मुबारक़ साल गिरह- वीर विनोद छाबड़ा-मेरी हम उम्र पीढ़ी ने मीनू मुमताज़ का नाम ज़रूर सुना होगा, कुशल नृत्यांगना और अच्छी एक्ट्रेस, भूमिका कैसी ही रही हो। ‘साहिब बीवी और गुलाम’ की तवायफ़, साक़िया आज मुझे नींद नहीं आएगी…या फिर ‘सीआईडी’ का वो गाना, बूझ मेरा क्या नाम रे, नदी किनारे गाँव रे…’जाग उठा इंसान’ में दो सहेलियां की चुलबुलाहट, जानूं जानूं रे काहे खनके है तोरा कंगना…’ब्लैक कैट’ का रोमांटिक गाना, मैं तुम ही से पूछती हूँ मुझे तुमसे प्यार क्यों है…’चौदहवीं का चाँद’ मुजरा, दिल की कहानी रंग लायी है…’एक साल’ में रिझाने वाला, सुनो रे सुनो मेरा मियां बड़ा बेईमान…नया दौर की नौटंकी, रेशमी सलवार कुरता जाली दा… अनगिनत गाने हैं जो मीनू मुमताज़ पर फिल्माए गए हैं।
मीनू मशहूर नर्तक मुमताज अली की बेटी हैं, वही मुमताज अली, जिन्होंने अशोक कुमार-लीला चिटनीस की झूला (1942) में यादगार नृत्य किया था, मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे ओ बाबू जी…मुमताज अली की एक मंडली थी जो शहर-शहर घूम कर नौटंकी दिखाया करते थे। उनकी आठ औलादें थीं। चार बेटे और चार बेटियां। मीनू पांचवें नंबर पर। शराब में डूबे पिता के रहते घर चलाना मुश्किल हो गया था। सबसे पहले बेटा महमूद घर से निकला, गली-गली आइसक्रीम बेची, ड्राईवर बना, लोकल ट्रेन में मिमिक्री करी। लेकिन पर्दे पर मशहूर कॉमेडियन तो वो बाद में बने। पहले बहन मीनू पर्दे पर आयीं। तब वो मलिका बेगम होती थीं, कुशल नर्तकी। ‘सखी हातिम’ (1955) में उन्हें चांस मिला, लेकिन जलपरी का। वहीं उन्हें उस दौर की मशहूर खलनायिका कुलदीप कौर मिलीं। उन्होंने मीनू में टैलेंट देखा और फ़िल्में दिलायीं। मिस कोकाकोला, सोसाइटी आदि कई फिल्मो में नृत्य किया। प्राण-मीनाकुमारी-अजीत की ‘हलाकू’ (1956) में प्रवीण नर्तकी हेलन संग मीनू ने ज़बरदस्त परफॉरमेंस दिया, अजी चले आओ आँखों ने दिल में बुलाया है…
एक दिन मीनू नृत्य करते-करते थक गयी थी। इच्छा हुई थोड़ी एक्टिंग भी की जाए। कॉमेडी रोल मिलने लगे। पैगाम (1959), घर बसा के देखो’ (1963) में उन्हें जॉनी वॉकर के साथ खूब पसंद किया गया। भाई महमूद के संग ‘हावड़ा ब्रिज’ में उन पर फिल्माया रोमांटिक गीत बहस का सबब बना, गोरा रंग चुनरिया काली मोतियां वाली…भाई-बहन के बीच रोमांस! तौबा कर ली मीनू ने। मीनू ने कुछ फिल्मों में लीड रोल भी किये, बलराज साहनी के संग ब्लैक कैट, सुरेश संग ‘घर घर की बात’ और ‘चिराग कहाँ रोशनी कहाँ’ में राजेंद्र कुमार की पत्नी थीं, वैम्प के किरदार में… आये हो तो देख लो दुनिया ज़रा, जीने वाले ले लो जीने का मज़ा…बैंक मैनेजर में भी सेकंड लीड थी, कदम बहके बहके जीया धड़क जाये…
दारा सिंह संग फिल्म करने की मीनू की दिली इच्छा रही जो अंततः ‘फ़ौलाद’ (1963) में पूरी हुई, जाने जानां यूँ न देखो नफ़रत से मुझे…करीब 70 फिल्मों में काम करने वाली मीनू की कुछ अन्य यादगार फ़िल्में हैं, मिस इंडिया, माई-बाप, दुश्मन, आशा, यहूदी, मिस्टर कार्टून एमए, कारीगर, कागज़ के फूल, क़ैदी नंबर 911, दुनिया न माने, घूंघट, तू न सही और सही, घराना, ताजमहल, जहांआरा और ग़बन।
पालकी(1967) मीनू की अंतिम फिल्म थी जिसे बनने में पांच साल लग गए। इस बीच 1963 में उन्हें सईद अकबर अली मिला। सोचा, फ़िल्मों में क्या धरा है? तीस पार हो चुका है। बड़ी हीरोइनों की लीग में तो आने से रही। ब्याह रचा लिया। 1942 में जन्मी मीनू मुमताज़ कनाडा में अपने परिवार के साथ सही-सलामत हैं। 26 अप्रेल को 77 साल पूरे करेंगी।