स्वप्निल संसार। लखनऊ को कई लोगों ने अपनाया। लखनऊ का भी नाम रौशन हुआ। लखनऊ को कर्म भूमि बनाने वाले थे भगवतीचरण वर्मा जो हिन्दी जगत के प्रमुख साहित्यकार थे । इन्होंने लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में ही प्रमुख रूप से कार्य किया। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त, 1903 में उन्नाव ज़िले, के शफीपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए., एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। भगवतीचरण वर्मा जी ने लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में ही प्रमुख रूप से कार्य किया। इसके बीच-बीच में इनके फ़िल्म तथा आकाशवाणी से भी सम्बद्ध रहे। बाद में यह स्वतंत्र लेखन की वृत्ति अपनाकर लखनऊ में बस गये। इन्हें राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त करायी गई।
कवि के रूप में भगवतीचरण वर्मा के रेडियो रूपक ‘महाकाल’, ‘कर्ण’ और ‘द्रोपदी’- जो 1956 में ‘त्रिपथगा’ के नाम से एक संकलन के आकार में प्रकाशित हुए हैं, उनकी विशिष्ट कृतियाँ हैं। यद्यपि उनकी प्रसिद्ध कविता ‘भैंसागाड़ी’ का आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में अपना महत्त्व है। मानववादी दृष्टिकोण के तत्व, जिनके आधार पर प्रगतिवादी काव्यधारा जानी-पहचानी जाने लगी, ‘भैंसागाड़ी’ में भली-भाँति उभर कर सामने आये थे। उनका पहला कविता संग्रह ‘मधुकण’ के नाम से 1932 में प्रकाशित हुआ। तदनन्तर दो और काव्य संग्रह ‘प्रेम संगीत’ और ‘मानव’ निकले। इन्हें किसी ‘वाद’ विशेष के अंतर्गत मानना ग़लत है। रूमानी मस्ती, नियतिवाद, प्रगतिवाद, अन्तत: मानववाद इनकी विशिष्टता है।
भगवतीचरण वर्मा की लिखी कहानी पर 1964 में चित्रलेखा प्रदर्शित हुई थी। लखनऊ के महा नगर में भगवतीचरण वर्मा ने घर बनवाया और उसका नाम रखा था “चित्रलेखा” । “चित्रलेखा” आज भी है भगवतीचरण वर्मा अमर है पर लखनऊ उन्हे भूल गया। भगवतीचरण वर्मा को भूले बिसरे चित्र पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। भगवतीचरण वर्मा का निधन 5 अक्टूबर, 1981 को हुआ था।