सर सय्यद वज़ीर हसन … (14 मई 1874 ) सर की उपाधि अंग्रेजों ने दी थी और लखनऊ में चीफ जज हुआ करते थे…. जो बाद में मोतीलाल नेहरु के सम्पर्क में आकर कांग्रेस के सचिव बन गए ….। उनके हुए पांच बेटे एक आई सी एस, एक मुस्लिम लीग के बड़े लीडर, एक कांग्रेसी साथ में साइटिस्ट और चौथे थे सज्जाद ज़हीर ….,।
सज्जाद साहब को पढने भेजा गया लन्दन…..। लेकिन जनाब ने वहां जाकर नींव रख दी प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन की…… । भारत वापस आये तो मुंशी प्रेम चंद से शुरुआत करवाई प्रोग्रेसिव राइटर्स असोसिएशन…… । देशभक्ति का कीडा था तो शुरू कर दिया अखबार… “कौमी जंग” देखते देखते कौमी जंग बम्बई के जाने माने अखबारों में शामिल हो गाया…..। लेकिन मजेदार बात यह थी कि हिंदी इंग्लिश और उर्दू तीन भाषाओं में छपने वाला यह अखबार चलते थे सिर्फ़ दो लोग… सज्जाद ज़हीर और अली सरदार जाफरी…..। अखबार छपते ही यह दोनों सड़कों पर हेडलाइन चिल्लाते हुए अखबार हाथ में उठाये घुमते…. । अब दो लम्बे चौड़े खूबसूरत पढ़े लिखे जवानों को इस तरह अखबार बेचता देख सबका ध्यान उधर जाने लगा और धीरे यह कौमी जंग बन गया बम्बई मुंबई का एक मुख्य अखबार……और यही बना मरकज़ भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का भी…..। जहाँ यह लोग रहा करते थे उस बड़े कमरे का नाम ही रख दिया गया था रेड फ्लैग हॉल….. । सज्जाद ज़हीर बहुत बड़ा नाम था भारतीय वामपंथ का, लेकिन सबसे मजेदार बात यह रही कि खुद साथी कामरेडस ने उन्हें भुला दिया….. । सज्जाद ज़हीर को पकिस्तान में फांसी तक की नौबत आ गई लेकिन जिंदा दिल इंसान थे कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की उन्होंने….. । बच कर भारत आये और शुरू किया एफ्रो एशियन राइटर्स एसोसिएशन और एक बार इसी सिलसिले में विदेश दौरा करते हुए वोह दुनिया छोड़ गए….। उनके साथ गए हुए फैज़ अहमद फैज़ साहब उनकी लाश लेकर वापस आये ….. । अब दुनिया में सिर्फ चंद ही लोग जिंदा रह गए हैं जो आपको सज्जाद ज़हीर यानी बन्ने मियाँ की कहानी सूना पाएंगे… । जनाब हैदर रिज़वी की फेसबुक वॉल से ।