स्मृति शेष। नई दिल्ली। एजेन्सी । राजेन्द्र कुमार धवन राजनीतिज्ञ थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और राज्य सभा सांसद थे। वह भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे। आर. के. धवन इंदिरा गाँधी की हत्या के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे। उन्होंने 1962 से 1984 तक इंदिरा गांधी के साथ काम किया। उनके बारे में कहा जाता है कि इंदिरा युग में उनकी स्थिति देश के दूसरे या तीसरे नंबर के ताकतवर शख्सियत के रूप में होती थी। कांग्रेस के सिद्धांतों के प्रति आर. के. धवन को उनकी निष्ठा, प्रतिबद्धता और समर्पण के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
आर. के. धवन का जन्म 16 जुलाई, 1937 को चिन्नोट में, जो कि अब पाकिस्तान का एक भाग है, में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आकर बस गया था। उन्होंने कर्नल ब्राउन कैंब्रिज स्कूल, देहरादून और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। कांग्रेस वरिष्ठ नेता रहे आर. के. धवन ने एक टाइपिस्ट के तौर पर अपने कॅरियर की शुरुआत की। लेकिन प्रतिभा और समझ की वजह से राजनीति में खास मुकाम बनाया। वह दो दशकों से भी अधिक समय तक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सबसे विश्वस्त सहयोगी रहे। वह 1962 में निजी सहायक के रूप में इंदिरा गांधी के संपर्क में आए। इसके बाद उनका साथ इंदिरा की हत्या के बाद ही छूटा।
आर. के. धवन ने 1984 में तक इंदिरा जी के निजी सचिव के तौर पर काम किया। जब इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति के मद्देनजर 1975 में देश में आपात काल लगाया, तब भी आर. के. धवन उनके सबसे करीबी नेताओं में थे, जिन्हें सरकार की हर गतिविधि की जानकारी होती थी। जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई, उस समय भी धवन घटनास्थल पर ही मौजूद थे। लेकिन इंदिरा की हत्या के बाद आर. के. धवन लगभग सार्वजनिक जीवन से अलग हो गए। वर्ष 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी आर. के. धवन को दोबारा सार्वजनिक जीवन में लेकर आए। 1990 में उन्हें राज्य सभा सदस्य बनाया गया। राजीव गांधी की हत्या के कई वर्षों बाद जब सोनिया गांधी ने कमान संभाली, तो उन्होंने भी आर. के. धवन को पार्टी में अहम स्थान दिया।
इंदिरा गांधी के जमाने में जब आर. के. धवन फोन लाइन पर आते थे तो दूसरी तरफ ताकतवर मुख्यमंत्री हों या कोई क्षत्रप, सबका संबोधन ‘यस सर’ का ही होता था। तब आर. के. धवन का पद तो तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के निजी सचिव का था, लेकिन क़द किसी भी कैबिनेट मिनिस्टर या चीफ मिनिस्टर से बड़ा था।
आर. के. धवन को अपने विवाह की वजह से भी जाना जाता है। उन्होंने 74 साल की उम्र में 59 साल की अचला से 16 जुलाई, 2012 को विवाह किया था।
इंदिरा गांधी के जीवन में आर. के. धवन का महत्व ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के समय के एक घटनाक्रम से भी समझा जा सकता है। इंदिरा जी के नेतृत्व के समय की एक चर्चित घटना थी- ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’। इंदिरा जी ने अलगाववादी खालिस्तानी आंदोलन को ताकत से कुचल दिया था, पर ऑपरेशन ब्लू स्टार के सफल होने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी, इसका पता आर. के. धवन के माध्यम से ही देश को चला। 6 जून, 1984 को सुबह 6 बजे तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री के. पी. सिंहदेव ने आर. के. धवन को फोन किया था। सिंहदेव चाहते थे कि तुरंत श्रीमती गांधी तक ऑपरेशन कामयाब होने की सूचना पहुंच जाए। खबर मिलते ही इंदिरा गांधी ने कहा- ‘हे भगवान, ये क्या हो गया? इन लोगों ने तो मुझे बताया था कि इतनी मौतें नहीं होंगी।’
आर. के. धवन इंदिरा गांधी के सबसे करीबी व्यक्ति थे। वह उनकी हर एक सहूलियत का ध्यान रखते थे। इंदिरा जी की स्टडी टेबल और यहां तक कि बाग़ में उनकी चहलकदमी के दौरान पेड़ों पर खाली नोट्स चिपका देते थे। ऐसा इसलिए कि कहीं अचानक इंदिरा जी को कोई महत्वपूर्ण ख्याल आ जाए तो वह उस पर लिख सकें।
इंदिरा गांधी के साथ आने से पहले आर. के. धवन मामूली सी नौकरी करते थे और उनके रिश्तेदार उन्हें इंदिरा गांधी के पास लेकर आए थे। बताया जाता है कि जगह न होते हुए भी इंदिरा जी ने आर. के. धवन को कुछ दिनों के लिए अपने सहायक के तौर पर रख लिया था। एक दिन इंदिरा जी अपना चश्मा खोज रही थीं, तभी आर. के. धवन ने अपनी दराज से उन्हें नया चश्मा दे दिया। पूछने पर आर. के. धवन ने कहा कि उन्होंने इंदिरा जी के नंबर वाले दो तीन नए चश्में बनवाकर अपने पास रख लिए थे, जिससे कि कभी भी अगर उनका चश्मा खो जाए तो उन्हें दिक्कत न हो। आर. के. धवन की यह समझदारी इंदिरा गांधी को इतनी भा गई कि उन्होंने उन्हें न सिर्फ अपना स्थाई सहायक बनाया बल्कि धीरे-धीरे उन पर इतना विश्वास किया कि एक दौर में आर. के. धवन उनकी आंख, नाक, कान सब माने जाने लगे थे।
आर. के. धवन वह शख्सियत थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी की मौत के बाद भी उनका साथ निभाया। अक्सर इंदिरा गांधी को आपातकाल के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन आर. के. धवन ने इंदिरा जी की मौत के बाद अपने जीते जी इसे नहीं माना। तमाम टीवी और अखबार इंटरव्यू में आर. के. धवन ने यह बताने की कोशिश की कि आपातकाल की असल स्क्रिप्ट तो पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय ने लिखी थी। आर. के. धवन ने इंदिरा जी के संग पूरी राजदारी निभाई। यह इंदिरा जी के प्रति उनकी निष्ठा ही थी कि आपातकाल की जांच के लिए बने ‘शाह आयोग’ के सामने भी उनकी जबान नहीं लड़खड़ाई। आर. के. धवन की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी मुख्यमंत्री का नाम फाइनल हुआ हो या किसी को कैबिनेट बर्थ मिली हो, इस तरह की सारी ब्रेकिंग खबरों का पब्लिक डोमेन में खुलासा धवन ही करते थे।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री और इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र रहे आर. के. धवन का नई दिल्ली में 6 अगस्त, 2018 को निधन हुआ। उन्हें बढ़ती उम्र संबंधी परेशानियों के कारण जुलाई 2018 के आखिर में अस्पताल में भर्ती कराया गया था। भारत कोष से।