कुछ आदमियों की देखा देखी सियार ने भी ‘भगवान’ बनने की सोची. उसने बकरियों को इकटठा किया और प्रवचन करने लगा. कुछ ही देर में दर्जनों बकरियां वहां जमा हो गईं. सियार जो सुनकर गया था उसी को दोहराने लगा—‘यह काया मिट्टी की है. इसका मोह कभी मत करना. इससे किसी का उपकार हो तो भी पीछे मत रहना. संसार प्रपंचों से भरा हुआ है. माया से मुक्ति में ही आत्मा की मुक्ति है. तभी सच्चा सुख संभव है.’
‘यह उपदेश भेड़ियों को भी देना चाहिए.’ श्रोता बकरियों में से किसी ने कहा. उसकी ओर ध्यान दिए बिना सियार कहता रहा—‘ऊपर वाला सब देखता है. उसके घर देर है, अंधेर नहीं. देर-सबेर सभी को न्याय मिलता है. जो भी कमजोर को सताता है, उसको नर्क की आग में जलना पड़ता है.’
‘हम कमजोर, किसी को भला क्या सता सकती हैं. दिन-भर में दो मुट्ठी घास मिल जाए तो उसी से काम चला लेती हैं. इसके बावजूद हमें कभी शेर तो कभी भेड़िया का शिकार होना पड़ता है.’ आवाज फिर आई.
सियार का तटस्थ प्रवचन चलता रहा—‘मौत जीवन का अंत नहीं शुरुआत है. इसके बाद जो दुनिया है. वहां न शेर का डर है न भेड़िया का. सच्चे आनंद के लिए देह भी कुर्बान करनी पड़े तो पीछे मत रहो.’
तभी न जाने कहां से आकर भेड़ियों का दल बकरियों पर टूट पड़ा. दर्जनों बकरियां मारी गईं. भेड़ियों से डरे सियार ने भागने की कोशिश की तो एक भेड़िया ने टोक दिया—
‘डरो मत, तुम तो बड़े काम के जीव हो यार….आज से पहले हम जब भी हमला करते थे तो बकरियां थोड़ा-बहुत विरोध करती थीं. तुमने उन पर न जाने क्या जादू किया कि किसी ने ‘चूं’ तक नहीं की. बिना मेहनत-मशक्कत अच्छी दावत हो गई. आज से तुम्हीं इस जंगल के मंत्री हुए.’
भेड़ियों की सरदारी में मंत्री बना सियार, उसी दिन से ’अफीम’ बांटने लगा. भोजन के नाम पर उसको अब भी जूठन ही मिलती. लेकिन बकरियों के सामने ही सही, भेड़ियों ने उसे भगवान मान लिया है, सियार को इससे संतोष है. ओमप्रकाश कश्यप