बदरुद्दीन तैयबजी अपने समय के प्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश और कांग्रेस के नेता थे। इनका जन्म 10 अक्टूबर, 1844 को बम्बई अब मुम्बई के धनी मुस्लिम परिवार में हुआ था। बदरुद्दीन प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद क़ानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड चले गए और वहां से बैरिस्टर बन कर लौटे। उन्होंने बम्बई अब मुम्बई में जिस समय वकालत शुरू की तब वहां न तो कोई न्यायाधीश भारतीय था, न कोई वकील। प्रतिभा और योग्यता के बल पर शीघ्र ही बदरुद्दीन तैयब जी की गणना उच्च कोटि के भारतीय वकीलों में होने लगी। फ़िरोज शाह मेहता, उमेशचंद्र बनर्जी, दादा भाई नैरोजी आदि के संपर्क में आने पर वे सार्वजनिक कार्यों में भी रूचि लेने लगे। उन्होंने ‘बम्बई प्रेसिडेंसी एसोसिएशन’ की स्थापना की और मुसलमानों में शिक्षा का प्रचार करने के लिए ‘अंजुमने इस्लाम’ को जन्म दिया। वे महिलाओं की आज़ादी और शिक्षा के भी समर्थक थे। उन्होंने अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाई और अपने परिवार की महिलाओं का पर्दा भी समाप्त कराया, जो उन दिनों बड़े साहस का काम था। वे धर्मनिरपेक्ष समाज की कल्पना करते थे। अपनी निष्पक्षता के लिए भी उनकी बड़ी ख्याति थी। बाद में जब उनकी नियुक्ति ‘बम्बई हाईकोर्ट’ के न्यायाधीश के पद पर हुई, तो बाल गंगाधर तिलक पर सरकार द्वारा चलाये गये राजद्रोह के मुकदमे में तिलक को जमानत पर छोड़ने का साहसिक कार्य तैयब जी ने ही किया था।
19वी शताब्दी के अंत में भारत के प्रमुख नेता थे जब देश आज़ादी की शुरुआती जंग के चरण में था। तैयबजी अनेक प्रतिभाओं के व्यक्ति थे। वे बड़े नेता, समाज सुधारक, शिक्षाविद और क़ानून के ज्ञाता थे। उन्हें ‘बॉम्बे उच्च न्यायालय का प्रथम भारतीय अधिवक्ता’ होने का गौरव प्राप्त है। वे हिन्दू- मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। तैयबजी का विश्वास था कि सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताएं देश के हितों को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में आड़े नहीं आनी चाहिए। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की संकल्पना ऐसे समय पर प्रसारित की जब देश के राजनीतिक मामलों में इसका बहुत कम महत्व था। बदरुद्दीन तैयबजी का देहांत 19 अगस्त, 1909 को हुआ था।एजेन्सी।