रक्षा बंधन का पर्व श्रावण (सावन) मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, यह पर्व भाई-बहन के अटल रिश्तों की डोर का प्रतीक है, भारतीय परम्पराओं का यह एक ऐसा पर्व है, जो भाई-बहन के स्नेह के साथ हर सामाजिक सम्बन्ध को मजबूत करता है, इस लिए यह पर्व भाई-बहन के साथ सांस्कृतिक, सामाजिक महत्व भी रखता है। रक्षा बंधन के महत्व को समझने के लिए सबसे पहले इसके अर्थ को समझना होगा, ‘रक्षाबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है रक्षा+बंधन अर्थात एक ऐसा बंधन जो रक्षा करने का वचन लें। इस दिन भाई अपनी बहन के दायित्वों का वचन अपने ऊपर लेते है, रक्षा बंधन का पर्व विशेष रूप से भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है। एक ऐसा बंधन जो दो जनों को स्नेह के धागों से बांध ले। रक्षाबंधन को भाई-बहन तक ही सीमित रखना सही नहीं होगा। बल्कि ऐसा कोई भी बंधन जो किसी को भी बांध सकता है। भाई-बहन के रिश्तों की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए यह बंधन आज गुरू का शिष्य को राखी बांधना, एक भाई का दूसरे भाई को राखी बांधना, माता-पिता का संतान को राखी बांधना हो सकता है।
आज के परिपेक्ष्य में राखी केवल बहन का रिश्ता स्वीकारना नहीं है अपितु राखी का अर्थ है, जो यह विश्वास का धागा बांधता है, वह राखी बंधवाने वाले व्यक्ति के दायित्वों को स्वीकार करता है, उस रिश्ते को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता है। वर्तमान समाज में हम सब के सामने जो सामाजिक कुरीतिया सामने आ रही है, उन्हें दूर करने में रक्षा बंधन का पर्व सहयोगी हो सकता है। आज जब हम बुजुर्ग माता-पिता का सहारा ढ़ंूढ़ते हुए वृद्ध आश्रम जाते हुए देखते है, तो अपने विकास और उन्नति पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ पाते है, इस समस्या का समाधान राखी पर माता-पिता को राखी बांधना, पुत्र-पुत्री के द्वारा माता पिता की जीवन भर हर प्रकार के दायित्वों की जिम्मेदारी लेना भी हो सकता है। इस तरह समाज की इस मुख्य समस्या का समाधान किया जा सकता है, इस प्रकार रक्षाबंधन को केवल भाई बहन का पर्व न मानते हुए हम सभी को अपने विचारों के दायरे को विस्तृत करते हुए, विभिन्न संदर्भो में इसका महत्व समझना होगा। संक्षेप में इसे अपनत्व और प्यार के बंधन से रिश्तो को महबूत करने का पर्व समझना चाहिए। बंधन का यह तरीका ही भारतीय संस्कृति को दुनिया की अन्य सस्कृतियों से अलग पहचान देता है। आज समय के साथ पर्व की शुभता में कोई कमी नही आई है, बल्कि इसका महत्व और बढ़ गया है, आज के सीमित परिवारों मे कई बार घर मे केवल दो बहनें या दो भाई ही होते है, इस स्थिति में वे रक्षा बंधन के त्योहार पर मासूम होते है कि वे रक्षा बंधन का पर्व किस प्रकार मनाएंगे, उन्हें राखी कौन बांधेगा, या फिर वे किसे राखी बांधेगी इस प्रकार की स्थिति सामान्य रूप से हमारे आस-पास देखी जा सकती है।
ऐसा नहीं है कि केवल भाई-बहन के रिश्तों को ही मजबूती या राखी की आवश्यकता होती है, जबकि बहन का बहन को और भाई का भाई को राखी बांधना एक दूसरे को करीब लाता है। उनके मध्य मतभेद मिटाता है। आधुनिक युग में समय की कमी ने रिश्तों में एक अलग तरह की दूरी बना दी है, जिसमें एक दूसरे के लिए समय नहीं होता, इसके कारण परिवार के सदस्य भी आपस मे बातचीत नहीं कर पाते है। संप्रेषण की कमी, मतभेदों को जन्म देती है और गलतफहमियों को स्थान मिलता है, अगर इस दिन बहन-बहन, भाई-भाई को राखी बांधते हैं तो इस प्रकार की समस्याओं से निपटा जा सकता है। यह पर्व सांप्रदायिकता और वर्ग जाति की दीवार को गिराने में मुख्य भूमिका निभा सकता है, जरूरत है तो केवल एक कोशिश की। आज जब हम रक्षा बंधन पर्व को एक नये रूप में मनाने की बात करते है, तो हमें समाज, परिवार और देश से भी परे आज जिसे बचाने की जरूरत है, वह है ये धरती माता, हमारी जीवन रक्षक प्रकृति। जल और हवा की रक्षा के साथ वृक्षारोपण, राखी के इस पावन पर्व पर हम सभी को एकजुट होकर यह संकल्प लें, राखी के दिन एक स्नेह की डोर एक वृक्ष को बांधे और उस वृक्ष की रक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर लें। वृक्षों को देवता मान कर पूजन करने में मानव जाति का स्वार्थ निहित होता है। जो प्रकृति आदिकाल से हमे निस्वार्थ भाव से केवल देती आ रही है, उसकी रक्षा के लिए भी हमें इस दिन कुछ करना चाहिए।
‘हमारे शास्त्रों में कई जगह यह उल्लेखनीय है कि जो मानव वृक्ष को बचाता है, वृक्ष को लगाता है, वह दीर्घकाल तक स्वर्ग लोक मे निवास पाकर भगवान इन्द्र के समान सुख भोगता है। पेड़ पौधे बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के वातावरण मे स्वंय को अनुकूल रखते हुए, मनुष्य जाति को जीवन दे रहे होते है, इस धरा को बढ़ाने के लिए राखी के दिन वृक्षो की रक्षा का संकल्प लेना, बेहद जरूरी हो गया है। आइये हम सब मिलकर राखी का एक धागा बांधकर एक वृक्ष की रक्षा का वचन लें। रक्षा बंधन का धार्मिक एवं सामाजिक महत्व अत्यधिक खास है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार रक्षा बंधन का त्योहार न केवल भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की गहराई को दर्शाता है बल्कि सम्पूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बंधने का भी संदेश देता है। प्राचीन समय में लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिए ऋषि-मुनि अपने शिष्यों का उपाकर्म कराकर उन्हें विद्या-अध्ययन कराना प्रारंभ करते थे, उपाकर्म के दौरान पंचगव्य का पान करवाया जाता है जिसके बाद जब शिष्य घर लौटते है तो बहनें राखी बांधकर अपने भाइयों का स्वागत किया करती थीं। इस प्रकार रक्षा बंधन जहां विश्वास के मजबूत धागों में हमें बांधता है, वहीं प्रकृति के संरक्षण का संदेश भी देता है। समाज में सद्भाव और एक दूसरे के प्रति दायित्व भी याद दिलाता है। (हिफी)