भारत बंद के दौरान जेल भेजे गए लोगों की रिहाई के बाद रिहाई मंच ने की मुलाकात
भारत बंद के नाम पर पकड़े गए लोगों की फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनवाकर चोटों को छुपाने की कोशिश
आजमगढ़ पुलिस ने आंदोलनकारियों से रुपऐ और मोबाइल की छिनैती की
2019 चुनावों के लिए तनाव पैदा कर मुस्लिमों पर लगाया जा रहा है रासुका
स्वप्निल संसार। लखनऊ। लखनऊ लौटकर रिहाई मंच ने बताया कि आजमगढ़ दौरे के दौरान रासुका, फर्जी मुठभेड़ और भारत बंद के नाम पर उत्पीड़ित किए गए लोगों से मुलाकात की गई। मंच ने कहा कि आजमगढ़ जैसी जगहों पर प्रतिरोध की ताकतें लगातार आवाज उठाती हैं। भारत बंद के आंदोलनकारियों पर फर्जी मुकदमे, दलित और पिछड़ों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या और सांप्रदायिक तनाव के बहाने मुसलमानों पर रासुका लादकर उन्हें राष्ट्र के लिए खतरा घोषित किया जा रहा है। प्रतिनिधि मंडल ने भीम आर्मी के जिला प्रभारी सुनील राव और धर्मवीर भारती से भी मुलाकात की। इस दौरे में मसीहुद्दीन संजरी, तारिक शफीक, शाहआलम शेरवानी, सालिम दाउदी के साथ लक्ष्मण प्रसाद, अनिल यादव और राजीव यादव शामिल थे।
भारत बंद के नाम पर 14 दिन जेल काटकर आए तरौका गांव के बांकेलाल यादव ने बताया कि 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। छह लोगों का 151 में चालान किया गया था। 14 अप्रैल को बाबा साहब की जयंती के कार्यक्रम में हम हिस्सा न ले सकें इसलिए हमारी रिहाई रोकी गई। इसी के चलते कुछ को 17-18 अप्रैल और अन्य को 27-28 अप्रैल को रिहा किया गया।
26 दिन जेल काटकर आए जमीन सिकरौरा गांव के मुन्ना और कुलदीप से भी मुलाकात हुई। मुन्ना सऊदी कमाते थे। वे उस दिन 5100 रियाल को रुपए में बदलवाने जीयनपुर जा रहे थे। मुन्ना बताते हैं कि पुलिस ने उन्हें रोका और जाति पूछी। बताते ही उन्हें और उनके भतीजे कुलदीप को मारने लगी। रियाल और मोबाइल फोन छीन लिया। वे बार-बार एसआई कमल नयन दूबे से कहते रहे कि मेरे पर्स में सऊदी का रुपया है। उनको और उनके भतीजे कुलदीप दोनों को पुलिस ने उठा लिया और थाने लाकर तत्कालीन एसएसपी अजय साहनी और सीओ सुधाकर सिंह की उपस्थित में उन्हें फिर मारा-पीटा गया। पुलिस वालों ने जाति सूचक गालियां भी दी। अजय साहनी खुद कह रहे थे कि इन सबको इतना मारो कि सड़क पर चलने की फिर हिम्मत न कर सकें। छूटने के बाद रुपया और मोबाइल मांगने वे थाने गए तो वहां दीवान ने पोटली दिखाई जिसमें पर्स था पर पैसा नहीं। इस पर दीवान ने कहा कि जिसको दिए थे उससे मांगों। आगे कोतवाल मुनीष सिंह चौहान ने कहा कि इसका पासपोर्ट जब्त करो। मुकदमा लादो जिससे ये फिर से बाहर न जा सके। एसएसपी से शिकायत करने के बाद सीओ के कहने पर थाने ने सिर्फ अड़तालीस हजार रुपए की बात कही। जबकि 5100 रियाल की भारत में वैल्यू लगभग 92 हजार होती है। आज तक मुन्ना को कुछ नहीं मिला।
भारत बंद के दौरान पुलिस ने युवकों से एन्डरायॅड फोनों की छिनौती भी की। गिरफ्तार किसी व्यक्ति की कोई जब्ती नहीं बनाई। भारत बंद के दौरान पुलिस के कहने पर सरकारी डाक्टरों ने चोटों को मेडिकल में छिपाने का काम किया। बांकेलाल यादव बताते हैं कि जब वे लोग जेल में गए तो वहां उनके शरीर पर लगी चोटों के निषान काले पड़ गए और खून के थक्के जम गए थे। दर्द के मारे वे उठ-बैठ नहीं पाते थे। उनको और उनके पांच और साथियों को अस्पताल भेजना पड़ा। भदांव के सुषील कुमार, जमुआ सागर के कमलेष और प्रवीन कुमार को गंभीर चोटें आईं।
प्रतिनिधि मंडल ने सरायमीर का भी दौरा किया। सरायमीर तनाव के बाद 34 नामजद व्यक्तियों पर मुकदमों और 18 की गिरफ्तारी के बाद रिहाई के ठीक पहले तीन युवकों आसिफ, शारिब और रागिब पर रासुका बताता है कि पुलिस बदले की कार्रवाई कर रही है। यहां सबसे अहम सवाल है कि मुस्लिम समुदाय और पुलिस के बीच यह तनाव फेसबुक पर टिप्पणी करने वाले अमित साहू पर रासुका लगाने की मांग पर हुआ था। लेकिन तनाव के मुख्य आरोपी अमित साहू पर रासुका न लगाकर आसिफ, शारिब और रागिब पर रासुका लगा दिया गया।
रिहाई मंच ने कहा कि सरकार के संरक्षण में छोटे-छोटे तनाव करवाए जा रहे हैं। अगर नहीं हो रहा है तो पुलिस खुद भी इसे करने के लिए दंगाईयों की भूमिका निभा रही है। यह सब 2019 के लोकसभा चुनावों में सत्तारुढ़ दल को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर प्रभाव रखने वालों को फर्जी मुठभेड़ में मारा जा रहा है और छोटी-छोटी मारपीट की घटनाओं में मुस्लिम समुदाय के ऊपर रासुका लगाया जा रहा है।