हिंदी पत्रकारिता आज किस मोड़ पर खड़ी है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है उसे अपनी जमात के लोगों से तो लोहा लेना पड़ रहा है साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चुनौतियां भी उसके सामने हैं ऐसे में यह काम और मुश्किल हो जाता है हिंदी पत्रकारिता ने जिस ‘शीर्ष’ को स्पर्श किया था वह बात अब कहीं नजर नहीं आती इसकी तीन वजह हो सकती हैं पहली अखबारों की अंधी दौड़, दूसरा व्यावसायिक दृष्टिकोण और तीसरी समर्पण की भावना का अभाव पहले अखबार समाज का दर्पण माने जाते थे पत्रकारिता मिशन होती थी लेकिन अब इस पर पूरी तरह से व्यावसायिकता हावी है न सामाजिकता न संकल्प फिर भी कलमकारिता से कलमकार बनने की चेष्टा करने वाले लोगो की जैसे ओढ़ सी लगी है 30 मई यानी हिन्दी पत्रकारिता दिवस 1826 का यह वही दिन था जब पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरंभ किया था ‘उदन्त मार्तण्ड’ नाम उस समय की सामाजिक परिस्थितियों का संकेतक था जिसका अर्थ है- ‘समाचार सूर्य’ भारत में पत्रकारिता की शुरुआत पंडित युगल किशोर शुक्ल ने ही की थी हिन्दी पत्रकारिता ने एक लंबा सफर तय किया ‘उदन्त मार्तण्ड’ के आरंभ के समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि हिन्दी पत्रकारिता इतना लंबा सफर तय करेगी युगल किशोर शुक्ल ने काफी समय तक ‘उदन्त मार्तण्ड’ को चलाया और पत्रकारिता की लेकिन कुछ समय के बाद इस समाचार पत्र को बंद करना पड़ा जिसका मुख्य कारण था उसे चलाने के लिए पर्याप्त धन का न होना लेकिन वर्तमान की परिस्थितियां तब से काफी अलग हैं आज काफी संख्या में लोग पत्रकारिता पर पैसा लगा रहे हैं और अब ये केवल पत्रकारिता न रहकर एक बड़ा कारोबार बन गया है बीते 189 वर्षों में हिन्दी अखबारों व समाचार पत्रिकाओं के क्षेत्र में काफी तेजी आई है और हिन्दी पाठक भी अपने अखबारों को पूरा समर्थन देते हैं वैसे तो हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा और भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक ,आर्थिक हितों का समर्थन किया उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किए और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की राम मोहन राय ने कई पत्र शुरू किए जिसमें साल 1816 में प्रकाशित बंगाल गजट अहम है जो भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र था लेकिन 30 मई 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित ‘उदन्त मार्तण्ड’ हिन्दी भाषा का पहला समाचार पत्र माना जाता है तब से लेकर अब तक हिन्दी अखबार समाज में अपना स्थान बना चुके हैं और अन्न-जल की ही भांति जनता के जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं और ‘उदन्त मार्तण्ड’ से शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का ये सफर आज बरकरार रहने के साथ ही अपने आप में कई नए आयाम जोड़कर लगातार फल-फूल रहा है सालों से हिन्दी पत्रकारिता देश की आजादी से लेकर साधारण इंसान के अधिकारों की लड़ाई तक के लिए उसकी अपनी मातृभाषा की कलम से लड़ती आ रही है वक्त बदलता रहा और पत्रकारिता के मायने और उद्देश्य भी बदलते रहे लेकिन नहीं बदली तो पाठकों की इसमें रुचि बदलती भी क्यों…?
हिन्दी पत्रकारिता ने समाज के अपने अक्स को ही तो खुद में उतारा और उभारा है आज तक एक स्थान पर बैठे-बैठे ही संसार की सैर भी पत्रकारिता ने ही दुनिया को करवाई और देश-विदेश की उफनती नब्ज से लेकर दहकते मुद्दों और तमाम तरह की नवीनतम जानकारियों को जुटाकर अपने पाठकों के सामने पेश भी किया.
एक कलम और उसके पहरेदारों ने पत्रकारिता के अब तक के इस सफर में सबसे खास भूमिका निभाई आज के दौर में मीडिया, इंटरनेट के जरिए जो वैश्वीकरण हो रहा है निश्चित रूप से पत्रकारिता को अमरत्व प्रदान कर रहा है लेकिन अब उस कलम की जगह टाइपराइटर और की-बोर्ड ने ले ली है अखबारों की जगह कम्प्यूटर और मोबाइल स्क्रीन ने ले ली है भले ही कुछ न बदला हो भले ही सब कुछ आगे बढ़ रहा हो लेकिन इस दौड़ में अगर कुछ पीछे छूट गया है तो वह है दम तोड़ती कलम जिसने कभी इसी पत्रकारिता को जन्म दिया था लेखन को जन्म दिया था मॉडर्न वैश्वीकरण के इस हाईटेक युग में वह कलम आज प्रौढ़ हो गई है और दम तोड़ रही है हिंदी प्रिंट पत्रकारिता आज किस मोड़ पर खड़ी है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है उसे अपनी जमात के लोगों से तो लोहा लेना पड़ रहा है साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चुनौतियां भी उसके सामने हैं ऐसे में यह काम और मुश्किल हो जाता है हिंदी पत्रकारिता ने जिस ‘शीर्ष’ को स्पर्श किया था वह बात अब कहीं नजर नहीं आती इसकी तीन वजह हो सकती हैं पहली अखबारों की अंधी दौड़, दूसरा व्यावसायिक दृष्टिकोण और तीसरी समर्पण की भावना का अभाव पहले अखबार समाज का दर्पण माने जाते थे पत्रकारिता मिशन होती थी लेकिन अब इस पर पूरी तरह से व्यावसायिकता हावी है न सामाजिकता न दृण संकल्प फिर भी कलमकारिता से कलमकार बनने की चेष्टा करने वाले लोगो की जैसे ओढ़ सी लगी है पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा की खातिर अपने प्राणों की आहूति देने वाले कलमकारों को नमन करते हुए निष्पक्ष पत्रकारिता की लौ सदा जलती रहे इसी कामना के साथ आप सभी सम्मानित भाइयो एवं बहनों को अनेकानेक शुभकामनाये देते हुए मैं सभी कलमकारों से यह विनम्र निवेदन करता हूँ कि सामाजिकता से परिपूर्ण कलमकारिता कीजिये न कि व्यावसायिक भरी कलमकारिता अगर कलम को व्यापारिक महत्व से देखकर पत्रकारिता कर रहे है तो निश्चित तौर पर अभी के अभी आप पत्रकारिता से सदैव के लिए संन्यास ले लीजिये लेकिन खमाखा पत्रकारिता और पत्रकार के सम्बंध को नेस्तनाबूत करने में अपनी भूमिका मत दर्शाये कुछ कथित लोगों के स्वार्थी अभिव्यक्त के कारण आज पत्रकारिता ख़तरे की ओर अग्रसर हो रही है हम सभी कलमकारों को विलुप्त होती सामाजिकता भरी पत्रकारिता को बचाना पड़ेगा अग़र हम सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने बैठेंगे तो वह दिन अब दूर नही कि देश में छुपे दुश्मनों और हैवानों से लेकर भ्रष्ट अधिकारी और घूसखोर कर्मचारियों को ये कथित चाटुकार चंद सिक्कों की खातिर इन आरोपियों के ऊपर लगे आऱोप को बेबुनियादी पायदान पर लाकर इनकी बेगुनाही साबित करने में लग जायेंगे और देश की जनता को गुमराह करेंगे।
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