र शेखर राव से समझौता कर लिया। इस साझा मोर्चे ने चन्द्र बाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी और भाजपा को बुरी तरह से पराजित किया। वाई एस आर रेड्डी ने टी आर एस की मदद से विधान सभा की लगभग दो-तिहाई सीटें जीत ली और चन्द्र बाबू नायडू ने जनता की सहानुभूति का जो अनुमान लगाया था, वह दिवास्वप्न साबित हुआ। चन्द्र बाबू नायडू का जोखिम उनके लिए घातक साबित हुआ था। श्री नायडू को एक दशक के बाद फिर सत्ता मिल पायी है।
अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव को लगता है कि उनकी सरकार ने कर्जमाफी और अनुदान की जो नई योजनाएं शुरू की हैं, उनके चलते जनता का भरपूर समर्थन मिलेगा। राज्य के विधान सभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही निर्धारित है लेकिन मुख्यमंत्री को लगता है कि दोनो चुनाव अलग-अलग समय पर होने पर उनकी पार्टी को ज्यादा फायदा मिलेगा। ध्यान रहे कि मई 2014 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में टी आर एस ने विधानसभा की 119 सीटों में 63 पर जीत हासिल की। उसको चार सांसद भी मिले। चन्द्र शेखर राव सोच रहे हैं कि इस बार उन्हें 63 से ज्यादा विधायक और चार से ज्यादा सांसद मिलेंगे। अविभाजित आंध्र प्रदेश में 2004 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 294 सीटों में कांग्रेस ने अकेले 185 सीटों पर जीत हासिल की थी। तेलंगाना राष्ट्र समिति उसकी सहयोगी थी और उसे 26 विधायक मिले थे। तत्कालीन सत्तारूढ तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) को 47 सीटें ही मिल पायी थीं। कांग्रेस ने 234 सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे थे और 54 सीटें टी आर एस के लिए छोड़ी थीं। उस समय कांग्रेस के पास वाई एस राजशेखर रेड्डी जैसा नेता था। इस समय तेलंगाना में टीडीपी और कांग्रेस ही मुख्य विरोधी दल नहीं होंगे बल्कि भाजपा भी दक्षिण भारत में सत्ता हथियाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा के साथ केसीआर का तेलंगाना भी श्री अमितशाह के निशाने पर है। उन्होंने तेलंगाना के भाजपा नेताओं से इस संदर्भ में कई बार बैठक भी की है। इसलिए के. चन्द्रशेखर राव का समय पूर्व विधानसभा के चुनाव कराना भारी भी पड़ सकता है। (हिफी)