सरकारी खजाने का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसलिए इस्लाम धर्म हो या सनातन किसी भी धर्म की धर्मांत आयोजनों या फिर यात्राओं पर सरकारी धन का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। हज सब्सिडी बंदी के बाद दूसरे धर्माें की फिजूलखर्ची पर तलवार चलनी चाहिए। हज जाने के लिए हवाई यात्रा के नाम पर सब्सिडी बंदी के बाद एक आवाज उठ खड़ी हुई है कि सेकुलर राष्ट्र में धर्म को सरकारी धन से पोषित नहीं करना चाहिए। केंद्र सरकार को हज सब्सिडी की तरह दूसरे धर्मों के धर्मांत के नाम पर बंदरबांट होने वाले सरकारी खजाने पर तुरंत रोक लगा देनी चाहिए। उदाहरण के लिए गुरूकुल, मदरसे व तमाम तीर्थयात्राओं पर आवंटित होने वाली धनराशि को भी तत्काल प्रभाव से बंद कर देना चाहिए। विभिन्न धर्मों में तीर्थ यात्राएं आयोजित होती है उनमें सरकार सब्सिडी के रूप में सहायता राशि देती है। अनुमान के तौर पर प्रत्येक वर्ष पच्चीस हजार करोड़ रुपए खर्च करती है। अगर उस राशि का प्रयोग विकास के क्षेत्र में किया जाए तो उसका असर कुछ और ही होगा। इसलिए सर्वधर्म एक समान का उदाहरण पेशकर सरकार ऐसी फिजूल खर्ची वाली राशि पर तुरंत काटा मारना चाहिए। दरअसल भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसलिए ऐसा कोई एकतरफा फैसला न हो जिससे निरपेक्षता पर सवाल खड़े हों।
हज सब्सिडी बंदी के बाद सरकार ने उस धनराशि का इस्तेमाल करने का एक नायाब तरीका खोजा है। हज सब्सिडी के नाम आवंटित धनराशि अब हवाई यात्रा पर नहीं बल्कि मुस्लिम आधी आबादी के विकास के हिस्से जाएगी, तो निश्चित रूप से उनके पंखों को नई उड़ान मिलेगी। सभी जानते थे कि सब्सिडी का फायदा अमीर मुसलमान उठा रहे थे। गरीब तबका इस रियायत से पूरी तरह से महरूम था। यही वजह है कि विगत सालों से कई मुस्लिम संगठन हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग कर रहे थे। सब्सिडी के पैसों का बंदरबांट किया जाता रहा है, जिसे लाभ मिलना चाहिए उसे लाभ मिल नहीं पा रहा था। इसको ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार अपने स्तर से पिछले तीन सालों से इसका अध्ययन करा रही थी। विभिन्न राज्यों से अध्ययन की फाइनल रिपोर्ट पिछले सप्ताह जैसे ही अल्पसंख्यक मंत्रालय को प्राप्त हुई मंत्रालय ने प्रधानमंत्री को अवगत कराया। उसके बाद सरकार ने तुरंत प्रभाव से इसके बंदी के आदेश जारी कर दिए। हालांकि यह सब्सिडी बदस्तूर जारी रहे, इसके लिए सरकार ने बचाव का एक प्रयोग भी किया। बचाव के लिए पिछले साल केंद्र सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री मोहसिन रजा ने देश के अमीर मुसलमानों से हज सब्सिडी छोड़ देने की गुजारिश की थी। पर, उस गुजारिश का जरा भी असर नहीं हुआ। खैर, केंद्र सरकार के इस फैसले का मुसलमानों ने भी स्वागत किया है। हालांकि एक तबका इस निर्णय के खिलाफ भी है।
केंद्र सरकार के इस निर्णय को मुल्क की मुस्लिम तबके की आधी आबादी को अपने साथ जोडऩे की कवायद के तौर पर ही देखा जा रहा है। सब्सिडी खत्म करने के बाद उस राशि का बेहतरीन इस्तेमाल का जो फार्मूला सरकार ने सुझाया है वह काबिले तारीफ है। सब्सिडी के नाम पर हवाई यात्रा पर खर्च होने वाली भारी भरकम सात सौ करोड़ रुपए की राशि को मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर खर्च करने की योजना बनाई गई है। निश्चित रूप से इस राशि के जरिए मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा व हीन-दशा सुधार क्षेत्र में बदलाव आएगा। मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक देने का जो युद्धस्तर पर मौजूदा सरकार प्रयास कर रही है वह आजाद भारत की किसी दूसरी स्वतंत्र सरकार ने नहीं किया। अगर किया होता तो मुस्लिम महिलाओं की दशा भी दूसरे मजहब की औरतों जैसी ही होती। मुस्लिम महिलाओं ने दशकों से कैद जैसा जीवन जिया है। सब्सिडी की राशि इनके शिक्षा पर खर्च होगी तो वह खुद सशक्त होंगी।
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हिंदुस्तान के मुसलमान कम खर्च पर हज यात्रा कर सकें। इसके लिए केंद्र सरकार जायरीनों को पानी के जहाज से जाने की सुलभ योजना बनाने जा रही है। पानी के जहाज का खर्च हवाई यात्रा से काफी कम होगा। हज सब्सिडी को सरकार फिजूल खर्च मानकर चल रही थी। इसी कारण हज सब्सिडी राशि में पिछले चार सालों से लगातार कटौती की जा रही थी। साल 2013 में 680 करोड़ आवंटन किए गए, जबकि 2014 में 577 करोड़ रूपए इसके अलावा 2015५ में 529 करोड़ दिए गए। वहीं साल 2016 में केवल 405 करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर दिए गए। इस लिहाज से सब्सिडी की जरूरत को धीरे-धीरे सरकार ने खत्म कर दिया। हालांकि केंद्र सरकार ने यह फैसला बड़े मुस्लिम नेताओं व उनके इस्लामिक धर्म के जानकारों की राय के बाद ही लिया है। हज यात्रा के नाम पर हर साल सात सौ करोड़ रूपए आवंटन किए जाते हैं वह आगे भी होते रहेंगे। बदलाव यह है कि वह रकम अब जाया नहीं होगी। उसका इस्तेमाल इसी धर्म के विकास पर खर्च होगा। वह पैसा बच्चियों की शिक्षा-दीक्षा पर खर्च किया जाएगा। भविष्य में
सरकार का यह कदम नजीर साबित होगा। जल्द ही दूरगामी परिणाम देखने को मिलेंगे।
कांग्रेस के अलावा अन्य विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार के इस फैसले को मुस्लिम महिलाओं को अपने पक्ष में जोडऩे का बड़ा दांव बताया है। तीन तलाक मुद्दे पर भी मुस्लिम महिलाओं का मोदी सरकार को जबरदस्त समर्थन मिला था। हालांकि वह अलग बात है कि फिलहाल तीन तलाक का मसला राज्यसभा में लटक गया है। विपक्षी नेता सरकार के निर्णय को इस्लामिक धर्म में बेवजह इस्तक्षेप बता रहे हैं। कुछ लोग यह भी आरोप लगा रहे हैं कि मोदी मुसलमानों के पीछे ही पड़ गए हैं। पहले तीन तलाक को लेकर मुस्लिम महिलाओं को अपने पति के खिलाफ भड़काने का काम किया था और अब पवित्र यात्रा पर जाने के लिए हज रियायत पर भी कैंची चला दी है। फैसले को वोट बैंक के तौर पर भी देखा जा रहा है। हालांकि सरकार ऐसे आरोपों की परवाह न करते हुए अपने निर्णय पर अडिग़ है। (हिफी)