(सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
पवन मेहरा-कैस्टो मुखर्जी का नाम बॉलीवुड के चंद बेहतरीन हास्य कलाकारों में शुमार है वो जब भी पर्दे पर आते दर्शकों को एक असली किरदार देखने को मिलता है……सबसे रोचक बात ये थी कि वो जब फ़िल्मों एक शराबी की भूमिका निभाते तो उन्हें देख कर ऐसा लगता जैसे सच में उन्होंने नशा कर रखा हो, लेकिन हक़ीक़त में ऐसा नहीं था उन्होंने ज़्यादातर फ़िल्मों में भले ही एक शराबी की भूमिका निभाई हो, लेकिन असल ज़िंदगी में वो नशे से बेहद दूर थे कैस्टो मुखर्जी ने अपने 30 साल के करियर में क़रीब 90 से अधिक फ़िल्में की उनके किरदार भले ही छोटे होते थे पर कॉमिक टाइमिंग ग़ज़ब की होती थी एक अभिनेता के तौर पर उनकी बड़ी ख़ासियत ये थी कि वो हर रोल को काफ़ी सहजता और प्रफ़ुल्ता के साथ निभाते है आजतक बड़े-बड़े कलाकार भी उनकी कॉमिक टाइमिंग को टक्कर नहीं दे पाये……
इस मशहूर अभिनेता के शराबी किरदारों की शुरुआत की बात करें तो सबसे पहले वो इस रोल में 1970 में आई फ़िल्म ‘मां और ममता’ में नज़र आये थे..फ़िल्म में उनके किरदार को काफ़ी नोटिस किया गया और इसके बाद धीरे-धीरे यही किरदार उनकी पहचान बनने लगी .उसके बाद उनके पास फिल्मो की लाइन लग गई वो फिल्म निर्माताओं को समझाते रहे …”भाई में शराबी नहीं हूँ ”…..लेकिन उन्हें उसी तरह के ही रोल ऑफर हुए ….मजबूरी थी, ….काम करना था और यही शराबी वाले रोल ‘कैस्टो मुखर्जी’ की मजबूत पहचान बन गए ……उनकी अभिनय प्रतिभा से प्रभावित हो कर अभिनेता धर्मेंदर के अनुरोध पर फिल्म चाचा भतीजा (1977) में उनके लिए एक विशेष गाना ” शादी करवाने केश्टो चला ” लिखा गया था और उनपर ये गीत फिल्माया भी गया और मशहूर हुआ
सबसे बड़ी बात ये थी कि फिल्मो में उनके किरदार भले ही ज़बरदस्त न लिखे गये हों, लेकिन अपनी एक्टिंग से वो उसे यादगार बना देते. ……..एक कलाकार की असली ख़ूबी यही होती है, जब वो अपनी एक्टिंग से मामूली से रोल को भी बड़ा बना देता है.आपकी कसम’, ‘जंज़ीर’ और ‘शोले’ जैसी फ़िल्मों को उन्होंने अपने किरदार से यादगार बना दिया एक समय तो ऐसा था की बड़ी बड़ी फिल्मो में भोजन में अचार की तरह उनका छोटा सा रोल अनिवार्य होता था ….जरा याद करे फिल्म ‘गोलमाल (1979) ‘का वो दृश्य जब वो पुलिस इंस्पेक्टर ओम प्रकाश को विश्वास में लेकर उनसे उप्पल दत्त की असली मूंछे तक उखड़वा देते है ……..एक और फिल्म याद आती है ‘चुपके चपके’ (1975) जिसमे वो वो जेम्स डिकोस्टा बने थे जो पूरी फिल्म में किरदारों में हमेशा गलफत ही फैलाता रहता है …..और ‘शोले (1975)’ के हरिराम नाई के तो क्या कहने जो जेलर बने असरानी के हाथ ही जलवा देता है ऋषिकेश मुखर्जी और गुलज़ार की फिल्मो में वह जरूर नजर आते थे…….1985 में आई ‘गजब’ उनकी आखरी फिल्म थी इसी फिल्म में उन्हें एकमात्र फिल्म फेयर अवार्ड मिला था और इसी वर्ष बेहद तंगहाल मुफलिसी ,गुरबत और नाजुक हालत में वो दुनिया को अलविदा कह गए …आज भी कैस्टो मुखर्जी का नाम याद करते ही परदे पर हिचकी के साथ संवाद बोलता शराबी याद आ जाता है कैस्टो मुखर्जी अपने शराबी किरदारों के लिये हमेशा हमारे दिलों में बेहतरीन याद बन कर ज़िंदा रहेंगे- …आज हास्य अभिनेता ‘कैस्टो मुखर्जी’ की जयंती है… Born 7 August 1905