जिलाधिकारी और अपर पुलिस अधीक्षक बाराबंकी से मिला प्रतिनिधिमंडल
स्वप्निल संसार। बाराबंकी। महादेवा, बाराबंकी में मुस्लिम समुदाय के चार व्यक्तियों पर लगाए गए रासुका को हटाए जाने को लेकर प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधिकारी और अपर पुलिस अधीक्षक बाराबंकी से मुलाकात की। रासुका को न्याय व विधि के विरुद्ध बताते हुए उन्हें मांग पत्रक भी सौंपा।
प्रतिनिधि मंडल ने साथ गए पीड़ित परिवार के लोगों के साथ जिलाधिकारी उदयभान त्रिपाठी से मुलाकात में कहा कि यह लोग फेरी लगाकर, मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग हैं इनसे कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। जिलाधिकारी ने आशवासन दिया कि उनके सामने मामला आने पर वे इस पर विचार करेंगे। वहीं पुलिस अधीक्षक बाराबंकी की गैर मौजूदगी में अपर पुलिस अधीक्षक दिगंबर कुशवाहा से प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि रिजवान उर्फ चुप्पी, जुबैर, अतीक, मुमताज से समाज में भय या नफरत फैलने का कोई खतरा नहीं है बल्कि उनके जेल में रहने से उनके परिवार के जीवन पर जरुर खतरा है। अपर पुलिस अधीक्षक ने कहा कि वे इस मामले को पुलिस अधीक्षक के सामने रखेंगे और उन्होंने सहानुभूति पूर्वक विचार करने का आशवासन दिया।
प्रतिनिधिमंडल में रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, पूर्व आईजी एसआर दारापुरी, एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन, सृजनयोगी आदियोग, अनिल यादव, राबिन वर्मा, शम्स तबरेज, वीरेन्द्र गुप्ता, नागेन्द्र यादव, बृजमोहन वर्मा, सरदार भुपेन्द्र सिंह, राजीव यादव व पीड़ित परिवार के सदस्य भी शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने रासुका के तहत निरुद्ध किए गए चार नौजवानों रिजवान उर्फ चुप्पी, जुबैर, अतीक, मुमताज की रिहाई और रासुका जैसे कानूनों के राजनीतिक इस्तेमाल को रोकने को लेकर जिलाधिकारी बाराबंकी और अपर पुलिस अधीक्षक से अनुरोध किया। मुलाकात में रासुका में निरुद्ध मुमताज की पत्नी अलीमुन और भाई राजा बाबू, रिजवान की मां शकीला और पिता जान मोहम्मद, अतीक के चचा हाफिज ताहिर और जुबैर के पिता भी शामिल थीं।
गौरतलब है कि पिछली 14 मार्च को महादेवा में गुलाल फेंकने के बाद कहा सुनी हुई और जो बाद में दो समुदायों के बीच मारपीट में बदल गई। इसके बाद मुस्लिम समुदाय के 12 लोगों की गिरफ्तारी हुई और 20 मार्च को उनमें से चार को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत निरुद्ध कर दिया गया।
प्रतिनिधि मंडल द्वारा दिए गए मांग पत्रक में कहा गया है कि रासुका के तहत निरुद्ध व्यक्तियों के परिजनों से मुलाकात और घटना की पड़ताल में यह पाया गया कि शोभायात्रा के दौरान शाह फहद नामक लड़का अपनी बहन के साथ मोटर बाइक से आ रहा था। बहन पर गुलाल फेंके जाने के बाद कहा सुनी हुई जो बाद में दो समुदायों के बीच मारपीट में बदल गई। लेकिन इसके तुरंत बाद दोनों पक्ष नरम हो गए और मामला शांत हो गया। लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते अगले दिन 12 लोगों की गिरफ्तारियां की गईं और उन्हें जेल भेज दिया गया।
मांग पत्रक में पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि एसएचओ झनझनलाल सोनकर ने 15 मार्च 2018 को अपने छह सहयोगियों के साथ 12 अभियुक्तों को मुखबिर की सूचना के आधार पर साढ़़े 11 बजे मड़ना मोड़ चौराहे से गिरफ्तार किए जाने का जो दावा किया वो बेबुनियाद व तथ्यों से परे है। उन्होंने अभियुक्तों के नेपाल भागनेे की तैयारी की भी बात कही। यहां यह सवाल उठता है कि उन्होंने 12 लोगों को 6 सहयोगियों के साथ कैसे गिरफ्तार किया? जबकि संचार माध्यमों में ‘एसपी ने बताया कि गुलाल पड़ने को लेकर यह विवाद हुआ है। स्थिति अब पूरी तरह से सामान्य है, कार्रवाई की जा रही है। मूर्ति संबंधित किसी भी आरोप को एसपी ने झूठा बताया है।’ वहीं शिव भगवान शुक्ला ने दर्ज कराई एफआईआर में कहा है कि 14 मार्च को सरयूपुर में भगवान शिव व की प्राण प्रतिष्ठा हेतु महादेवा के ग्राम वासियों के साथ डेढ़ बजे ट्रालियों से आए। इन लोगों ने लाई गई मूर्तियों में से लड्डू गोपाल की पीतल की मूर्ति को उठाकर फेंक दिया मूर्ति उठा ले गए।
प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि एफआईआर और प्राशसनिक बयान में भारी अन्तर्विरोध है। अगर मूर्ति के विषय में एफआईआर कर्ता का आरोप गलत है तो यह सांप्रदायिकता भड़काने की कोशिश है। क्योंकि मीडिया रिपोर्ट में आई खबरों के मुताबिक 6 ट्रेक्टर ट्राली, एक बोलेरो और कुछ मोटर साइकिल से शोभायात्रा आ रही थी। ऐसे में यह अपने आप में सवाल है कि शिव भगवान शुक्ला द्वारा दर्ज एफआईआर के मुताबिक 40-45 लोग इतना बड़ा हमला कैसे कर सकते हैं कि जिसमें सिर्फ एक समुदाय के लोग ही घायल हुए। वहीं एसपी महोदय का बयान है कि गुलाल पड़ने को लेकर यह विवाद हुआ। तो सवाल उठता है कि आखिर गुलाल फेंकने से पैदा हुए तनाव पर एफआईआर क्यों नहीं दर्ज हुई। अगर मुस्लिम समुदाय ने नहीं किया तो क्या पुलिस की यह जिम्मेदारी नहीं थी?
रासुका लगाए जाने को राजनीति प्रेरित बताते हुए कहा गया है कि इसके पीछे स्थानीय विधायक शरद अवस्थी, रामबाबू द्विवेदी, हिंदू युवा वाहिनी और हिंदू साम्राज्य परिषद जैसे संगठनों का दबाव था। जिससे दूसरे दिन पुलिस ने मड़ना मोड़ चैराहे से गिरफ्तार करने की झूठी कहानी बनाई।
महादेवा में हिन्दू-मुस्लिम समुदाय बहुत मेलजोल से रहते हैं और इसका सबूत है मंदिर के बहुत नजदीक मस्जिद का होना। मांग पत्रक में इसका जिक्र करते हुए कहा गया है कि महादेवा मंदिर के पुजारी आदित्यनाथ तिवारी ने पिछली षिवरात्रि के मेले के दौरान जामा मस्जिद के माइक को जबरन हटवाने की कोशिश की थी। पर दोनों समुदायों की आपसी सूझबूझ से यह सांप्रदायिक कोशिश नाकाम रही।
प्रतिनिधि मंडल ने जोर देकर कहा कि रासुका के तहत जिन व्यक्तियों पर कार्रवाई की गई है उनसे राष्ट्रीय सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। बल्कि उनके जेल में कैद होने से उनके परिवार का जीवन जरुर खतरे में है। ये लोग फेरी लगाकर, मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का जीवन यापन करते थे। इनकी रिहाई से समाज में भय या नफरत फैलने का कहीं से कोई खतरा नहीं है।
जिलाधिकारी और अपर पुलिस अधीक्षक से न्यायहित में मांग की गई कि रिजवान उर्फ चुप्पी, जुबैर, अतीक और मुमताज पर लगा रासुका खारिज करने की सिफारिष की जाए। इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। जांच इसलिए भी जरुरी है ताकि राजनीतिक उद्देश्यों के चलते समुदाय विशेष के मानवाधिकार व लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन न हो। सूबे में वंचित समाज पर थोपे जा रहे रासुका के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत यह मुलाकात की गई।