अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म के लिए धर्मेन्द्र ने कभी नहीं पूछा कि उनका रोल क्या है? कितना लंबा है? कितने पैसे मिलेंगे? जब भी अर्जुन की फिल्म का ऑफर धर्मेन्द्र को मिलता वे हंसते-हंसते फिल्म साइन कर लेते। दरअसल धर्मेन्द्र उस अहसान को चुकाने की कोशिश करते जो अर्जुन ने उन पर किया था। धर्मेन्द्र का मानना था कि इस अहसान का कर्ज वे कभी भी चुका नहीं सकते हैं, लेकिन उनकी थोड़ी-बहु्त कोशिश उनके दिल को सुकून देती थी।
धर्मेन्द्र के अलावा फिल्म अभिनेत्री साधना को लांच करने का श्रेय भी अर्जुन हिंगोरानी को जाता है। साधना को लेकर अर्जुन ने सिंधी फिल्म ‘अबाना’ (1958) निर्देशित की थी।
1960 में अर्जुन हिंगोरानी ने धर्मेंद्र को दिल भी तेरा हम भी तेरे फ़िल्म से लांच किया था। अपने तीन दशक से अधिक के लंबे करियर में हिंगोरानी ने अधिकतर फिल्में धर्मेंद्र के साथ बनाई थीं । इन की दोस्ती फिल्मी दुनिया में किसी से छिपी नहीं थी। अर्जुन हिंगोरानी ने धर्मेंद्र के साथ कब?क्यों?और कहां?, कहानी किस्मत की, खेल खिलाड़ी का, सल्तनत और कौन करे कुर्बानी फिल्में बनाई थीं ।
अर्जुन हिंगोरानी (15 नवम्बर 1926) अपनी फिल्मों के टाइटल में तीन ‘क’ को बहुत शुभ मानते थे.एक दफा उनकी फिल्म सल्तनत के टाइटल में तीन क लगाने के लिए उन्होंने फिल्म के नाम के साथ टैगलाइन जोड़ दी-‘कारनामे कमाल के। निर्देशन के अलावा अर्जुन हिंगोरानी ने एक्टिंग में भी हाथ आजमाया था। अभिनेत्री अनीता राज ने 1992 में सुनील हिंगोरानी से शादी की थी। अर्जुन हिंगोरानी के पुत्र सुनील हिंगोरानी से शादी करने के बाद अनीता फिल्मों से दूर हो गई थीं। अर्जुन हिंगोरानी का दूसरा बेटा अमित हिंगोरानी अभिनेता है, जिसे ‘कैसे कहूं. प्यार है (2003)’ और ‘बाज़ार: लव ऑफ़ मार्केट, लस्ट एंड डिजायर (2004)’ के लिए जाने जाते हैं । उनकी बेटी करिश्मा हिंगोरानी अभिनेत्री हैं और 1991 में रिलीज हुई फिल्म “कौन कर कुर्बानी” में अभिनय किया था ।
अर्जुन हिंगोरानी वे पहले फिल्मकार थे जब उन्होंने धर्मेन्द्र को अपनी फिल्म के लिए साइन किया था। मुंबई में अभिनेता बनने आए धर्मेन्द्र संघर्ष करते-करते हौंसला खो चुके थे। अकेले पड़ गए थे, तब अर्जुन ने उनके कंधों पर हाथ रखा था। ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ (1960) के लिए उन्होंने धर्मेन्द्र को साइन किया था जो उनकी पहली फिल्म थी।इसके बाद धर्मेन्द्र ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और सफलता की नई परिभाषा लिख दी। दशकों तक हिंगोरानी फिल्में बनाते रहे। उन्होंने धर्मेन्द्र को लेकर ‘कब क्यूं और कहा (1970), कहानी किस्मत की (1973), खेल खिलाड़ी का (1977), कातिलों के कातिल (1981), कौन करे कुर्बानी (1991) भी बनाई। उनकी फिल्मों के नाम में ‘तीन के’ आते थे। उनका विश्वास था कि इस तरह का नाम उन्हें सफलता दिलाता है। ‘कैसे कहूं के… प्यार है’ (2003) उनके द्वारा निर्मित अंतिम फिल्म थी। ‘हाउ टू बी हैप्पी’ और ‘रियलाइज़ योअर ड्रीम्स’ उन्होंने दो किताबें भी लिखीं।
ऋषि कपूर ने मजेदार बात बताई। उन्होंने अर्जुन और धर्मेन्द्र के साथ कातिलों के कातिल फिल्म की थी। ऋषि ने ट्वीट कर बताया कि जब शॉट रेडी होता था तब अर्जुन अपने सहयोगी से कहते थे- ‘ऋषि साहब को बुलाइए’ और जब धर्मेन्द्र को बुलाना होता था तब वे चिल्लाते थे ‘धरमेन को बुलाओ’। धर्मेन्द्र चुपचाप आपकर अर्जुन की सारी बातें मानते थे।इन्हीं अर्जुन हिंगोरानी का जब 5 मई 2018 को वृंदावन में 92 वर्ष की उम्र में निधन हुआ तो धर्मेन्द्र बेहद दु:खी हो गए। उन्होंने ट्वीट कर अपने दु:ख का इज़हार भी किया। साथ में अर्जुन और अपना फोटो भी शेयर किया।एजेंसी।