जयंती पर विशेष। एजेन्सी। मेघनाद साहा एस्ट्रोफिजिसिस्ट् थे। वे साहा समीकरण के प्रतिपादन के लिये प्रसिद्ध हैं। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। उनकी अध्यक्षता में गठित विद्वानों की एक समिति ने भारत के राष्ट्रीय शक पंचांग का भी संशोधन किया, जो 22 मार्च 1957 (1 चैत्र 1879 शक) से लागू किया गया। इन्होंने साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान तथा इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स नामक दो महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना की।
मेघनाद साहा का जन्म ब्रिटिश कालीन भारत (अभी का बांग्लादेश) के ढाका से 45 किमी. दूर शिओरताली गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम जगन्नाथ साहा था, और मेघनाद साहा का परीवार गरीब होने के कारण उन्हें आगे बढने के लिए काफी संघर्ष करना पडा था. उनकी आरम्भिक शिक्षा ढाका कॉलेजिएट स्कूल में हुई और बाद में उन्होंने ढाका महाविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की. मेघनाद साहा कलकत्ता अब कोलकाता के प्रेसीडेंसी महाविद्यालय के भी विद्यार्थी थे. 1923 से 1938 तक वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी रहे. इसके उपरान्त वे जीवन पर्यन्त 1956 में अपनी मृत्यु तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में विज्ञान फैकल्टी के प्राध्यापक एवं डीन रहे. सन् 1927 में वे रॉयल सोसाइटी के सदस्य बने. 1934 की भारतीय विज्ञान कांग्रेस के वे अध्यक्ष थे।
मेघनाद साहा इस दृष्टि से बहुत भाग्यशाली थे कि उनको प्रतिभाशाली अध्यापक एवं सहपाठी मिले. उनके विद्यार्थी जीवन के समय जगदीश चन्द्र बोस, सारदा प्रसन्ना दास एवं प्रफुल्ल चन्द्र रॉय अपनी प्रसिद्धि के चरम पर थे. सत्येन्द्र नाथ बोस, ज्ञान घोष एवं जे.एन. मुखर्जी उनके सहमित्र थे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध गणितज्ञ अमिय चन्द्र बनर्जी के साथ उनके काफी गहरे सम्बन्ध थे. धार्मिक तथ्यों के अनुसार मेघनाद साहा नास्तिक थे।
उन्होंने देश की आजादी में भी योगदान दिया था। अंग्रेज सरकार ने 1905 में बंगाल के आंदोलन को तोड़ने के लिए जब इस राज्य का विभाजन कर दिया तो समूचे मेघनाद साहा भी इससे अछूते नहीं रहे। उस समय पूर्वी बंगाल के गर्वनर सर बामफिल्डे फुल्लर थे। अशांति के इस दौर में जब फुल्लर मेघनाद के ढाका कालिजियट स्कूल में मुआयने के लिए आए तो मेघनाद ने अपने साथियों के साथ फुल्लर का बहिष्कार किया। नतीजतन मेघनाद को स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। प्रेसीडेंसी कालेज में पढ़ते हुए ही मेघनाद क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। उस समय आजादी के दीवाने नौजवानों के लिए अनुशीलन समिति से जुड़ना देश सेवा का पहला पाठ माना जाता था। मेघनाद भी इस समिति से जुड़ गए। बाद में मेघनाद का संपर्क नेताजी सुभाष चंद्र बोस और देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से भी रहा। 1917 में मेघनाद साहा कलकत्ता अब कोलकाता के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ साइंस में प्राध्यापक के तौर पर नियुक्त हो गए। वहां वो क्वांटम फिजिक्स पढ़ाते थे। एसएन बोस के साथ मिलकर उन्होंने आइंस्टीन और मिंकोवस्की द्वारा लिखित शोध पत्रों का अंग्रेजी में अनुवाद किया।1919 में अमेरिकी खगोल भौतिकी जर्नल में मेघनाद साहा का एक शोध पत्र छपा। इस शोध पत्र में साहा ने “आयनीकरण फार्मूला’ को प्रतिपादित किया। खगोल भौतिकी के क्षेत्र में ये खोज थी जिसका प्रभाव दूरगामी रहा और बाद में किए गए कई शोध उनके सिद्धातों पर ही आधारित थे। इसके बाद साहा 2 वर्षों के लिए विदेश चले गए और लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज और जर्मनी के एक शोध प्रयोगशाला में अनुसंधान कार्य किया।1927 में उन्हें लंदन के रॉयल सोसाइटी का फैलो निर्वाचित किया गया। इसके उपरान्त साहा इलाहाबाद चले गए जहाँ 1932 में ‘यूपी अकैडमी ऑफ़ साइंस’ की स्थापना हुई। साहा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के फिजिक्स विभाग की स्थापना में भी अहम् भूमिका निभाई। वर्ष 1938 में वो कोलकाता के साइंस कॉलेज वापस आ गए। उन्होंने ‘साइंस एंड कल्चर’ जर्नल की स्थापना की और अंतिम समय तक इसके संपादक रहे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक समितियों की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमे प्रमुख हैं नेशनल एकेडेमी ऑफ़ साइंस (1930), इंडियन फिजिकल सोसाइटी (1934) और इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस (1944)।1947 में उन्होंने इंस्टिट्यूट ऑफ़ नुक्लेअर फिजिक्स की स्थापना की जो बाद में उनके नाम पर ‘साहा इंस्टिट्यूट ऑफ़ नुक्लेअर फिजिक्स’ हो गया।
ज्ञानवर्धन और खोज कार्य को अग्रसर करने के उद्देश्य से 1921 में डॉ. साहा इंग्लैण्ड चले गए और वहाँ से फिर बर्लिन में प्रमुख भौतिक वैज्ञानिकों के साथ अनेक शोध कार्य किए। भारत लौटने पर इनकी नियुक्ति ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में भौतिकी विभाग के प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष पद पर हो गई। 1923 से 1938 तक ये इस पद पर बने रहे। इसके उपरान्त पुन: ‘कोलकाता विश्वविद्यालय’ में विज्ञान के पालित प्रोफ़ेसर के पद पर चले गए। 1955 में इनकी नियुक्ति कोलकाता के ‘इंडियन एसोसियेशन फ़ॉर दी कल्टिवेशन ऑफ़ साइंस’ के निदेशक पद हो गई। 1956 में इन्होंने कोलकाता में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ़ न्यूक्लियर फ़िजिक्स’ की स्थापना की और उसके निदेशक बने।
प्रो. साहा हमेशा देश के विकास के लिए सोचा करते थे। दामोदर नदी घाटी परियोजना उनकी इसी दूरदर्शी सोच का नतीजा था जिससे बाढ़ राहत और सिंचाई के रूप में इन इलाकों की जनता को इसका लाभ मिला। देश में बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास, वैज्ञानिकों के लिए अनुकूल माहौल बनाने और भारत की अर्थव्यवस्था का चेहरा बदलने के लिए उन्होंने राज्यसभा में जाना स्वीकार किया।1953 में वे ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ के निदेशक बने। यहां उन्होंने बहुत-सी शोध सुविधाओं की शुरुआत कर इसके निर्माता डॉ़ महेंद्रलाल सरकार के सपने को साकार किया।
मेघनाद साहा भारत के महान् खगोल वैज्ञानिक थे। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनका अविस्मरणीय योगदान है। उनके द्वारा प्रतिपादित तापीय आयनीकरण के सिद्धांत को खगोल विज्ञान में तारकीय वायुमंडल के जन्म और उसके रासायनिक संगठन की जानकारी का आधार माना जा सकता है। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनके अनुसंधानों का प्रभाव दूरगामी रहा और बाद में किए गए कई शोध उनके सिद्धातों पर ही आधारित थे। साहा समीकरण ने सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया और यह समीरकरण तारकीय वायुमंडल के विस्तृत अध्ययन का आधार बना। एक खगोल वैज्ञानिक के साथ-साथ मेघनाद साहा स्वतंत्रता सेनानि भी थे। भारतीय कैलेंडर के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए थे। 34 वर्ष की उम्र में ही वे लंदन की ‘रॉयल एशियाटिक सोसायटी’ के फ़ैलो चुने गए। 1934 में उन्होंने ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस’ की अध्यक्षता की। भारत सरकार ने कलैण्डर सुधार के लिए जो समिति गठित की थी, उसके अध्यक्ष भी मेघनाथ साहा ही थे। डॉ. साहा ने पाँच महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की भी रचना की थी।
प्रगतिशील विचारों के धनी मेघनाथ साहा के प्रयत्नों से ही भारत में भौतिक विज्ञान को बड़ा प्रोत्साहन मिला था। प्रतिभा के धनी मेघनाथ साहा का 16 फ़रवरी, 1956 . को देहान्त हो गया था ।