आज से लगभग 150 सालों तक भी शिक्षा बहुसंख्य लोगों तक नहीं पहुंच पाई थी । जब विश्व आधुनिक शिक्षा में काफी आगे निकल चुका था लेकिन भारत में बहुसंख्य लोग शिक्षा से वंचित थे लडकियों की शिक्षा का तो पूछो मत क्या हाल था । ज्योतिराव फुले पूना (अब पुणे) में 1827 में पैदा हुए। उन्होंने बहुजनों की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था उन्हें पता था कि बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी ही है । इसी लिए वे चाहते थे कि बहुसंख्य लोगों के घरों तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना ही चाहिए विशेषतः वे लड़कियों के शिक्षा के जबरदस्त पक्षधर थे।
इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया उन्होंने सबसे पहले अपनी संगिनी सावित्रीबाई को शिक्षित किया ज्योतिराव अपनी संगिनी को शिक्षित बनाकर अपने कार्य को और भी आगे ले जाने की तैयारियों में जुट गए । यह बात उस समय के सनातनियों को बिलकुल भी पसंद नहीं आई उनका चारों ओर से विरोध होने लगा । ज्योतिराव फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे ज्योतिराव नहीं माने तो उनके पिता गोविंदराव पर दबाव बनाया गया । अंततः पिता को भी प्रस्थापित व्यवस्था के सामने विवश होना पड़ा मज़बूरी में ज्योतिराव फुले को अपना घर छोड़ना पडा उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ में रहते थे।
उन्होंने ज्योतिराव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया यहीं ज्योतिराव फुले ने-1848 में अपना पहला स्कूल शुरू किया । उस्मान शेख भी लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझते थे उनकी एक बहन फातिमा शेख ( 9 जनवरी 1931 )थीं जिसे वे बहुत चाहते थे। उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल में शिक्षा के प्रति रुचि निर्माण की सावित्रीबाई के साथ वह भी लिखना-पढ़ना सीखने लगीं । बाद में उन्होंने शैक्षिक सनद प्राप्त की क्रांतिसूर्य ज्योतिराव फुले ने लड़कियों के लिए कई स्कूल कायम किए । सावित्रीबाई और फातिमा ने वहां पढ़ाना शुरू किया वो जब भी रास्ते से गुजरतीं तो लोग उनकी हंसी उड़ाते और उन्हें पत्थर मारते दोनों इस ज्यादती को सहन करती रहीं । लेकिन उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया फातिमा शेख के जमाने में लड़कियों की शिक्षा में असंख्य रुकावटें थीं।
ऐसे जमाने में उन्होंने स्वयं शिक्षा प्राप्त कि दूसरों को लिखना-पढ़ना सिखाया वे शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं । जिनके पास शिक्षा की सनद थी फातिमा शेख ने लड़कियों की शिक्षा के लिए जो सेवाएं दीं उसे भुलाया नहीं जा सकता। घर-घर जाना लोगों को शिक्षा की आवश्यकता समझाना लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों की खुशामद करना फातिमा शेख की आदत बन गई थी । आखिर उनकी मेहनत रंग लाने लगी लोगों के विचारों में परिवर्तन आया वे अपनी घरों की लड़कियों को स्कूल भेजने लगे लड़कियों में भी शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण होने लगी । स्कूल में उनकी संख्या बढती गयी मुस्लिम लड़कियां भी खुशी-खुशी स्कूल जाने लगीं । विपरीत परिस्थितियों में प्रस्थापित व्यवस्था के विरोध में जाकर शिक्षा के महान कार्य में ज्योतिराव एवं सावित्रीबाई फुले को मौलिकता के साथ सहयोग देने वाली एक वीर मानवतावादी शिक्षिका फातिमा शेख को दिल से सलाम । सोशल मीडिया से