राजधानी के स्कूलों में कलम की जगह पकड़ाये जा रहे हैं चाकू – छूरी !!!
जिला विद्यालय निरीक्षक भर रहे हैं अपनी जेब , बच्चे पढ़ें या मरें इनकी बला से !!!
यही हैं उ०प्र० की राजधानी लखनऊ के जिला विद्यालय निरीक्षक डा० मुकेश कुमार सिंह
जो स्थानीय ब्राईट लैण्ड स्कूल में मासूम बच्चे के साथ हुए जानलेवा हमले पर कैमरे के सामने दिखावे की बयानबाजी कर रहे हैं ।
लखनऊ। राजधानी के सैकड़ों कालेजों में तमाम अवैधानिक गतिविधियां बदस्तूर जारी हैं, तमाम शिकायतें दर्ज हैं बावजूद इसके इस ड्रामेबाज अधिकारी का कोई पुरसाहाल नहीं है। वसूली के चक्कर में सारे नियम-कानून ये अपने ठेंगे पर रखते हैं।
ऐसे में जब किसी मासूम पर जानलेवा हमला किया जाता है तब महाशय चैनल पर चेहरा दिखाने आ जाते हैं। वैसे अगर इनकी जमीनी हकीकत से रूबरू होना है तो जरा इनके कार्यालय में जाकर देखिये और मिलिये बड़े ही तानाशाही अंदाज में पेश आते हैं।
लखनऊ के त्रिवेणी नगर में चल रहे स्कूल से चौकने वाला हादसा सामने आया जिसकी जाँच अलीगंज पुलिस कर रही है कमांडर की अगुवाई में जो हस कर बताते है अरे भाई प्रिंसिपल को गिरफ़्तार कर लिया है। किशोरी का नाम सामने आया- अलीगंज पुलिस की उस रिपोर्ट जिसके बारे में किशोरी के मोहल्ले ही जानते थे। यानि किशोरी के चरित सार्वजनिक हत्या।
रही सही कसकर कुछ कथित पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर पूरी कर दी बगैर ब्लर किये फोटो पेस्ट कर दिए। यह वही जमात है जो मिश्री की बगिया -को ठाकुर गंज ,हाजी कॉलोनी को ठाकुर गंज -नबी उल्लाह रोड को डालीगंज लिखती हैं। संजोग वॉल्टर
ये कहना बिल्कुल गलत न होगा कि संबंधित जिला विद्यालय निरीक्षक की संदिग्ध कार्य प्रणाली का नतीजा ही है जो आज एक मासूम अस्पताल के बिस्तर पर जिंदगी की जंग लड़ रहा है।
मेरे विचार से इस प्रकरण में प्रथम दृष्टया दोषी जिला विद्यालय निरीक्षक को ही ठहराया जाना चाहिए क्योंकि कालेजों का समय – समय पर निरीक्षण करना और उसमें व्याप्त गड़बड़ियों के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही करने का सारा दारोमदार संबंधित जिला विद्यालय निरीक्षक के कंधों पर होता है। मगर अफसोस कि आज ये अधिकारी अपनी ऊपरी कमाई के चक्कर में अपने दायित्वों का निर्वहन करने में पूरी तरह से फ्लाप होते दिख रहे हैं।
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जानकारी में ये भी लाया गया है कि सरकारी वेतन के अलावा कालेज प्रबंधन प्रतिमाह इनकी जेब सुचारू रूप से भरता रहता है। यही नहीं आज राजधानी के तमाम शिक्षण संस्थानों में अवैधानिक व्यवसायिक गतिविधियां भी इनकी और शिक्षक संघ के नेताओं की शह पर खुलेआम संचालित होती दिखाई दे रही हैं। जिसका नतीजा है कि आज कालेजों में पढ़ाई की जगह मासूमों के साथ खूनी खेल आये दिन देखने और सुनने को मिल रहे हैं।
आखिर कब चेतेंगे हमारे देश के कर्णधार ??? मुख्यमंत्री जी इस सवाल का जवाब तो बनता ही है… ( संजय आजाद की कलम से )