बॉलीवुड में फिल्मकारों ने कई पर्व त्योहारों को अपनी फिल्मों में कहानी का हिस्सा बनाकर पेश किया है लेकिन रोशनी के महापर्व दीपावली को रूपहले परर्दे पर वह नहीं के बराबर पेश करते हैं और कभी करते भी हैं तो वह कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं होता है। हिन्दी फिल्मों के इतिहास पर यदि एक नजर डालें तो पाएंगे कि फिल्मों में दीपावली का चित्रण नहीं के बराबर किया गया हैं। वैसे कुछ फिल्में ऐसी हैं, जिनमें खुशियों के प्रतीक के रूप में इस पर्व को दिखाया गया है लेकिन उन फिल्मों में भी बोनस, छुट्टी, रोशनी तथा आतिशबाजी तक ही सीमित रह जाता है, जो कहानी का अहम हिस्सा नहीं होती। देखा जाए तो कम ही फिल्मों में दीपावली को विशेष स्थान दिया गया है, जो कहानी का अहम हिस्सा रही हैं।
1973 में प्रदर्शित प्रकाश मेहरा की सुपरहिट फिल्म जंजीर का नाम भी ऐसी ही फिल्मों में आता है, जिसमें सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म की शुरुआत उस समय होती है, जब दीपावली पर एक घर के आसपास का सारा माहौल रोशनी से जगमग रहता है। ऐसे खुशनुमा माहौल में अपराधी चालनुमा मकान के कमरे में प्रवेश करता है और आतिशबाजी की गूंज के बीच उसके रिवॉल्वर से गोली निकलती है और देखते ही देखते मासूम बच्चे की दुनिया उजड़ जाती है। यह दृश्य सिनेप्रेमी शायद ही कभी भूल पाए। हाल में प्रदर्शित फिल्मों पर यदि नजर डालें तो इनमें करण जौहर की फिल्म कभी खुशी कभी गम में दीपावली के दृश्यों को बहुत ही खूबसूरती के साथ पेश किया गया है, जो कहानी का अहम हिस्सा लगते हैं। इन सबके साथ ही कुछ फिल्मों दीपावली के दृश्य का चित्रण बेहद मार्मिक तरीके से किया गया है। इसी क्रम में चेतन आंनद की 1965 में प्रदर्शित फिल्म हकीकत खासतौर पर उल्लेखनीय है। 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध पर आधारित इस फिल्म के एक दृश्य में दीपावली के ही दिन फिल्म के एक अभिनेता जयंत देश के जवानों को जो संदेश भेजते हैं वह अत्यंत मार्मिक है। कई बार उल्लास के बाद वेदना के क्षणों का चित्रण करने के लिए भी दीपावली के दृश्यों का सहारा लिया गया है। निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म अनुराग में इस तरह के दृश्यों को बेहद ही सुंदर और संजीदे तरीके से पेश किया है। फिल्म के एक दृश्य में दीपावली की ही रात होती है जब पूरा घर खुशियों से झूम रहा होता है। ऐसे में अचानक परिवार के मुखिया को यह पता चलता है कि उसके पोते को असाध्य बीमारी है। इसके बाद पूरा घर अचानक मायूस हो जाता है और उनकी सारी खुशियां पलभर में दुख में बदल जाती हैं। फिल्म का यह दृश्य भी सिने दर्शक शायद ही कभी भूल पाएं। फिल्म मुझे कुछ कहना है में इस पर्व को कुछ ऐसे ही तरीके से पेश किया गया है। फिल्म के एक दृश्य में फिल्म का नायक तुषार कपूर अपने परिवार की नजर में एकदम निकम्मा है और उससे किसी को कोई उम्मीद नही हैं, दीपावली की रात को वह एकदम हताश होकर सड़कों पर भटक रहा होता है तभी अचानक फिल्म की नायिका करीना कपूर को देखकर उसके जीवन में नई उमंग और आशा का संचार होता है।
देखा जाए तो हाल के वर्षो में कुछ अन्य फिल्मो में भी दीपावली से जुड़े दृश्यो का सहारा लिया गया है। इनमें हम आपके है कौन, एक रिश्ता द बांड ऑफ लव,ख्वाहिश आदि शामिल है लेकिन इनमें दीपावली के दृश्य दिखाए तो गए हैं, लेकिन वे कहीं से भी कहानी का हिस्सा नही लगते हैं। इनके बिना भी फिल्म का निर्माण हो सकता था। काफी हद तक महेश मांजरेकर की संजय दत्त अभिनीत फिल्म वास्तव में दीपावली के दृश्य को कहानी का हिस्सा बनाकर पेश किया गया है। इन सबके साथ ही दीपावली से जुड़े गीत को फिल्मकार ने कभी कभी पेश किया है दीपावली से जुड़े गीत है उनमें आई दीवाली की रोशनी (रतन), आई है अबकी साल दीवाली (हकीकत),दीवाली की रात पिया का घर (अमर कहानी), लाखों तारे आसमान में (हरियाली और रास्ता) आई है दीवाली (आमदनी अठन्नी खर्चा रुप्य्या) हैप्पी दीवाली (होम डिलीवरी) हैं।साभार