हिमालय के संरक्षण की जिम्मेदारी भारत के हर नागरिक की- डाॅ अनिल जोशी
हिमालय के गोद में भोजन और भजन दोनों समाहित है-साध्वी भगवती सरस्वती
ऋषिकेश। हिमालय संरक्षण के प्रति जनसमुदाय को जागरुक करने तथा विश्व स्तर के पर्यावरणविद्, वैज्ञानिक एवं प्रकृति प्रेमियों को एक साथ लाकर मिलकर हिमालय एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने हेतु हिमालय दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन में ऐतिहासिक हिमालय चिंतन वार्ता का आयोजन किया जा रहा है इस परिपेक्ष्य में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, डाॅ अनिल जोशी, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी ने पत्रकार बन्धुओं को सम्बोधित किया।
हिमालय दिवस की शुरुआत 2010 में की गयी। जिसका उद्देश्य था कि हिमालय पारिस्थितिक तंत्र, ग्लेश्यिर, हिमालयी वनस्पति, जड़ी-बूटियों का संरक्षण कर रोजगार के अवसर उपलब्ध करना। यह मुहिम हिमालय पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता आदि के संरक्षण की एक विशिष्ट पहल है।
परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि हिमालय, भारत के लिये सिर्फ एक रक्षा कवच नहीं है या केवल सिंध, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम स्थल है बल्कि हिमालय के कण-कण में हिन्दुत्व, बुद्धिज्म और विभिन्न संस्कृतियों का समाहित है। हिमालय हमें अपनी संस्कृति, संस्कार, अध्यात्म और इतिहास से रुबरु कराता है। हिमालय का महत्व उसके आस-पास के देशों के लिये ही नहीं बल्कि यह विश्व स्तर की जलवायु को प्रभावित करता है। हिमालय ही वह एक वजह है जिसके कारण भारत, नेपाल और पाकिस्तान और बांग्लादेश को प्रचुर मात्रा में जल प्राप्त होता है। भारत को औषधीय पौधों, चूना पत्थर, हिमालय नमक, फलों की खेती और अन्य वन संसाधनों से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है। अगर हम हिमालय के संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल करे तो पलायन की समस्या से पूरी तरह से निजात पा सकते है।
स्वामी जी ने कहा कि हिमालय केवल पलायन की समस्या का समाधान नहीं करता बल्कि जीवन की समस्याओं से पलायन करने वाले लोगों की समस्या का भी समाधान हिमालय के पास है। आज हमें हिमालय ही नहीं बल्कि हमालय की भी आवश्यकता हैं। हिमालय ने हमें एक रहना; एक होना और हम एक परिवार की शिक्षा प्रदान की है। वसुधैव कुटुम्बकम का संगीत दिया है, राष्ट्र भक्ति की शिक्षा भी हमें हिमालय ने प्रदान की है। उन्होने देश के सभी प्रकृति प्रेमियों का आह्वान करते हुये कहा कि यह हिमालय चिंतन वार्ता नहीं बल्कि वैश्विक जलवायु को अनुकूल बनाने का आगाज है इस मुहिम के सभी सहभागी बने।
डाॅ अनिल जोशी जी ने कहा कि हिमालय सदियों से अध्यात्म का केन्द्र बिन्दु रहा है इसलिये इसके संरक्षण का माध्यम अध्यात्म केन्द्रित रखा गया है जिसमें पूज्य संतों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हमारा उद्देश्य है कि प्रदेश में होने वाला पर्यटन, निर्माण और अन्य विकास परक योजनायें हिमालय परिस्थितिकी के अनुकूल हो तथा विकास का प्रत्येक माॅडल प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण हो। उन्होने कहा कि हिमालय भारत का ताज है न कि कुछ राज्यों का अतः हिमालय के संरक्षण की जिम्मेदारी भी भारत के हर नागरिक की होनी चाहिये।
डाॅ जोशी जी ने कहा कि इस वर्ष परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में 9 सितम्बर 2018 को हिमालय दिवस का आयोजन इसी अभिप्राय से किया जा रहा है। इसी कड़ी र्में हिमालय दिवस साधु-संतों के आशीर्वाद एवं पर्यावरणविद् व वैज्ञानिकों से दिशा एवं मार्गदर्शन पाने के लिये समर्पित है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि मेरा जन्म उपभोक्तावादी संस्कृति में हुआ परन्तु मुझे मेरे जीवन का उद्देश्य हिमालय और गंगा के संरक्षण में प्राप्त हुआ। मैने भारत आकर जाना की हिमालय और गंगा के पास अपार आध्यात्मिक ऊर्जा है। उन्होने कहा कि हिमालय के गोद में भोजन और भजन दोनों समाहित है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, डाॅ अनिल जोशी जी एवं साध्वी भगवती सरस्वती जी से पत्रकारों ने हिमालय दिवस के विषय में जानकारी हासिल की।
विशेष- 9 सितम्बर हिमालय दिवस के अवसर पर आयोजित चिंतन वार्ता में उत्तराखण्ड की राज्यपाल महामहिम बेबी रानी मौर्य, वित्त मंत्री श्री प्रकाश पंत, पूज्य संत, प्रमुख संस्थाओं के प्रतिनिधि, विभिन्न धर्मों के धर्मगुरू, विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि एवं पर्यावरणविद् सहभाग कर रहे है।
कार्यक्रम तीन चरणों में सम्पन्न होगा। प्रथम चरण में हिमालय पर चिंतन, द्वितीय चरण में चितंन व समाधान पर विशेष चर्चा और तृतीय चरण में पूज्य संतों का आशीर्वाद, संकल्प और उद्घोषणा होगी तत्पश्चात सभी परमार्थ गंगा आरती में सहभाग करेंगे।