संजोग वॉल्टर। स्वप्निल संसार। विमलेश सिल्वर स्क्रीन की चकाचौंध भरी जिंदगी का वो स्याह पेज है,इनकी शुरूआती जिंदगी के बारे में जानकारी बहुत ही कम है,बीते जमाने के कई मशहूर कलाकारों का आखिरी वक़्त मुफलिसी में गुज़रा (कई नाम हैं जिन पर बात होती रहेगी) विमलेश अग्रवाल का जन्म 1935 में पंजाब के जालंधर में हुआ था,विमलेश जिद्दी लड़की थी जो सबसे पहले अपने माता-पिता के खिलाफ विद्रोह करती है और एक मारवाड़ी उद्योगपति के बेटे शिव अग्रवाल से शादी कर लेती है,जालंधर से उनका परिवार बम्बई पहुंचा और बस गया।
विमलेश ने बम्बई के सेंट सोफिया कालेज से मनोविज्ञान में “एम्.ऐ.किया बम्बई में उनकी मुलाक़ात हुई शिव अग्रवाल से जल्दी दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया इस शादी के लिए दोनों के परिवार तैयार नहीं थे विमलेश साधारण परिवार से थी और शिव करोड़पति परिवार से जिनका कलकत्ता में स्टील का कारोबार था ,बरहाल विमलेश ने अपनी जिद पूरी की शिव से शादी कर ली और कलकत्ता में जा बसी।
जिद्दी विमलेश का दूसरा विद्रोह था ससुराल वालों से
बी आर चोपड़ा. एक सस्पेंस फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे,नायिका की तलाश कर रहे थे उन्हें जरूरत थी एक नए चेहरे की,सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी,सिवाए हेरोइन के । “हमराज” यही नाम था आने वाली फिल्म का जो हिंदी सिनेमा के इतिहास की एक और कामयाब फिल्म होने का तमगा पाने जा रही थी. हमराज के संगीत निर्देशक रवि ने विम्मी को कलकत्ता में एक पार्टी में देखा और उन्हें बम्बई आने की दावत दे दी विमलेश पर अब जिद सवार थी “हेरोइन” बनने की जिसके लिए ससुराल वालों से लड़ी, पति शिव अग्रवाल ने “विमलेश” का साथ दिया, अपने दोनों बच्चों को ससुराल में छोड़ कर पति पत्नी बम्बई आ गये,और यहाँ दो बच्चों की माँ विमलेश बन गयी बी आर चोपड़ा. की ‘हमराज़’ 1967 की नायिका “विम्मी”।
बला की खूबसूरत “विम्मी” के दीवाने साहिर लुधियानवी भी हो गये थे ऐसा कहा जाता है हमराज का यह गीत “विम्मी” को ही देख कर साहिर लुधियानवी ने लिखा था “किसी पत्थर की मूरत से,मोहब्बत का इरादा है,प्राश्चित की तमन्ना है,इबादत का इरादा है”हमराज” के बीस सीन में “विम्मी”थी हर सीन में नयी ड्रेस थी । इस फिल्म के लिए उन्हें मिले थे तीन लाख रूपये “हमराज” के हिट होते ही “विम्मी” के पास फिल्म निर्माता उन्हें हाथों हाथ लेने की दौड़ पड़े,एक सुपर हिट “विम्मी” के खाते में थी, पर विम्मी ने कई मशहूर निर्मातों के आफर यह कह ठुकरा दिए की यह सब वक्ती है “हमराज” के बाद उनके हाथ में सिर्फ “आबरू” (1968) थी।
हमराज़ (1967) के अलावा विम्मी ने आबरू (1968) नानक नाम जहाज़ है (1969) पंजाबी,पतंगा (1971) गुड्डी(1971) कही आर कहीं पार(1971)वचन(1974) में काम किया था,पर किसी फिल्म को हमराज जैसी कामयाबी नहीं मिली, नानक नाम जहाज़ है (1969) पंजाबी फिल्म ने सिल्वर जुबली की थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, विम्मी साधारण परिवार से थी,ससुराल करोड़ पति था लिहाज़ा वो महंगी जीवन शैली जीने की आदि थी,अब ना तो वो स्टारडम था और न पैसा ले देकर एक ही आदमी था उनके जीवन में जिसका नाम था “जॉली” ने विम्मी का भरपूर” इस्तेमाल” किया और उसी ने एक दिन गम गलत करने के लिए विम्मी के हाथ में देशी दारू की बोत्तल दे दी अब विम्मी नशे की आदि हो चुकी थी।
पति शिव अग्रवाल “विम्मी” के साथ शूट पर जाते थे शिव अग्रवाल उस वक्त अड़ जाते थे जब रोमांटिक सीन्स होते थे रोमांटिक सीन्स पर इस एतराज़ पर “विम्मी” ने पति को शुरू में समझाने की कोशिश की पर शिव नहीं माने,पति का “हस्तक्षेप बढ चुका था”विम्मी”को यकीन”जॉली” पर था,लिहाज़ा पति पत्नी के बीच दूरियां आने लगी वे लोग सेट पर लड़ाई करते देखे जाने लगे और इस आग में घी डालने का काम “जॉली ‘ ने किया “जॉली ‘ नाकामयाब निर्माता थे, अपनी पत्नी को पराये मर्द की बात मानता देख शिव अग्रवाल “विम्मी” को छोड़ कर कलकत्ता वापस अपने परिवार के पास लौट गये।
जॉली कब विम्मी के नजदीक आया पता नहीं कहा जाता है के उसने निर्मातों से रूपये लेने शुरू कर दिए थे की वो विम्मी का “खास” शूट करवा देगा जब इस शूट की बारी आती तो शिव अग्रवाल बीच में आ जाते तब विम्मी जॉली का पक्ष लेती सेट पर ही जल्द ही यह वज़ह विम्मी और शिव के बीच अलगाव बनी ।
“विम्मी” और शराब।
बहुत ज्यादा देशी शराब पीने से उनका लीवर खराब हो चुका था…न घर न ससुराल न दोस्त,ना फ़िल्मी दुनिया से कोई.और नाही बच्चे जिन्हें वो कलकत्ता में छोड़ आई थी,मायका वो शिव के लिए छोड़ आई थी ससुराल फिल्मों के लिए,शिव ने “विम्मी’की हेरोइन बनने की जिद को पूरा करने के लिए कलकत्ता छोड़ा, रोमांटिक सीन्स ने पति पत्नी को अलग किया जॉली की चालों और “विम्मी” की जिद ने,बम्बई सड़कों पर इम्पाला कार का इस्तेमाल करने वाली “विम्मी” का अंतिम सफर हतथू “ठेले” पर था जो आया था बम्बई नगर निगम से।
जब वो अपने पति के साथ बम्बई आई थी तब उनका ठिकाना था होटल ताज महल का वी.आई.पी. सूट था.उनका इरादा था शायद हमराज़ करके वापस कलकत्ता लौट जाना,होनी को कुछ और ही मंज़ूर था,जिद्दी विम्मी को पति का एतराज़ रोमांटिक सीन्स को लेकर पसंद नहीं आया निर्मातों ने विम्मी को अपनी फिल्म से निकाल दिया कुछ ने रूपये वापस ले लिए,लिहाजा जॉली की सलाह पर कुछ फ़िल्में साइन तो की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी ज़िन्दगी के आखिरी दिन किसी चौल में भी गुज़ारे थे “विम्मी” ने, हैरानी की बात तो यह है उनका भरोसा आखिर तक जॉली पर बना रहा,जॉली ही उन्हें अर्श से फर्श पर लाया था उसी ने एक बेहद जिद्दी औरत को कही का नहीं छोड़ा था यह जिद थी एक औरत की या जॉली के रूप में थी “विम्मी” की बर्बादी।
अगर इस सच पर यकीन करें तो विम्मी ने पेट की भूख शांत करने और शराब के लिए “वेश्यावृत्ति” शुरू कर दी महज 42 साल की उम्र में विम्मी की मौत बम्बई के एक सरकारी अस्पताल नानावती के जनरल वार्ड में 22 अगस्त 1977 में हुई और सांताक्रूज शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार हुआ जहाँ उनका शव हतथू “ठेले” पर लेकर पहुंचा था जॉली,जहाँ कुल नौ लोग थे,फ़िल्मी दुनिया से निर्माता /निर्देशक एस.डी नारंग और उनके भाई मौजूद थे।