दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
दीपावली, भारत में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। दीपों का खास पर्व होने के कारण इसे दीपावली या दिवाली नाम दिया गया। दीपावली का मतलब होता है, दीपों की अवली यानि पंक्ति। इस प्रकार दीपों की पंक्तियों से सुसज्जित इस त्योहार को दीपावली कहा जाता है। कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह महापर्व, अंधेरी रात को असंख्य दीपों की रोशनी से प्रकाशमय कर देता है। दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियां हैं। हिन्दू मान्यताओं में विश्वास किया जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। धन के साथ बुद्धि भी मिले इसलिए ल़क्ष्मी-गणेश का पूजन किया। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसासर विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।
ज्योतिर्मय जीवन की कला से अनुप्राणित दीप पर्व उल्लास का पर्व है। यह पर्वों का समुच्चय है। भारत में दीपावली पर्व पाँच दिन तक मनाने की परम्परा रही है। धन्वन्तरि जयंती, धनतेरस हनुमान जयंती, नरक चौदस, दीवाली, अन्नकूट गोवर्धन पूजा के अतिरिक्त भैयादूज मुख्य पर्व है। अनेक पौराणिक आख्यान दीपावली से जुड़े हुए हैं। बलि के कारागार से मुक्ति पाने वाले देवकुल ने वामन भगवान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए प्रसन्नता से दीपावली मनायी थी। दीपावली के दिन अनगिनत प्रज्ज्वलित दीपों के हृदय कमल खिल जाते हैं। प्रत्येक घर में एक दिव्य भाव के सुमन सुगंध देते हैं। शाश्वत संदेश आता है दीपों की ज्योति से। देव संस्कृति का स्वाभाविक सौन्दर्य जीवन तत्व ज्ञान और हर्ष की धारा से मण्डित करके अनूठा आयाम देता है। यह है दीप पर्व की सर्वोच्च मान्यता।
दीपावली के विषय में पुराणों में अनेक आध्यात्मिक आख्यान मिलते हैं। एक आख्यान के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम राम इसी दिन चौदह वर्षों का वनवास पूर्ण करके अयोध्या आये थे। कृष्ण द्वारा नरकासुर वध की स्मृति में भी यह पर्व मनाया जाता है।
भारतीय पर्वों में दीपावली का विशेष स्थान है। इसकी एक अन्य मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्य कश्यप का वध करके भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। यह पर्व मात्र किसी जाति, धर्म का ही पर्व नहीं पूरे भारतवासियों का पर्व बन जाता है। प्रात:काल से घर आंगन की सफाई-पुताई की जाती है। रंग-बिरंगे कागजों, दीपों से पूरा जनमानस पर्व के रंग में रंग जाता है। प्राचीन समय में मिट्टी के घरों को मिट्टी के दीप जगमगा देते थे। घर के द्वार और दीवारों पर शुभ-लाभ लिखकर स्वास्तिक का चिह्न बनाते हैं। दीप जलाने के बाद शाम को लक्ष्मी की पूजा की परम्परा है। पूर्वजों की विजय और यश गाथा है यह दीपावली। अंधकार से प्रकाश की तरफ, अमंगल से लोकमंगल की ओर, असत्य से सत्य की ओर बढऩा इसका संदेश है।
दीपक मात्र जलता ही नहीं, यह कुछ कहता भी है। यह मानव जीवन का व्याख्या सूत्र है। बिना किसी भेदभाव के यह जगत को प्रकाश लुटाता है। जीवन का ही दूसरा नाम प्रकाश है। जीवन को ज्योतित करने के लिए स्वयं को दीपक बनना पड़ता है। दीप हमारी जीवन शैली का प्रतीक स्तंभ है। उत्कर्ष की ऊंचाइयों का विश्वास है। जीवन की पवित्रता की प्रेरणा है। नैतिक मूल्यों को जीने का आह्रान है यह दीप। जगत जब सोता है दीपक जागता है। जाग्रत रहने वाला ही बुराइयों पर विजय पा सकता है। सूर्य के आने तक उसका अटूट विश्वास रहता है। थकना, ऊबना, हारना, निराशा, विराम को वह जानता ही नहीं। इस पर्व में त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का दीप जलाते हैं। ऐसा करने पर मृत्युदेव यमराज अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं। इसी दिन धन्वन्तरि जयंती भी मनाते हैंं। चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनायी जाती है। दीपावली के दूसरे दिन ही कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है। ऐसी आस्था है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन धारण कर ब्रजवासियों को इन्द्र के क्रोध से बचाया था। पाँचवे दिन अर्थात् द्वितीया के दिन भाईदूज का त्योहार यम द्वितीया के नाम से विख्यात है। इस दिन बहन-भाई की आरती उतारकर तिलक लगाकर मंगल कामना करतीं हंै। दीपावली के छह दिन के पश्चात उ०प्र० और बिहार में छठ की पूजा की परम्परा है। यह सूर्योपासना का महान पर्व है।
महालक्ष्मी देवी का पूजन करने की प्राचीन परम्परा है। युग-युग से जनमानस को प्रेरित करते पर्व पावस ऋतु के बाद आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से आरंभ हो जाते हैं। अन्न की निन्दा न करने का संदेश दीपावली देती है। ‘अन्नं न निन्घात। यह पर्व भारतीय संस्कृति में एक ऐसा पर्व है जो अन्य से बहुत विलक्षण है। लोकजीवन में यह प्रसन्नता भरता है। मानवीय मूल्यों के लिये यह पर्व अंधेरे से लडऩे की तैयारी करता है। लोकमानस में स्वार्थ की घिनौनी वृत्ति को यह दीवाली कम करती है। मानव को मानव से जोड़ती है। यह आस्था विश्वास की थाती बनकर प्राण फूंकती है। दीप से दीप जलते हैं।
दीपावली में लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती, कलम-दवात और दीपकों की अर्चना का विधान है। दीपों द्वारा लक्ष्मी की पूजा। दानवत्व पर देवत्व, अस्वच्छता पर निर्मलता, आलस्य पर कर्मण्यता की विजय के प्रतीक रूप में यह पर्व मनाया जाता है। भारतीय मनीषा में आलोक पर्व के गौरव से यह दीपावली मण्डित है। शक्ति उपासक और साधक अक्षर मंत्रों की सिद्धि दीपावली को प्राप्त करते हैं। नवीन बही खाताओं का आरंभ दीपावली से किया जाता है। देवीपुराण के अनुसार रक्त पान कर असुरों के वध के उपरांत उन्मत्त देवी को प्रसन्न करने के लिए दीपमालिका आलोकित की गयी। दीपावली का प्रकाश जन-जन तक पहुँचाना ही लक्ष्मी की सच्ची पूजा मानी जाती है। कृषि प्रधान धरा की समृद्धि तथा हृदय का उल्लास दीप पर्व के रूप में जगमगा उठता है। शाश्वत नक्षत्र जैसे दीप धरा पर प्रज्ज्वलित करके यह त्योहार मनाया जाता है। हृदय का कोना-कोना, घर-आंगन की हर क्यारी दीपमाला से मण्डित हो उठती है। सुख और समृद्धि का पावन पर्व है दीपावली। मनुज को मनुज से नेह प्रेम, त्याग, श्रमनिष्ठा से जोडऩे यह पर्व आता है। मानव जीवन को आलोकित करके दीप पर्व जगत को दीप्ति देता है। (हिफी)