भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय सिनेमा में मशहूर ड्रेस डिज़ाइनर के रूप में जानी जाती थीं। वह ऐसी पहली भारतीय महिला रहीं, जिन्हें ‘ऑस्कर पुरस्कार’ से नवाजा गया था। भानु अथैया साढ़े पाँच दशक तक हिन्दी सिनेमा में सक्रिय रहीं। इस दौरान उन्होंने ड्रेस डिज़ाइनिंग को नित नये आयाम दिये। उन्हें प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म “गाँधी” के लिए सर्वेश्रेष्ठ ड्रेस डिज़ाइनर का ‘ऑस्कर’ मिला था। भानु अथैया 100 से भी अधिक फ़िल्मों के लिए डिज़ाइनिंग कर रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज करा चुकी थीं। फ़िल्म जगत् में अपने खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग और फ़ैशन में आए बदलावों को उन्होंने 2019 में प्रकाशित पुस्तक “भानु राजोपाध्ये अथैया-द आर्ट ऑफ़ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन” में समेटने की कोशिश की थी।
भानु अथैया का जन्म 28 अप्रैल, 1929 को कोल्हापुर में हुआ था। इनका पूरा नाम ‘भानुमति अन्नासाहेब राजोपाध्येय’ रखा गया था। इनके पिता का नाम अन्नासाहेब और माता शांताबाई राजोपाध्येय थीं। अपने माता-पिता की सात संतानों में भानु अथैया तीसरे स्थान पर थीं। उस दौर में कोल्हापुर जैसे छोटे शहर में भानु के माता-पिता ने अपनी बेटी को खूब पढ़ाया और उसकी रुचियों और प्रतिभा को देखते हुए उसे बम्बई अब मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में शिक्षा के लिए भेजा। यहाँ से उन्होंने स्नातक की उपाधि गोल्ड मेडल के साथ प्राप्त की। इसके बाद वे ‘प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप’ की सदस्य के लिये भी नामित हुईं। माता-पिता ने जब अपनी बेटी भानु को रेखाचित्र बनाते देखा था तो उसे प्रोत्साहित किया और आग्रह किया कि वह गाँधीजी का रेखाचित्र बनाए। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि बचपन में गाँधीजी का रेखाचित्र बनाने वाली भानु को ही कुछ दशक बाद सर रिचर्ड एटनबरो की अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म ‘गाँधी’ की वेशभूषा बनाने के लिए ऑस्कर से नवाजा गया।
भानु अथैया ने 1953 में ड्रेस डिज़ाइनिंग शुरू की और अगले 56 वर्षों में उन्होंने हिन्दू सिनेमा में ड्रेस डिज़ाइन के सौंदर्यशास्त्र को परिभाषित करने वाली एक असाधारण कार्य पद्धति का विकास किया। महिला पत्रिकाओं के लिये एक फ़ैशन विशेषज्ञ के रूप में स्वतंत्र कार्य करने के बाद भानु अथैया ने फ़िल्मों के लिये भी परिधान-डिज़ाइन करना आरंभ किया। फ़िल्म ‘श्री 420’ में अभिनेत्री नादिरा के लिये “मुड़-मुड़ के ना देख…” गाने के लिये तैयार किये गए गाउन ने उन्हें विशिष्ट पहचान दिलाई। यह गाना काफ़ी हिट हुआ और नादिरा हिन्दी सिनेमा की सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं। अभिनेत्रा साधना की कसावदार सलवार-कमीज को भी भानु अथैया ने ही डिज़ाइन किया था, जिसका जादू 1970 के दशक तक फ़ैशन के रूप में छाया रहा।
हिन्दी फ़िल्मों के जाने-माने गीतकार और कवि के रूप में पहचाने जाने वाले सत्येन्द्र अथैया के साथ भानु अथैया का विवाह सम्पन्न हुआ था। अथैया दम्पत्ति का यह रिश्ता अधिक दिनों तक नहीं चल सका। भानु अथैया ने दूसरा विवाह भी नहीं किया। इनकी एक बेटी भी हुई, जो अब अपने परिवार के साथ कोलकाता में रहती है।
ड्रेस डिज़ाइनर फ़िल्मों की कहानियों के अनुरूप ही परिधान-वस्त्र-अंलकार तैयार करते हैं और सिनेमा के प्रिय पात्र इन्हें पहन कर व ओढक़र अपनी ख़ास छवियाँ छोड़ जाते हैं। भानु अथैया ऐसी ही ड्रेस डिज़ाइनर हैं, जिनके परिधान चरित्रों में जान डाल देते हैं। भानु अथैया 1982 में प्रख्यात फ़िल्मकार रिचर्ड एटेनबरो की फ़िल्म ‘गाँधी’ में ऑस्कर अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय हैं। उनके उत्कृष्ट डिज़ाइनों और अपने काम के प्रति लगन ने भारतीय सिनेमा को कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग के लिए नई उपलब्धियाँ दीं। भानु अथैया ने 100 से भी अधिक फ़िल्मों में जाने-माने फ़िल्मकारों, गुरुदत्त, यश चोपड़ा, राज कपूर, आशुतोष गोवारिकर, कॉनरेड रूक्स और रिचर्ड एटेनबरो आदि के साथ काम किया। ‘सी.आई.डी.’ (1956), ‘प्यासा’ (1959), ‘चौदहवी का चाँद’ (1960) और ‘साहब बीबी और ग़ुलाम’ (1964) सफल फ़िल्मों ने भानु अथैया को विशिष्ट पहचान दिलाई। भानु अथैया चरित्र और फ़िल्म के कथानक को ध्यान में रखकर परिधान डिज़ाइन करती हैं और मनमोहक छवियाँ चरित्रों में ढाल देती हैं।
इन्हीं सफलतम कोशिशों के फलस्वरूप उन्होंने ‘साहिब बीबी और ग़ुलाम’, ‘रेशमा और शेरा’ आदि के लिए भी प्रशंसा बटोरी। भानु अथैया की सबसे बड़ी सफलता ‘ऑस्कर अवार्ड’ (1983) प्राप्त करना था। यह अवार्ड उन्हें फ़िल्म ‘गाँधी’ में वस्त्र डिज़ाइन के लिए दिया गया था। गुलज़ार की फ़िल्म ‘लेकिन’ के लिये भानु अथैया को 1990 का सर्वोच्च कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर अवार्ड मिला। भानु अथैया की की सफलतम फ़िल्में हैं- जब्ब़ार पटेल की ‘डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर’ और आमिर ख़ान ‘लगान’, जिसने इन्हें दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया। भानु अथैया ने टेलीविजन सीरियल्स और नाटकों के लिये भी परिधान डिज़ाइन किये हैं। इसके अतिरिक्त 1991 में ‘लेकिन’ के लिए ‘राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड’ और 2009 में ‘लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ भी इन्हें मिला।
भानु अथैया ने फ़िल्म ‘गाइड’ में वहीदा रहमान, ‘ब्रह्मचारी’ में मुमताज, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में जीनत अमान के वस्त्र डिजाइन किए थे। उन्होंने 130 फ़िल्मों में वस्त्र डिजाइन किए हैं और राज कपूर, गुरुदत्त, बी. आर. चोपड़ा, यश चोपड़ा, देवानंद और आशुतोष गोवारिकर फ़िल्मकारों के साथ काम किया है। भानु अथैया ने राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ से लेकर ‘राम तेरी गंगा मैली’ तक कई फ़िल्मों की ड्रेस डिज़ाइनिंग की। उन्होंने अपने समय की सफल फ़िल्म ‘रजिया सुल्तान’ से लेकर अमोल पालेकर के नाटकों तक के लिए वेशभूषा बनाई है।
भानु अथैया का कहना है कि फ़िल्म कलाकार उनके कोलाबा स्थित घर पर चलने वाले वर्कशॉप पर अपने कपड़े डिज़ाइन करवाने आते हैं। 1964 में ‘संगम’ में वैजयंती माला के लिए भानु की डिज़ाइन की गई क्रेप सिल्क साड़ियों को बेहद पसंद किया गया था। भानु कहती हैं कि फ़िल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में ग्रामीण लड़की और दूसरी तरफ़ उसी लड़की को अप्सरा की तरह दिखाने के लिए ड्रेस डिज़ाइन करना काफ़ी चुनौतीपूर्ण काम था। 1962 में फ़िल्म ‘साहिब, बीबी और ग़ुलाम’ में मीना कुमारी को उनके चरित्र, ज़मींदार की पत्नी के रूप में उनका प्रेम हासिल करने की जद्दोजहद, को दर्शाने के लिए लाइट फ्लेटरिंग साड़ियाँ डिज़ाइन करनी थीं। फ़िल्म ‘गाँधी’ के लिए भानु अथैया को श्रेष्ठ कॉस्टयूम डिज़ाइनर का ‘ऑस्कर पुरस्कार’ मिला। वे बताती हैं कि गाँधीजी की भूमिका निभा रहे बेन किंग्सले को पारंपरिक काठियावाड़ी कपड़े पहनाने थे, जो कि गाँधीजी के पैतृक गाँव में पहने जाते थे। कस्तूरबा की भूमिका में रोहिणी हटंगड़ी ने हैंडलूम बॉर्डर की साड़ियाँ पहनी थीं। 2001 में फ़िल्म ‘लगान’ की ब्रिटिश अभिनेत्री रशेल के लिए टोपी, दस्ताने और दूसरी ऐसी चीज़ें ख़रीदने के लिए भानु अथैया को इंग्लैंड जाना पड़ा था।
2012 में भानु अथैया ने ऑस्कर ट्रॉफी को लौटाने की इच्छा जताई थी। वो चाहती थीं कि उनके जाने के बाद ऑस्कर ट्रॉफी को सुरक्षित स्थान पर रखा जाए। तब बीबीसी से बातचीत में भानु अथैया ने कहा था, “सबसे बड़ा सवाल ट्रॉफी की सुरक्षा का है, भारत में पहले कई अवॉर्ड गायब हुए है। मैने इतने सालों तक अवॉर्ड को इंजॉय किया है, चाहती हूँ कि वो आगे भी सुरक्षित रहे”। उन्होंने कहा था, “मैं अक्सर ऑस्कर ऑफिस जाती हूँ, मैने देखा कि वहां कई लोगों ने अपने ट्रॉफी रखे हैं। अमरीकी कॉस्ट्यूम डिजाइनर एडिथ हेड ने भी मरने से पहले अपने आठ ऑस्कर ट्रॉफियों को ऑस्कर ऑफिस में रखवाया था”।
भानु अथैया का 15 अक्टूबर, 2020 को मुंबई,में निधन हो गया था । उस वक्त भानु अथैया की उम्र 91 वर्ष थी। भारत कोष से