आप कहेंगे कि यह भी कोई बात हुई कि भाजपा नेता स्मृति ईरानी नाराज हैं और उस पर लिखने की जरूरत पड़ गयी? नाराज और खुश होना तो मानव का स्वभाव है। ऐसा कौन है जो कभी नाराज नहीं होता अथवा नाराज होने के बाद खुश नहीं होता। भगवान राम मर्यादा पुरूषोत्तम थे लेकिन जब सुग्रीव के भाई बालि को मारकर उन्होंने सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया और कहा कि चार महीने चातुर्मास) वारिश का मौसम रहेगा लेकिन उसके बाद वानर सेना को भेजकर सीता का पता लगवाना लेकिन सुग्रीव राज पाट में यह बात भूल गये तो श्री राम ने क्रोधित होकर लक्ष्मण को पम्पापुरी भेजा था। इसी प्रकार समुद्र से लंका जाने का रास्ता मांगने के समय पहले विनती की लेकिन तीन दिन तक समुद्र ने उनकी विनय नहीं सुनी तो संधानेउ प्रभु विषिख कराला, उठी उदधि उर अन्तर ज्चालां इस तरह खुशी और नाराजगी हमारे स्वभाव का अंग बन गयी है लेकिन भाजपा की केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री, जो कपड़ा मंत्रालय का भी कार्यभार संभाल रही हैं, उनका अमेठी में नाराज होना उनकी पार्टी भाजपा के लिए बहुत मायने रखता है। इसका प्रमुख कारण है अमेठी से स्मृति ईरानी की निष्ठा और लोकसभा चुनाव लड़ना क्योंकि वहीं से कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी सांसद हैं।
केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी गत 14 अप्रैल को अमेठी (यूपी) के दो दिवसीय दौरे पर पहुंचीं। अमेठी से उनका सम्पर्क लगातार बना हुआ है, भले ही वहां की जनता ने उन्हें लोकसभा चुनाव में पराजित कर दिया लेकिन स्मृति ईरानी ने अपने पराजित होने के बाद भी भाजपा को अमेठी का राजनीतिक लाभ दिलाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। इस समय वे राज्य सभा सदस्य हैं और प्रधानमंत्री श्री मोदी के गृह प्रदेश गुजरात का प्रतिनिधित्व करती हैं लेकिन अमेठी में उनकी सक्रियता का लाभ भाजपा को गुजरात चुनाव के समय भी मिला था और अब कर्नाटक विधान सभा चुनाव में भी मिलने की पूरी संभावना है। सुश्री स्मृति ईरानी अमेठी के विकास का लेखा जोखा तैयार करती हैं और किसी भी राज्य में चुनाव के समय जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जनता से कहते हैं कि कांग्रेस की सरकार बनने पर हम इस तरह से विकास करेंगे, तब सुश्री स्मृति ईरानी की अमेठी के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी जाती है। इस प्रकार भाजपा राहुल गांधी के वादे को झूठा साबित कर देती है और कहती है कि परम्परागत रूप से कांग्रेस का लोकसभा क्षेत्र जब श्री राहुल गांधी विकसित नहीं कर सके तो यहां का विकास कैसे करेंगे? इस पृष्ठभूमि को गौर से देखें तो अमेठी पहुंच कर स्मृति ईरानी की नाराजगी महत्वपूर्ण लगती है। अमेठी के दो दिवसीय दौरे पर पहुंची स्मृति ईरानी ने साल भर पहले वहां की जनता से कुछ वादे किये थे लेकिन उनपर अमल नहीं हो सका। प्रदेश में इस समय भाजपा की ही सरकार है। पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार में यदि ऐसा हुआ होता तो स्मृति ईरानी कतई नाराज नहीं होतीं बल्कि विपक्षी दल की सरकार पर आरोप लगाने का एक और मौका उन्हें मिल जाता लेकिन अब अपनी सरकार पर दोषारोपण भी नहीं कर सकतीं। अमेठी पहुंचने पर साल भर पहले किये गये वादे को पूरा न होते देखकर वह दंग रह गयी। मई 2017 में स्मृति ईरानी ने जब अमेठी का दौरा किया था, तब उन्होंने लोगों की मांग पर 1984 के सिख दंगों की फाइल का निस्तारण करने का आदेश जिले के अधिकारियों को दिया था। सिख समुदाय पंजाब और दिल्ली में तो अच्छी खासी तादाद में रहता है लेकिन देश के सभी हिस्सों में उनका प्रतिनिधित्व है। इसके अलावा वोट देने में उनकी एकता भी रहती है। इस प्रकार सिखों का भी एक वोट बैंक बन गया है। भाजपा ने अपने राजनीतिक एजेण्डे में सिख वोट बैंक को अपने कब्जे में करने की रणनीति बना रखी है। इसी के चलते 1984 में श्रीमती इन्दिरागांधी की हत्या के मामले को पीछे ढकेलकर उस समय हुए सिख विरोधी दंगे को हाईलाइट किया गया और दंगा पीड़ित सिखों को मुआवजे की राशि बढ़ाने का फैसला भी भाजपा सरकार ने ही किया है।
स्मृति ईरानी इस मुद्दे को अमेठी में भी महत्व दे रही हैं उन्होंने सिख दंगों की फाइल का निस्तारण करने और पीड़ितों को मुआवजा दिलाने का आदेश दिया था। उन्हें उम्मीद थी कि प्रदेश की भाजपा सरकार इस कार्य को प्राथमिकता से कराएगी लेकिन 12 अप्रैल 2018 को जब स्मृति ईरानी अमेठी पहुंची तो मुसाफिरखाना में नगर पंचायत अध्यक्ष बृजेश अग्रहरि के आवास के पास जनता की भीड़ उनका स्वागत करने के लिए एकत्रित थी। इसी भीड़ में 84 के सिख दंगा पीड़ितों के लम्बित मुआवजे के पैरोकार गुरूद्वारा साहिब के संयोजक सिमरनजीत सिंह भी खड़े थे। स्मृति ईरानी ने उनसे मुआवजा मिलने के बारे में जानकारी चाही तो पता चला कि मामला ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया है। सिमरनजीत सिंह ने बताया कि मई 2017 में ही शासन ने फाइल को डीएम कार्यालय को लौटाकर प्रतिकर अधिकारी कानपुर के पास भेजने को कहा था लेकिन फाइल जिला मुख्यालय पर ही धूल चाट रही है। इस प्रकार स्मृति ईरानी की सिख दंगा पीड़ितों के मामले में सिफारिश और लिखित पत्र के बाद भी नौकरशाही ने कोई कदम नहीं उठाया। अधिकारियों की कार्यशैली पर स्मृति ईरानी नाराज हुईं और बताते हैं कि उन्होंने उसी समय कहा कि अब व्यक्तिगत रूप से वह प्रयास करेंगी।
भाजपा ने 2017 के विधान सभा चुनाव में प्रदेश में सुशासन का वादा किया था। पार्टी के संकल्प पत्र में सबका साथ, सबका विकास की बात कही गयी थी। नौकरशाही के लिए कहा गया था कि बिना किसी दबाव के वह अपना काम करेगी लेकिन नौकरशाही ने निराश किया है। मुख्यमंत्री श्री योगी ने सरकार बनाते ही वादा किया था कि लगभग एक महीने में प्रदेश की सभी सड़कें गड्ढ़ा मुक्त हो जाएंगी। इस पर काम भी हुआ। लगभग साढ़े तीन लाख कि.मी. सड़कों को गड्ढ़ा मुक्त किया गया लेकिन नौकरशाही को क्या यह बताने की जरूरत है कि इस प्रक्रिया को सतत रहना चाहिए। सड़कों पर भारीवाहन चलते हैं, वारिश में सड़क क्षतिग्रस्त होती है तो फिर गड्ढे बन जाते हैं। इसलिए सड़कों को गड्ढ़ा मुक्त करने के लिए एक ठोस रणनीति बनानी होती है ताकि अलग-अलग क्षेत्रों में लोग अपनी यह जिम्मेदारी समझें और सड़कों पर जैसे ही गड्ढे हों तो उन्हें बराबर किया जाए। रेलवे ने अपने ट्रैक की देखभाल के लिए इस प्रकार के कर्मचारी तैनात कर रखे हैं। हालांकि वहां भी कभी-कभी टूटे ट्रैक मिल ही जाते हैं, लेकिन रेलवे ट्रैक की देखभाल के लिए एक व्यवस्था तो है। सड़कों के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था होनी चाहिए। योगी सरकार को गड्ढा मुक्ति के मामले में ही कई बार तिथि बढ़ानी पड़ी थी।
नौकरशाही के कार्य करने का यह एक उदाहरण है। दूसरा उदाहरण केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दे दिया है। इन दो उदाहरणों से यह बात साफ है कि पूर्ववर्ती सरकारों पर दोष मढ़ने से काम नहीं चलेगा। स्मृति ईरानी ने अमेठी में जनता से जो वादा किया था, उसे तो उनकी पार्टी की सरकार ही पूरा नहीं कर पायी। भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी यह शिकायत है कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते। इसमें कोई संदेह नहीं कि ज्यादातर लोग अनुचित काम कराने की ही सिफारिश करते हैं लेकिन जो लोग उचित काम के लिए अधिकारियों के पास जाते हैं उनकी बात तो अधिकारियों को सुननी ही चाहिए। सरकार के अच्छे और बुरे होने का मापदण्ड नौकरशाही से भी लगाया जाता है। जनता ने इसीलिए भाजपा को प्रदेश की सत्ता सौंपी है कि उसे सुशासन मिलेगा लेकिन पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ही जब सुशासन नहीं पा रहे तो आम जनता को यह कैसे मिल सकता है। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की नाराजगी आमजनता से कहीं अलग हटकर है और वह भाजपा के लिए ज्यादा अहितकर है। अमेठी का उदाहरण देते समय स्मृति ईरानी भले ही इसका उल्लेख न करें कि उनका आदेश जिला के अधिकारियों ने ठण्डे बस्ते में डाल दिया था लेकिन कांग्रेेस और अन्य विपक्षी दल इसकी याद जनता को जरूर दिलाएंगे। (हिफी)