स्वप्निल संसार’। आनंद बख्शी का जन्म रावलपिंडी (अब पाकिस्तान ) में 21 जुलाई 1930 को हुआ था। बख्शी उनके परिवार का उपनाम था, उनके परिजनों ने उनका नाम आनंद प्रकाश रखा था, फिल्मी दुनिया में आने के बाद आनंद बख्शी के नाम से उनकी पहचान बनी। आनंद बख्शी के दादाजी सुधरमल वैद बख्शी रावलपिण्डी में ब्रिटिश राज के दौरान सुपरिंटेंडेण्ट ऑफ पुलिस थे। उनके पिता मोहन लाल वैद बख्शी रावलपिण्डी में बैंक मैनेजर थे।
आनंद बख्शी ने केवल 10 वर्ष की आयु में अपनी माँ सुमित्रा को खो दिया और अपनी पूरी जिंदगी मातृ प्रेम के पिपासु रह गए। उनकी सौतेली माँ ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। इस तरह से आनंद अपनी दादीमाँ के और करीब हो गए। आनंद बख्शी ने अपनी माँ के प्यार को सलाम करते हुए कई गानें भी लिखे जैसे कि माँ तुझे सलाम (खलनायक), माँ मुझे अपने आंचल में छुपा ले (छोटा भाई), तू कितनी भोली है (राजा और रंक) और मैंने माँ को देखा है (मस्ताना)। मोम की गुडिया 1972 की फिल्म थी। यह मोहन कुमार की फिल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे रतन चोपड़ा और तनूजा। यह कम बजट की फिल्म थी, जिसमें संगीतकार थे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। यही वह फिल्म थी जिसमें पहली बार आनंद बख्शी को गीत गाने का मौका मिला था। एक बार मोहन कुमार ने बख्शी साहब को एक चैरिटी फंक्शन में गाते हुए सुन लिया था। उसके बाद उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को राजी करवाया कि वो कम से कम एक गीत बख्शी साहब से गवाए मोम की गुडिया में। और इस तरह से बख्शी साहब ने एक एकल गीत गाया मैं ढूंढ रहा था सपनों में। यह गीत सब को इतनी पसंद आया कि मोहन कुमार ने सब को आश्चर्य चकित करते हुए घोषणा कर दी कि आनंद बख्शी एक डुएट भी गाएँगे लता मंगेशकर के साथ। और इस तरह से बना बागों में बहार आई। इस गीत के रिकार्डिंग के बाद बख्शी साहब ने उनके साथ युगल गीत गाने के लिए लता जी को फूलों का एक गुलदस्ता उपहार में दिया। फिल्म के ना चलने से ये गानें भी ज्यादा सुनाई नहीं दिए, लेकिन इस युगल गीत को आनंद बख्शी पर केन्द्रित हर कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। आनंद बख्शी बचपन से ही फिल्मों में काम करके शोहरत की बुंलदियों तक पहुंचने का सपना देखा करते थे, लेकिन लोगों के मजाक उड़ाने के डर से उन्होंने अपनी यह मंशा कभी जाहिर नहीं की थी। वह फ़िल्मी दुनिया में गायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे।
आनंद बख्शी अपने सपने को पूरा करने के लिए 14 वर्ष की उम्र में ही घर से भागकर फिल्म नगरी बम्बई अब मुंबई आ गए, जहाँ उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में कैडेट के तौर पर 2 वर्ष तक काम किया। किसी विवाद के कारण उन्हें वह नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद 1947 से 1956 तक उन्होंने भारतीय सेना में भी नौकरी की। बचपन से ही मजबूत इरादे वाले आनंद बख्शी अपने सपनों को साकार करने के लिए नए जोश के साथ फिर मुंबई पहुंचे, जहाँ उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर अभिनेता भगवान दादा से हुई। शायद नियति को यही मंजूर था कि आनंद बख्शी गीतकार ही बने। भगवान दादा ने उन्हें अपनी फिल्म बड़ा आदमी में गीतकार के रूप में काम करने का मौका दिया। इस फिल्म के जरिए वह पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हो पाए, लेकिन एक गीतकार के रूप में उनके सिने कॅरियर का सफर शुरू हो गया। अपने वजूद को तलाशते आनंद बख्शी को लगभग 7 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा। 1965 में जब जब फूल खिले प्रदर्शित हुई तो उन्हें उनके गाने परदेसियों से न अंखियां मिलाना.., ये समां समां है ये प्यार का.., एक था गुल और एक थी बुलबुल.. सुपरहिट रहे और गीतकार के रुप में उनकी पहचान बन गई। इसी वर्ष फिल्म हिमालय की गोद में उनके गीत चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था.. को भी लोगों ने काफी पसंद किया। 1967 में प्रदर्शित सुनील दत्त और नूतन अभिनीत फिल्म मिलन के गाने सावन का महीना पवन कर शोर.., युग युग तक हम गीत मिलन के गाते रहेंगे.., राम करे ऐसा हो जाए.. जैसे सदाबहार गानों के जरिए उन्होंने गीतकार के रूप में नई ऊंचाइयों को छू लिया।
चार दशक तक फिल्मी गीतों के बेताज बादशाह रहे आनंद बख्शी ने 550 से भी ज्यादा फिल्मों में लगभग 4000 गीत लिखे। यह सुनहरा दौर था जब गीतकार आनन्द बख्शी ने संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ काम करते हुए फर्ज (1967), दो रास्ते (1969), बॉबी (1973), अमर अकबर एन्थॉनी (1977), इक दूजे के लिए (1981) और राहुल देव बर्मन के साथ कटी पतंग (1970), अमर प्रेम (1971), हरे रामा हरे कृष्णा (1971) और श्लव स्टोरी (1981) फिल्मों में अमर गीत दिये। फिल्म अमर प्रेम (1971) के बड़ा नटखट है किशन कन्हैया, कुछ तो लोग कहेंगे, ये क्या हुआ, और रैना बीती जाये जैसे उत्कृष्ट गीत हर दिल में धड़कते हैं और सुनने वाले के दिल की सदा में बसते हैं। अगर फिल्म निर्माताओं के साक्षेप चर्चा की जाये तो राज कपूर के लिए बॉबी (1973),सत्यम् शिवम् सुन्दरम् (1978) य सुभाष घई के लिए कर्ज (1980), हीरो (1983), कर्मा (1986), राम-लखन (1989), सौदागर (1991), खलनायक (1993), ताल (1999) और यादें (2001)य और यश चोपड़ा के लिए चाँदनी (1989), लम्हें (1991), डर (1993), दिल तो पागल है (1997) आदित्य चोपड़ा के लिए दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995), मोहब्बतें (2000) फिल्मों में सदाबहार गीत लिखे।
आनंद बख्शी ने शैलेंद्र सिंह, उदित नारायण, कुमार सानू, कविता कृष्णमूर्ति और एस. पी. बालसुब्रय्मण्यम अनेक गायकों के पहले गीत का बोल भी लिखा है। आनंद बख्शी 40 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किये गये और चार बार यह पुरस्कार उनके खाते में आया। अंतिम बार 1999 में सुभाष घई की ताल के गीत इश्क बिना क्या जीना के लिए उन्हें फिल्मफेयर से नवाजा गया था। इसके अलावा भी उन्होंने कई पुरस्कार प्राप्त किए थे।
सिगरेट के अत्यधिक सेवन की वजह से वह फेफड़े तथा दिल की बीमारी से ग्रस्त हो गए। आखिरकार 72 साल की उम्र में अंगों के काम करना बंद करने के कारण 30 मार्च, 2002 को उनका निधन हो गया।