इतिहास कभी-कभी अपने को दोहराता है। इसमें थोड़ा हेर-फेर दिखता है क्योंकि समय और परिस्थितियां चेहरा बदल देती हैं। दूसरे विश्व युद्ध के नायक रहे हिटलर और मुसोलिनी को मित्र राष्ट्रों ने धूल में मिला दिया था लेकिन उनकी विचारधारा को नष्ट नहीं किया जा सका। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग उन्हीें के पद चिन्हों पर चलते दिखाई पड़ रहे हैं। दोनों की साम्यवादी विचारधारा है। चीन के बारे में दुनिया भर ने जो सोचा था कि उसकी विचारधारा में जनतांत्रिक परिवर्तन आ जाएगा लेकिन वहां के संविधान में जिस तरह से बदलाव किया गया और शी जिनपिंग को आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का अधिकार मिल गया है, उससे उम्मीदें कम और आशंकाएं ज्यादा पैदा हो रही हैं। इसी प्रकार उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उससे यूरोप में युद्ध के बादल लगातार गहरा रहे हैं। अमेरिका इस मामले में सक्रियता जरूर दिखा रहा है लेकिन किम जोंग पर कोई प्रभाव पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है।
चीन ने पिछले दिनों दुनिया भर को यह दिखाने की कोशिश की थी कि वह तानाशाही राज की तरफ बढ़ रहा है। सोवियत संघ के विघटन के बाद पश्चिमी देशों ने उस समय चीन का इसलिए स्वागत नहीं किया था कि वह तानाशाह बनेगा बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्घ्था में उसका स्वागत इसलिए किया गया था कि पूरी दुनिया के साथ उसकी जनता जुड़ेगी और वहां लोकतंत्र की बयार पहुंचेगी। लोगों को यकीन था कि विश्व व्यापार संगठन जैसे वैश्विक संगठनों में चीन की भागीदारी उसे लोकतांत्रिक प्रेरणा देगी। चीन बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के लिए प्रोत्साहित होगा और व्यापारियों की जैसी प्रवृत्ति होती है, उसके अनुसार चीन तानाशाही प्रवृत्तियों से पीछे हट जाएगा। चीन जैसे-जैसे आर्थिक विकास की गति पकड़ेगा वैसे-वैसे ही वहां की जनता लोकतांत्रिक स्वतंत्रता हासिल करने का दबाव बनाएगी।
चीन को लेकर पश्चिमी देशों की यह परिकल्पना धूमिल पड़ती जा रही है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेता कहे जाने वाले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब जब तक चाहेंगे, वे चीन पर शासन करते रहेंगे। इससे पहले चीन में इस प्रकार की ताकत माओत्से तुंग के पास हुआ करती थी। चीन के पूर्व राष्ट्रपति हू जिन्ताओ के कार्यकाल तक ऐसा लग रहा था कि चीन में सुधार नजर आएंगे लेकिन जैसे ही लगभग पांच साल पहले शी जिनपिंग ने राष्ट्रपति पद संभाला, उन्होंने सत्ता को ही नहीं देश की सम्पन्नता को भी अपनी मुट्ठी में बंद करने का प्रयास किया। उन्होंने राजनीति की तरह ही अर्थ व्यवस्था को भी संभाला और चीन में उम्मीद से कहीं ज्यादा अरबपति तैयार हो गये। उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को अपने हिसाब से मजबूत किया है अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलााफ अभियान के दौरान श्री जिनपिंग ने भ्रष्टाचारियों की जगह अपने विरोधियों को टारगेट पर रखा। इस प्रकार शी जिनपिंग ने संभावित विरोधियों को कुचल दिया। इतना ही नहीं सेना को भी अपने अनुकूल बना लिया है। शी जिनपिंग ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीनी सेना) को पुनर्गठित किया, कितने ही सैनिकों को निकाल बाहर कर दिया और सेना को देश की जगह अपने प्रति निष्ठावान बनाया है। शी जिनपिंग ने इस दौरान कई ऐसे फैसले किये जो हिटलर और मुसोलिनी की याद दिलाते हैंं। उन्होंने सभी लोगों को अपने प्रति निष्ठावान बनने की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कार्रवाई की। स्वतंत्र विचारधारा का कोई महत्व ही नहीं रह गया। स्वतंत्र विचार व्यक्त करने वाले वकीलों, लेखकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को भी जेल में बंद कर दिया गया।
शी जिनपिंग का घेरा मजबूत है, हालांकि कहा यही जा रहा है कि चीन के लोगों का जीवन सरकारी हस्तक्षेप से पूरी तरह मुक्त है, फिर भी शी जिनपिंग इस बात पर नजर रखे हैं कि खुलेपन रखने वाले लोकतांत्रिक विचारों को हवा न मिले। शी जिनपिंग ने अपनी पार्टी में पूरी तरह वर्चस्व बना लिया है। हाल ही में १३वीं कांग्रेस (राष्ट्रीय पीपुल्स कांग्रेस) के पहले सत्र में ही चीनी नेताओं ने पैनल चर्चा में प्रतिनिधि नियुक्त किये। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की केन्द्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो की सभी स्थायी समितियों के सदस्य ली झांशु ने कहा कि सभी समितियों ने संवैधानिक संशोधन को मान्यता दी है। यह संशोधन शी जिनपिंग के कार्यकाल को लेकर ही है। इसी के बाद शी जिनपिंग ने दुश्मन देशों को चेतावनी दी थी और कहा कि हमारी सेना सभी को मात दे सकती है। चीन में संसद का सत्र चल रहा है और इसलिए महत्वपूर्ण है कि सीपीसी ने सामूहिक नेतृत्व के दशकों पुराने सिद्धांत को दरकिनार करते हुए राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के लिए दो कार्यकाल की सीमा खत्म करने के संवैधानिक संशोधन को प्रस्तावित कर रखा है।
यही स्थिति उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग की है। वे चीन की तरह शक्तिशाली नहीं लेकिन चीन उसकी मदद कर रहा है। उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम से बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग अब तक कई बार एक-दूसरे को नीचा दिखाने वाले बयान दे चुके हैं। किम ने कहा था कि उनके पास परमाणु बम है और उनकी मिसाइलें अमेरिका तक मार कर सकती हैं। इसके जवाब में श्री ट्रम्प ने कहा था कि उनके पास भी परमाणु बम है और अमेरिका उनको चलाना भी जानता है। श्री ट्रम्प की इस धमकी के पीछे दूसरे विश्व युद्ध का वह दर्दनाक नजारा सामने आ जाता है जब जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी में बम गिराये गये थे। अमेरिका के सामने उत्तर कोरिया की ताकत निश्चित रूप से कमजोर है लेकिन परमाणु युद्ध की तबाही तो पूरी दुनिया को झेलनी पड़ेगी। इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ने 10 मार्च को उत्तर कोरिया का तानाशाह किम जोंग से बैठक करने पर सहमति जतायी है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन का मंच तैयार हो गया है और यह दुनिया भर के लिए राहत की बात होगी।
उत्तर कोरिया ने किम जोंग के नेतृत्व में परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों में बहुत ज्यादा निवेश किया है। उत्तर कोरिया सिर्फ परमाणु शक्ति के सहारे ही आंख नहीं दिखाता है, उसकी फौज भी दुनिया की बड़ी सेनाओं में एक है। इसके साथ पारंपरिक और गैर परमाणु हथियारों का जखीरा भी उत्तर कोरिया के पास है। इतिहास को देखें तो उत्तर कोरिया अपनी ताकत का इस्तेमाल करने में भी नहीं हिचकता है। 8 साल पहले ही 2010० में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के एक छोटे लड़ाकू जहाज को डुबो दिया था और उसके द्वीप पर बमबारी भी की थी। उत्तर कोरिया के पास 4300 टैंक हैं, 2300 बख्तरबंद गाडिय़ां, साढ़े पांच हजार मल्टिपल राकेट लांचर हैं। उसके पास 430 सरफेस बेसल, 250 जहाज, 20 ड्रैगामाइन और ७० पनडुब्बियां हैं। उसके 1630 हवाई जहाज अलग-अलग जगहों पर तैनात हैं। किम जोंग लम्बी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें बनाने में लगे हैं। इस प्रकार किम जोंग का पूरा ध्यान युद्ध की तरफ है। किम जोंग और शी जिनपिंग का व्यवहार दुनिया भर के लिए चिंता का कारण बन रहा है। (हिफी)
