पुण्य तिथि पर विशेष । गीता बाली (हरकीर्तन कौर) का जन्म 30 नवंबर 1930 को सरदार करतार सिंह के यहाँ विभाजन के पूर्व के अमृतसर -पंजाब में हुआ था । इनके पिता मजहबी प्रचारक थे। इस कारण इनके परिवार को बर्मा, लंका, मलया आदि देशों में बराबर जाना पड़ता था। इस कारण गीता बाली की पढ़ाई किसी एक स्कूल में न होकर विभिन्न स्थानों पर हुई।
गीताबाली ने बतौर बाल कलाकार अपने फि़ल्मी कैरियर की शुरुआत की थी,लगभग 12 साल की उम्र में,बतौर नायिका उनकी पहली फिल्म थी बदनामी जिसने उन्हें स्टार बना दिया था 1951 में भगवान् दादा के साथ आई थी अलबेला जिसके गाने आज भी मशहूर हैं शोला जो भड़के दिल मेरा धडके 1948 में प्रदर्शित सुहाग रात से लेकर 1956 में प्रदर्शित रंगीन रातें तक गीता बाली केदार शर्मा के जीवन की प्रेरणा बनी रहीं। इन नौ साल में गीता बाली के बगैर फिल्म की कल्पना तक उन्होंने नहीं की।
केदार शर्मा गीता बाली से किस कदर अभिभूत और प्रभावित थे, इसका अंदाजा घटना से सहज लगाया जा सकता है. केदार शर्मा ने एक फिल्म बनाई थी- बेदर्दी। वेश्या की कहानी पर बनीं इस फिल्म के नायक थे जसवंत। जसवंत गीता बाली के बहनोई थे। वे गीता बाली के सहारे फिल्मों में हीरो बनने की कोशिश में थे। गीता बाली के अनुरोध पर ही केदार शर्मा को उन्हें बेदर्दी में नायक बनाना पड़ा। उस समय केदार शर्मा ने गीता बाली से कहा था, जसवंत को अभिनय करना बिल्कुल नहीं आता और वे शायद ही फिल्मों में चल पाएं। इस पर उन्हें समझाने के अंदाज में गीता बाली ने कहा-शर्माजी, यह मेरे घर का मामला है। मेरी खातिर उसे हीरो बनाकर पेश कर दीजिए प्लीज। इस प्लीज पर केदार शर्मा कुर्बान हो गए और उन्होंने जसवंत को बेदर्दी में गीता बाली का नायक बना दिया।
इस दौरान गीता बाली और उनकी बहन ने अपनी फिल्म कम्पनी बाली सिस्टर्स की स्थापना की और इसके बैनर में रागरंग फिल्म शुरू की। यह फिल्म उन्हीं का निर्माण थी। लिहाजा केदारा शर्मा को लगा, इसमें वे जसवंत को ही हीरो बनाएंगी। लेकिन अपने घर के हीरो को परे रख उन्होंने फिल्म का हीरो बनाया अशोक कुमार को। केदार शर्मा ने गीता बाली से कहा, गीताजी मेरी फिल्म में तो आपने जसवंत को नायक बनाने पर मजबूर किया, लेकिन अपनी फिल्म में आपने अशोक कुमार को लिया। इस पर बीता बोलीं, क्या करें शर्माजी। जसवंत के नाम पर फिल्म बिक नहीं सकती न। मजबूरन अशोक कुमार को लेना पड़ा। गीता बाली ने अपनी फिल्म की मार्केट का खयाल किया और जसवंत को हीरो बनाने के लिए केदार शर्मा को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। यह नुकसान उन्होंने उठाया सिर्फ गीता बाली की खातिर, मगर इसका अफसोस केदार शर्मा को बिलकुल भी नहीं था। बाद में उन्होंने शम्मी कपूर से विवाह कर लिया गीता बाली और शम्मी कपूर की मुलाकात केदार शर्मा की फिल्म रंगीन रातें के सेट पर हुई गीता बाली उन दिनों हिंदी सिनेमा में अपने पैर जमा चुकी थी, जबकि कपूर खानदान से ताल्लुक रखने के बावजूद शम्मी कपूर फि़ल्में हासिल करने के लिए एडियां घिस रहे थे गीता बाली की सिफ़ारिश पर ही शम्मी कपूर को ये फिल्म मिली थी इसलिए जब सेट पर दोनों की मुलाकात हुई तो शम्मी कपूर गीता बाली के स्टारडम के कारण उनसे बात करने में हिचक रहे थे लेकिन जल्द ही दरियादिल गीता बाली ने अपने इस फि़ल्मी हीरो की हिचक को हवा में उड़ा दिया गीता की दरियादिली, बड़ी-बड़ी आँखें और मोहक मुस्कान में खुद को भुला बैठे शम्मी कपूर शम्मी कपूर में गजब का अल्हड़पन था ये मस्तमौला गीता को भी रास आने लगा आउटडोर शूटिंग पर रानीखेत गयी रंगीन रातें की टीम और निर्देशक केदार शर्मा की तीखी नजऱों के बीच शुरू हुआ मुलाकातों का सिलसिला टीम की वापसी तक पूरा परवान चढ़ चुका था मुंबई पहुँचने तक दोनों जीने-मरने की कसम खा चुके थे शम्मी कपूर गीता के साथ शादी की कसम तो खा चुके थे लेकिन उन्हें बखूबी पता था कि ये इतना आसन भी नहीं होगा गीता बाली न केवल उनसे उम्र में बड़ी थी बल्कि वो बावरे नैन में बड़े भाई राजकपूर और आनंदमठ में पिता पृथ्वीराज कपूर की हिरोइन भी रह चुकी थी उस पर शम्मी का हिचकोले खाता फि़ल्मी करियर ज़ाहिर था कि कपूर खानदान शम्मी को शादी की रजामंदी नहीं दे सकता था लेकिन शम्मी थे कि गीता के लिए हर हद्द तोडऩे को तैयार बैठे थे परिवार की नाखुशी उन्हें और बेकरार किये जा रही थी गीता बाली शम्मी की इस परेशानी को समझ रही थी लेकिन वो कर भी क्या सकती थी शम्मी को इस परेशानी से निकला उनके परम मित्र जॉनी वॉकर ने खिलेंदड और मस्तमौला जॉनी उन्हीं दिनों अफ़ी को अपना बनाकर मुंबई लौटे थे अफ़ी मिलने की ख़ुशी में जॉनी का जोश पूरे शबाब पर था इसी जोश में उन्होंने शम्मी कपूर को भी अपने पद चिन्हों पर आगे बढऩे की सलाह दे डाली जॉनी ने न केवल सलाह दी बल्कि शम्मी कपूर में इतना आत्मविश्वास भी भर दिया कि वो कपूर खानदान के खिलाफ खिलाफत का झंडा बुलंद करने को तैयार हो गए शम्मी की सलाह हालाँकि गीता बाली को तो जमी नहीं, लेकिन अपने प्यार को पाने का और कोई रास्ता नजऱ भी नहीं आ रहा था बहरहाल, वो तैयार हो गयी 23 अगस्त 1955 की आधी रात को शम्मी कपूर, जॉनी वॉकर, और हरिवालिया के साथ मुंबई स्थित वानगंगा मंदिर में गीता के शादी करने के लिए जा पहुंचे शम्मी कपूर जब मंदिर पहुंचे तो मंदिर के दरवाजे बंद हो चुके थे इसलिए पुजारी ने उनकी शादी कराने से इंकार कर दिया शम्मी की जिद्द और हालात को देखता हुए पुजारी ने उन्हें सुबह आने की सलाह दी और ये आश्वासन भी दिया कि मंदिर के कपाट खुलते ही शादी कि पूरी रस्म अदा कर दी जाएगी सबेरे चार बजे शम्मी मंदिर के सामने हाजिऱ थे गीता को अपना बनाने का उतावलापन और परिवार का डर उनपर इस कदर हावी था कि हड़बड़ी में वो ये भी भूल गए कि शादी के लिए सबसे अहम चीज़ सिंदूर होता है रस्मों-रिवाज़ निपटाने के बाद जब पुजारी ने उन्हें दुल्हन की मांग में सिंदूर भरने को कहा सक्ते में आ गए शम्मी कपूर मौके की नजाकत को देखता हुए गीता ने अपनी लिपस्टिक शम्मी के हाथों में थमा दी और सिंदूर की जगह लिपस्टिक लगाकर ही एक-दूसरे के हो गए।
फिल्म ‘रंगीन रातें के दौरान ही शम्मी कपूर और गीता बाली का साथ प्रेम में बदल गया और 24 अगस्त 1966 को गीता बाली ने शम्मी कपूर से शादी कर ली। शम्मी कपूर और गीता बाली कभी-कभी पत्नी की किस्मत भी पति की तकदीर बदल देती है गीता बाली से शादी करने के बाद जैसे शम्मी की रूठी किस्मत जाग उठी शादी के बाद गीता ने न केवल शम्मी की खिलनदडेपन पर लगाम कसी बल्कि उनके करियर की बागडोर भी अपने हाथों में ले ली गीता बाली के साथ ने न केवल शम्मी को अनुशासित किया बल्कि उनमे एक जि़म्मेदारी भी पैदा की जिसकी वजह से वो करियर को लेकर काफी गंभीर हो गए 1957 में आई नासिर हुसैन की फिल्म तुमसा नहीं देखा की धमाकेदार कामयाबी ने शम्मी के करियर का रुख ही बदल कर रख दिया शम्मी का बदला अंदाज़, लुक और ओ.पी.नेत्रा का म्यूजिक दर्शकों को खूब रास आया और शम्मी रातोंरात स्टार हो गए.. गीता और शम्मी का ये साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सका।
1965 में जब शम्मी फिल्म तीसरी मंजिल की आउटडोर शूटिंग पर थे तो गीता को चेचक हो गयी थी । गीता की बीमारी की खबर सुनकर बदहवासी में अस्पताल पहुंचे शम्मी जब गीता के सामने पहुंचे तो 107 डिग्री फॉरेनहाईट बुखार में तपती गीता उन्हें पहचानने में भी असमर्थ थी आखिरकार उन्हें बचाया नहीं जा सका गीता और शम्मी की इस प्रेम कहानी का अंत उसी मंदिर के पास हुआ जहाँ सात फेरे लेकर दोनों ने साथ जीने-मरने की कसम खायी थी।
इनको बचपन से ही नृत्य का शौक था। नौ वर्ष की उम्र में इन्होंने अपनी बड़ी बहन हरदर्शन कौर के साथ लखनऊ में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया। इनकी जाति के मजहबी सिख लोगों ने शोर-शराबा करने के पश्चात पंडाल के एक भाग को जला भी दिया क्योंकि इनकी जाति के लोग उस समय लड़किों को नृत्य कला के क्षेत्र में लाना अच्छा नहीं समझते थे। इसके पश्चात तो नन्हीं गीता बाली आकाशवाणी ( तब ऑल इंडिया रेडियो )के बच्चों के प्रोग्राम में बराबर हिस्सा लेती रही।
आकाशवाणी के स्टूडियो में गीता बाली की मुलाकात प्रसिध्द नृत्य निर्देशक पं.ज्ञानशंकर से हो गयी जो पंजाबी फिल्मी क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम था। शौरी पिक्चर्स की फिल्म ‘मोची में पहली बार कोरस की गायिकाओं में उन्हें चांस मिला। इसके पश्चात रूप के.शौरी की फिल्म बदनामी में उनके सोलो नृत्य ने फिल्म निर्माताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। लाहौर में महेश्वरी के यहाँ गये और पंचौली की पतझड़ जैसी फिल्मों में गीता बाली के नृत्य काफी पसंद किये गये। एक प्रख्यात निर्देशक तथा अभिनेता ने लाहौर में इनको देखा और वे इन दोनों बहनों और इनकी माता को बंबई ले आए। केदार शर्मा ने इन दोनों बहनों को देखा। छोटी बहन हरकीर्तन कौर बहुत सुंदर तो न थीं पर उसमें जो अभिनय छटा केदार शर्मा ने देखी, उससे उन्हें विश्वास हो गया कि यह लड़की एक दिन बहुत बड़ी अभिनेत्री बनेगी।
हरकीर्तन कौर (घरेलू नाम- गीता) को निर्देशक केदार शर्मा ने सर्वप्रथम ओरियन्टल पिक्चर्स बम्बई की फिल्म ‘सुहाग रात 1948 में पेश किया। इसमें इनके नायक थे भारत भूषण। संगीतकार थे स्नेहल भाटकर और गीत लिखे थे केदार शर्मा ने। इस प्रकार केदार शर्मा ने हरकीर्तन कौर से इनका नाम गीता बाली रख दिया। इसके पश्चात इनकी फिल्म ‘जलसा आयी। इसके पश्चात तो इनके अभिनय से सजी फिल्मों की झड़ी सी लग गयी। उन्होंने हर प्रकार के रोल किये। बड़ी बहन में कपटी बहन का रोल और सुहागरात में कम्मो का रोल बखूबी निभाया। फिल्म ‘सुहागरात से ‘रंगीन रातें तक गीता बाली केदार शर्मा के जीवन की प्रेरणा बन रही।
‘रंगीन रातें में तो उन्होंने शुरू से अंत तक पुरुष भेष में ही काम किया। ‘बाजी के निर्देशक गुरुदत्त इसी फिल्म के दौरान इनकी ओर आकर्षित हुए पर गीता बाली ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया तो गुरुदत्त ने गायिका गीता दत्त से शादी कर ली। केदार शर्मा और गीता बाली के बीच काफी प्रेम अफवाहें फैली लेकिन गीता बाली उन्हें अपना गुरु मानती रहीं। गीता बाली के स्वभाव की विशेषता थी कि वह खुलकर अभिनय करती थीं और खुलकर बातें करती थीं। कई लोग भ्रम में पड़ जाते थे कि वो उनसे प्यार करती हैं।
यह दुर्भाग्य ही है कि इनको बहुत बड़ी-बड़ी फिल्म न मिल सकी और मिली तो इनको सहनायिका के रोल ही से संतुष्ट होना पड़ा। नूतन की ही तरह इनको भारतीय फिल्मों के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ नायिका बनने का मौका नहीं मिल सका। ज्ञात रहे गीता बाली दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर खान की नायिका बन कर कई फिल्मों में आई।
सुखद जीवन व्यतीत करते-करते गीताबाली के जीवन का अचानक अंत ऐसा हुआ जो किसी भी अभिनेत्री का नहीं हुआ होगा। गीताबाली को चेचक निकली और उन्हें बचाने का बहुत प्रयास किया गया पर प्रकोप कुछ ऐसा हुआ कि अंत में वह उनके प्राण ही लेकर गया। गीता बाली 21 जनवरी 1965 को सबको छोड़ कर सदा-सदा के लिये चली गयी। फोटो in.pinterest.com से