जयंती पर विशेष- साहिर लुधियानवी प्रसिद्ध गीतकार और कवि थे। साहिर ने जब लिखना शुरू किया तब इकबाल, फैज, फिराक आदि शायर अपनी बुलंदी पर थे, पर उन्होंने अपना जो विशेष लहजा और रुख अपनाया, उससे न सिर्फ उन्होंने अपनी अलग जगह बना ली बल्कि वे भी शायरी की दुनिया पर छा गये। साहिर ने लिखा -दुनिया के तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में जो कुछ मुझे दिया है, लौटा रहा हूँ मैं।
अब्दुलहयी ‘साहिर’ 08 मार्च 1921 लुधियाना, पंजाब के जागीरदार घराने में पैदा हुए। उनकी माँ के अतिरिक्त उनके वालिद की कई पत्नियाँ और भी थीं। किन्तु एकमात्र सन्तान होने के कारण उसका पालन-पोषण बड़े लाड़-प्यार में हुआ। पति से तंग आकर उसकी माता पति से अलग हो गई और चूँकि ‘साहिर’ ने कचहरी में पिता पर माता को
प्रधानता दी थी, इसलिए उसके बाद पिता से और उसकी जागीर से उनका कोई सम्बन्ध न रहा और इसके साथ ही जीवन की कठिनाइयों और निराशाओं का दौर शुरू हो गया। साहिर की शिक्षा लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में हुई। 1939 में जब वे गवर्नमेंट कॉलेज के विद्यार्थी थे अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ जो कि असफल रहा। कॉलेज के दिनों में वे अपने शेर और शायरी के लिए प्रख्यात हो गए थे और अमृता इनकी प्रशंसक थीं। अमृता के परिवार वालों को आपत्ति थी क्योंकि साहिर मुस्लिम थे। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिये उन्होंने तरह तरह की छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं। कॉलेज से निकाले जाने के बाद साहिर ने अपनी पहली किताब पर काम शुरू कर दिया। 1943 में उन्होंने ‘तल्खियां’ नाम से अपनी पहली शायरी की किताब प्रकाशित करवाई। ‘तल्खियां’ से साहिर को एक नई पहचान मिली। इसके बाद साहिर ‘अदब-ए-लतीफ’, ‘शाहकार’ और ‘सवेरा’ के संपादक बने। साहिर प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन से भी जुड़े रहे थे। ‘सवेरा’ में छपे कुछ लेख से पाकिस्तान सरकार नाराज हो गई और साहिर के खिलाफ वारंट जारी कर दिया दिया।
1949 में साहिर दिल्ली चले आए। कुछ दिन दिल्ली में बिताने के बाद साहिर मुंबई में आ बसे। 1948 में फिल्म आजादी की राह पर से फिल्मों में उन्होंने कार्य करना प्रारम्भ किया। यह फिल्म असफल रही। साहिर को 1951 में आई फिल्म नौजवान के गीत ठंडी हवाएं लहरा के आए .से प्रसिद्धी मिली। इस फिल्म के संगीतकार एस डी बर्मन थे। गुरुदत्त के निर्देशन की पहली फिल्म बाजी ने उन्हें प्रतिष्ठित किया। इस फिल्म में भी संगीत बर्मन साहब का था, इस फिल्म के सभी गीत मशहूर हुए। साहिर ने सबसे अधिक काम संगीतकार एन दत्ता के साथ किया। दत्ता साहब साहिर के जबरदस्त प्रशंसक थे। 1955 में आई मिलाप के बाद मेरिन ड्राइव, लाईट हाउस, भाई बहन, साधना, धूल का फूल, धरम पुत्र और दिल्ली का दादा में गीत लिखे। गीतकार के रूप में उनकी पहली फिल्म थी बाजी, जिसका गीत तकदीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले…बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने हमराज, वक्त, धूल का फूल, दाग, बहू बेगम, आदमी और इंसान, धुंध, प्यासा सहित अनेक फिल्मों में यादगार गीत लिखे। साहिर जी ने शादी नहीं की, पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नगमों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। निराशा, दर्द, कुंठा, विसंगतियों और तल्खियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के लिखे नगमें दिल को छू जाते हैं।
लिखे जाने के 50 साल बाद भी उनके गीत उतने ही जवाँ हैं, जितने की पहले थे। समाज के खोखलेपन को अपनी कड़वी शायरी के मार्फत लाने वाले इस विद्रोही शायर ने लिखा-जिन्दगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में इश्क ही एक हकीकत नहीं कुछ और भी है…….इन सब के बीच संघर्ष के लिए प्रेरित करता गीत,जिन्दगी भीख में नहीं मिलती जिन्दगी बढ़ के छीनी जाती है अपना हक संगदिल जमाने में छीन पाओ की कोई बात बने……बेटी के विदाई पर पिता के दर्द और दिल से दिए आशीर्वाद को उन्होंने कुछ इस तरह से बयान किया,बाबुल की दुआएँ लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले……(नीलकमल) समाज में आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश उन्होंने अपने गीत में इस तरह पिरोया,तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा……(धूल का फूल) । साहिर की लोकप्रियता काफी थी और वे अपने गीत के लिए लता मंगेशकर को मिलने वाले पारिश्रमिक से एक रुपया अधिक लेते थे। इसके साथ ही ऑल इंडिया रेडियो पर होने वाली घोषणाओं में गीतकारों का नाम भी दिए जाने की मांग साहिर ने की, जिसे पूरा किया गया। इससे पहले किसी गाने की सफलता का पूरा श्रेय संगीतकार और गायक को ही मिलता था। हिन्दी (बॉलीवुड) फिल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। उनके गीतों में संजीदगी कुछ इस कदर झलकती है जैसे ये उनके जीवन से जुड़ी हों। उनका नाम जीवन के विषाद, प्रेम में आत्मिकता की जगह भौतिकता तथा सियासी खेलों की वहशत के गीतकार और शायरों में शुमार है। साहिर वे पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी। फिल्म ताजमहल के बाद कभी कभी के लिए उन्हें उनका दूसरा फिल्म फेयर अवार्ड मिला। साहिर जी को अनेक पुरस्कार मिले, पद्म श्री से उन्हें सम्मानित किया गया, पर उनकी असली पूंजी तो प्रशंसकों का प्यार था। अपने देश भारत से वह बेहद प्यार करते थे। साहिर ने विवाह नहीं किया। उनकी जिंदगी बेहद तन्हा रही। पहले अमृता प्रीतम के साथ प्यार की असफलता और इसके बाद गायिका और अभिनेत्री सुधा मल्होत्रा के साथ भी असफल प्रेम से जमीन पर सितारों को बिछाने की हसरत अधूरी रह गई। अंततः 25 अक्टूबर, 1980 को दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया।एजेन्सी।