जयंती पर विशेषः फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितम्बर 1939 को बंगलौर में हुआ था। उनके पिता पठान थे जबकि माता ईरानी थी । उनके तीन और भाई भी फिल्मों से जुड़े एक हैं संजय ख़ान दूसरे हैं अकबर खान और तीसरे हैं समीर खान । समीर ने फिल्म निर्माण का क्षेत्र चुना । फ़िरोज़ ख़ान ने सुंदरी के साथ जिन्दगी का सफर 1965 में शुरू किया। दोनो 2० साल तक साथ रहे। 1985 में उनके बीच तलाक हो गया।
फ़िरोज़ ख़ान ने 196० में दीदी से अपनी फिल्मी सफर शुरू किया। दर्जनों फिल्मों में अभिनय किया। कई फिल्में निर्देशित कीऔर भी कई भूमिकाओं से जुड़े रहे। लगभग पांच दशक का फिल्मी सफर तय करते हुए फ़िरोज़ ख़ान 2007 में आखिरी फिल्म वेलकम जिसमें वे खास अंदाज में पेश आए उनका आरडीएक्स उपनाम खासा चर्चित रहा ।
आदमी और इंसान फिल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड मिला उसके अलावा फ़िरोज़ ख़ान ने ऊंचे लोग मैं वहीं हूं अपराध उपासना मेला आग फिल्मों से पहचान मिली फिल्म धर्मात्मा जाबाज कुर्बानी दयावान फिल्मों ने उन्हें शोहरत दिलाई । पूरी तरह से भारतीय होने के बावजूद अभिनेता निर्देशक फ़िरोज़ ख़ान की जीवन शैली और परदे पर उनका कैरेक्टर हॉलीवुड के काउबॉय स्टाइल का रहा है।
फ़िरोज़ ख़ान हॉलीवुड अभिनेता क्लींट ईस्टवुड से इतने अधिक प्रभावित थे कि अपने को बॉलीवुड का ईस्टवुड समझते थे। सत्तर के दशक में उन्होंने काउबॉय स्टाइल की अनेक फिल्मों में काम किया। ऐसी फिल्मों में काला सोना अपराध खोटे सिक्के के नाम गिना जा सकते हैं। रफ टफ चेहरा ऊँचा कद सिर पर बड़ा सा टोप हाथ में सिगार कंधे पर बंदूक हाथ में पिस्तौल कमर में बँधा बुलेट बेल्ट लांग लेदर शू और जम्प कर घोड़े पर बैठने की उनकी अदा ने दर्शकों को काफी लुभाया था। जब फ़िरोज़ ख़ान हिंदी सिनेमा के लाइम लाइट में आए तब चिकने चाकलेटी चेहरों वाले नायकों का दौर था। इसलिए शहरी और ग्रामीण दर्शकों को उनकी ये अदाएँ दिलचस्प लगीं। लंबी कारों में सवारी करना और जेम्स बांड स्टाइल में आगे पीछे घूमने वाली सुंदर लड़कियों से घिरे रहना उनका शगल था। अपनी नई एक्टिंग स्टाइल के जरिये
फ़िरोज़ ख़ान उस समय के अनेक हीरो के आँख की किरकिरी बन गए थे। मसलन रामानंद सागर की फिल्म आरजू के असली हीरो राजेन्द्र कुमार थे लेकिन छोटे रोल में
फ़िरोज़ ख़ान ने सबका ध्यान आकर्षित किया थी। असित सेन की फिल्म सफर में राजेश खन्ना जैसे सितारे की मौजूदगी के बावजूद फिरोज खान ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। पचास के दशक की फिल्में दीदी और जमाना से उन्होंने अपना करियर शुरू किया था। रिपोर्टर राजू 1962 में पहली बार एक पत्रकार के रोल में उन्हें हीरो का चांस मिला था। वैसे उन्होंने एक्टिंग की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी फिर भी कैमरा फेस करना और दर्शकों को लुभाने की कला में वे माहिर रहे। उन्हें लेडी किलर खान भी कहा जाता था।
खासकर कुर्बानी फिल्म में उनका और जीनत अमान का बिंदासपन दर्शकों को बेहद आकर्षित कर गया था। अपने खाने पीने मौज मस्ती करने की आदतों के चलते उन्होंने कई अच्छी फिल्मों के ऑफर ठुकरा दिए। जैसे राजकपूर की फिल्म संगम में राजेन्द्र कुमार और आदमी में मनोज कुमार का रोल उनके हाथ से फिसल गया जिसका अफसोस उन्हें लंबे समय तक बना रहा। बम्बइया फिल्म इंडस्ट्री में भेदभाव के शिकार हुए फ़िरोज़ ख़ान ने 1972 से अपना प्रोडक्शन हाउस आरंभ किया और पहली फिल्म अपराध को हॉलीवुड शैली में पेश किया।
हाई वोल्टेज ड्रामा और एक्शन से भरपूर फिल्में धर्मात्मा कुर्बानी और जाँबाज को दर्शकों ने खूब सराहा। कुर्बानी में नाजिया हसन से उन्होंने गवाया आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए तो बात बन जाए। यह गाना नशीली धुन और फिल्मांकन के कारण खूब लोकप्रिय हुआ था। जाँबाज फिल्म को खास सफलता नहीं मिली। फ़िरोज़ ख़ान का मानना था कि यह समय से आगे की फिल्म है। इस स्टाइलिस्ट फिल्म को टीवी पर खूब देखा गया। इसके बाद दयावान यलगार जांनशी और प्रेम अगन फिल्में टिकट खिड़की पर मार खा गईं। फ़िरोज़ ख़ान इसके बाद गुमनामी के अँधेरे में चले गए। अपने तीन और भाइयों संजय अकबर समीर में सबसे चमकीले फिरोज खान ही रहे। उनका योगदान पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच पुल जैसा था। अपने बेटे फरदीन के करियर को चमकाने की उन्होंने कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी। कुछ फिल्मों में फ़िरोज़ ख़ान ने चरित्र रोल भी निभाए लेकिन शेर भले ही बूढ़ा हो जाए वह घास नहीं खाता अंदाज में फिरोज ने अपनी आन बान शान हमेशा कायम रखी।