पुण्य तिथि पर विशेष -आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी खजाना लूटने की योजना बनायी थी। योजनानुसार दल के प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी ‘आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन की चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व छह: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेज़ सरकार ने मुकदमा चलाकर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ाँ आदि को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई।
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल के पाबना जि़ले के भडग़ा ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम क्षिति मोहन शर्मा और माता बसंत कुमारी था। बाद के समय में इनका परिवार 1909 में बंगाल से वाराणसी चला आया था, अत: राजेन्द्रनाथ की शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से ही हुई। राजेन्द्रनाथ के जन्म के समय पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास विषय में एम. ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे। जिस समय राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी एम. ए. में पढ़ रहे थे, तभी उनका संपर्क क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुआ। सान्याल बंगाल के क्रांतिकारी ‘युगांतर दल से संबद्ध थे। वहाँ एक दूसरे दल ‘अनुशीलन में वे काम करने लगे। राजेन्द्रनाथ इस संघ की प्रतीय समिति के सदस्य थे। अन्य सदस्यों में रामप्रसाद बिस्मिल भी सम्मिलित थे। ‘काकोरी ट्रेन कांड में जिन क्रांतिकारियों ने प्रत्यक्ष भाग लिया, उनमें राजेन्द्रनाथ भी थे। बाद में वे बम बनाने की शिक्षा प्राप्त करने और बंगाल के क्रांतिकारी दलों से संपर्क बढाने के उद्देश्य से कोलकाता गए। वहाँ दक्षिणेश्वर बम फैक्ट्री कांड में पकड़े गए और इस मामले में दस वर्ष की सज़ा हुई। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में बुलाये जाने लगे थे। क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में एक गुप्त बैठक हुई।
‘काकोरी काण्ड में लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल, 1927 को जलियांवाला बाग़ दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह तथा अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को एक साथ फांसी देने का निर्णय लेते हुए सज़ा सुनाई। काकोरी काण्ड की विशेष अदालत आज के मुख्य डाकघर में लगायी गयी थी। काकोरी काण्ड में संलिप्तता साबित होने पर लाहिड़ी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से लखनऊ लाया गया। बेडिय़ों में ही सारे अभियोगी आते-जाते थे। आते-जाते सभी मिलकर गीत गाते। एक दिन अदालत से निकलते समय सभी क्रांतिकारी ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, गाने लगे। सूबेदार बरबण्डसिंह ने इन्हे चुप रहने को कहा, लेकिन क्रांतिकारी सामूहिक गीत गाते रहे। बरबण्डसिंह ने सबसे आगे चल रहे राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का गला पकड़ लिया, लाहिड़ी के एक भरपूर तमाचे और साथी क्रांतिकारियों की तन चुकी भुजाओं ने बरबण्डसिंह के होश उड़ा दिए। जज को बाहर आना पड़ा। इसका अभियोग भी पुलिस ने चलाया, परन्तु वापस लेना पड़ा। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे।
6 अप्रैल,1927 को फाँसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जेलर ने पूछा कि-प्रार्थना तो ठीक है, परन्तु अन्तिम समय इतनी भारी कसरत क्यो? राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया- व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूँ? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिलें, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध में काम आ सके। अंग्रेज़ी सरकार ने डर से राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही 17 दिसम्बर, 1927 को फांसी दे दी। शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने के पहले ‘वन्देमातरम की जोरदार हुंकार भरकर जयघोष करते हुए कहा- मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ। क्रांतिकारी की इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर अंग्रेज़ ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें अब चैन से नहीं जीने देंगे। एजेंसी
