महाशिवरात्रि के शुभ पर्व पर शिव की उपासना की जाती है। शीघ्र वरदान प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के शिवलिंगों में पारद शिवलिंग की महिमा अपार है। पारद शिवलिंग के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये तांत्रिक साधनाओं को अपनाना पड़ता है। पारद के पिरामिड, फैंग शुई, श्रीयंत्र की स्थापना कराने से मन चाहा कार्य होता है परंतु पारद शिवलिंग से तो मनुष्य इस जीवन में भौतिक सुख भोग कर स्वर्ग में निवास करता है। महाशिवरात्रि के दिन पारे का शिवलिंग बनवाकर अपने घर पर विधि-विधान से स्थापित करना चाहिए। यह मानवीय शक्ति एवं दैविक शक्ति प्रदान करता है। वैसे समस्त देवताओं में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान शिव हैं। इसलिए उनका नाम आशुतोष भी है। अन्य देवताओं के चरित्र में कहीं न कहीं वैभव-विलास आदि की झलक मिलती है लेकिन शिवजी त्याग, सादगी, सरलता के साक्षात स्वरूप है। उदारता की सजीव प्रतिमा शिवजी त्रिकाल में, त्रिभुवन में, देवाधिदेव, सृष्टि के अन्तिम आयाम सहारा, अखिल विश्व ब्रह्माण्ड के प्रशासक की शरण में जाने से तुरंत चमत्कार होता है। शिवलिंगों के रूपाकार में विभिन्न प्रतिमाओं का प्रभाव और प्राचीनता यह सब इस तथ्य के प्रमाण हैं कि मानव-सभ्यता के आदिकाल से ही शिवजी पूज्य रहे हैं। पारद शिवलिंग पूजा, साधना, एक तंत्र साधना ही मानी जाती है। शुद्ध सिद्ध पारद शिवलिंग पर महाशिवरात्रि के दिन नियमित रूप से बेलपत्र चढ़ायें तथा भगवान शिव का पंच्चाक्षर मंत्र-नमः शिवाय का जाप 11 माला कर दुग्ध से अभिषेक करें। आश्चर्यजनक फल उसी क्षण साधक को मिलने लग जायेंगे। प्राण प्रतिष्ठा व 16 संस्कारयुक्त पारद शिवलिंग होना चाहिए। शुद्ध पारे से तांत्रिक साधना से पारद शिवलिंग का निर्माण किया जा सकता है। भगवान शिव के दो रूप तत्काल सिद्ध प्रदान करने वाले हैं। एक पारद शिवलिंग और दूसरा जलमग्न शिवलिंग। काले पत्थर में जल का होना शिवलिंक आधार में महान फल प्रदान करने वाला होता है। जलमग्न शिवलिंग के दर्शन का महत्व भी धर्म शास्त्रों में कम नहीं है।शताश्व मेधेन कृतेन पुण्यंगोकोटिमः, स्वर्ण सहस्प्रदानात।’नृणां भवेत् जलमग्नदर्शन मेनः यत्सर्वतीर्थ पु. कृतामिषकात्।’अर्थात्..जो पुण्य 100 अश्वमेध यज्ञ करने से तथा करोड़ों गोदान करने से एवं 1000 तोले सोने के दान करने से तथा सभी तीर्थों के दर्शन सम्पन्न करने से, प्राप्त होता है वो पुण्य जलमग्न शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही सहज में ही प्राप्त हो जाता है। घर पर शिवलिंग-स्थापना की महिमा ही अलग है। इसी प्रकार पारद शिवलिंग का महत्व है।
‘केदार दीनी लिंगनि, पृथित्यां यानि थानिचित्।’तानि वृष्टंवासु यत्पुयण्तत्पुण्यं रसदर्शनात्।’अर्थात हिमालय में केदारनाथ आदि पवित्र तीर्थ स्थलों से लेकर पृथ्वी तल पर जितने भी शिवलिंग हैं तथा सम्पूर्ण भारतवर्ष में द्वादश ज्योर्तिलिंग के दर्शन से जो पुण्य मिलता है वही पुण्य फल पारद निर्मित शिवलिंग को घर में विधि-विधान से स्थापना व दर्शन मात्र से श्रावण माह में या शिवरात्रि में यह पुण्य सहज रूप से प्राप्त हो जाता है।‘रसविधा, पराविधा, त्रैलोक्ये पिं च दुल्र्लभ्या।’‘भूक्ति-मुक्ति करी यास्यात्, तस्मात् यत्नेन गोपयेत्।’अर्थात जो पुण्य हजार स्वनिर्मित पार्थिव शिवलिंगों के पूजन से होता है उससे करोड़ों गुना फल पारद शिवलिंग के पूजन से होता है। रसविधा ही पारदविधा कहलाती है। उड्डीश तंत्र भी यही कहता है। यह त्रिलोकों में अत्यंत दुर्लभ है। भोग, मोक्ष, ऐश्वर्य का प्रदाता है।अतः मनुष्य को चाहिए कि यत्न-पूर्वक शिवलिंग को स्थापित कर पूजन करें।
शिवलिंग की महिमा
‘रसन्द्रः पारदः राज सूतः सूतराजच्च।’शिवतेजो रस षप्त नामान्येनं रहस्य नं।’
अर्थात-रसेन्द्र, पारद, सूत, सूतराज, सूतक, शिवतेज रस से सात नाम पारद के हैं। पारा से शिवलिंग बनाया जाय तो अपने आप में अद्भुत तेजस्वी तथा वर-दायक शिवलिंग बनता है। सही अर्थों में ऐसे शिवलिंग को ही पारदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। जिस घर में पारद शिवलिंग होता है उस व्यक्ति की कोई भी तुलना नहीं हो सकती है। उसके घर मेें केवल मात्र पारदेश्वर शिवलिंग ही नहीं होता अपितु भगवती लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, कुबेर भी साथ में स्थापित हो जाते हैं। ऐसे घर में लक्ष्मी पूर्ण रूप से उसके घर में चैतन्य होकर स्थापित हो जाती है और धन्य, धान्य, भूमि, भवन, कीर्ति, यश, दीर्घायु, पुत्र, पौत्र, वाहन और सम्पूर्ण सिद्धियों के साथ लक्ष्मी का निवास उसके घर में होता है। स्वयं भगवान शिव कहते हैं… ‘पारदेश्वर स्थापित्यं लक्ष्मी सिद्धि तद् गृहे।’धनं धान्यं धरा पौत्रं पूर्ण सौभाग्य वै नरः।’
अर्थात-जिसके घर में आठों संस्कारों से युक्त पारद से निर्मित ‘पारदेश्वर शिवलिंग बनाकर महाशिवरात्रि पर स्थापित होता है तो उसके घर में मेरे साथ-साथ कुबेर, विष्णु, लक्ष्मी, सौभाग्य अवश्य मिलता है। वशिष्ठ जी ने अपने ग्रंथ में कहा है-‘पारदेश्वरं स्थापित्यं सर्व पाप विमुच्यते।’ ‘सौभाग्यं सिद्धि प्राप्यन्ते पूर्ण लक्ष्मी लभेत् नरः।’
अर्थात्-चाहे व्यक्ति ने कितने ही पाप किये हों चाहे उसके जीवन में पूर्ण जीवन कृत दोष हों, चाहे विधाता ने उसके जीवन में पूर्ण सौभाग्य लिखा ही नहीं हो फिर भी यदि वह अपने घर में पारदेश्वर को स्थापित कर महाशिवरात्र पर आराधना करता है तो पूर्ण सौभाग्यशाली बन जाता है। एक अन्य स्थान पर महर्षि याज्ञवल्क्य ने भगवान पारदेश्वर के बारे में कहा है-‘किं दारिद्रयं दुखः पापं किं रोग शोकचः।’‘पारदेश्वर पदं साक्षात लक्ष्मी पूर्ण सौभाग्य प्राप्यते।’
अर्थात-मुझे समझ नहीं आता है कि मनुष्य के जीवन में दरिद्रता क्यों है? वह दुःखी, संतप्त और पीड़ित क्यों है? उसके जीवन में अभाव व बाधाएं क्यों हैं? जबकि उसके पास आठों संस्कारयुक्त पारद से निर्मित भगवान पारदेश्वर की प्राप्ति से सहज संभव है। स्वयं माता लक्ष्मी जी ने कहा है कि-‘पारदेश्वर सिद्धि वै साफल्यं लक्ष्मी च श्रियं।’
कनक वर्षा, धनं पुत्रं पौत्र, सौभाग्य वै नरः।’ अर्थात-इस कलियुग में मानव जीवन की पूर्णत, सम्पन्नता, श्रेष्ठता और सफलता का एकमात्र उपाय ‘पारद शिवलिंग’ प्राप्त कर महाशिवरात्रि पर स्थापित करन है। रावण ने पारद शिवलिंग का निर्माण कर उससे अपनी नगरी को स्वर्णमयी बनाकर यह सिद्ध कर दिया था कि पारदेश्वर की साधना से यह सब कुछ संभव है। स्वयं शिव भक्त रावण ने कहा है-‘पारदेश्वरं महादेव स्वर्ण वर्षा करोति यू।’‘सिद्धिदं ज्ञानदं मौक्षं पूर्ण लक्ष्मी कुबेर यः।’
अर्थात-मैंने यह अनुभव किया है कि पारदेश्वर की स्थापना व पूजन और साधना के आगे अन्य सभी साधनाएं प्रयोग व उपाय सभी तुच्छ हैं। मैंने केवल महाशिवरात्रि पर पारदेश्वर की स्थापना व पूजन कर पारद के ही माध्यम से स्वर्ण वर्षा सिद्धसूत से स्वर्ण निर्माण रसायन क्रिया कर संभव की थी। रसावर्ण तंत्र व शिवपुराण में लिखा है-‘धर्मार्थकाम मोक्षाख्या पुरूषार्थश्चतुर्विधा।’‘सिध्यंति नात्र सन्देहो पारद रस राज प्रसादतः।’अर्थात-जो मनुष्य पारद शिवलिंग की महाशिव रात्रि एवं श्रावण माह में एक बार भी पूजा कर लेता है उसे इस मानव जीवन में ही अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के साथ इस घोर कलियुग में चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति हो जाती है। इस प्रकार पारद शिवलिंग की महिमा तो अपार होती है लेकिन जिनको इस प्रकार का शिवलिंग उपलब्ध नहीं है, वे प्राण प्रतिष्ठित शिव लिंग की उपासना ओर अभिषेक कर अपनी कामनाएं सिद्ध कर सकते हैं। (हिफी)
