लीला सेठ भारत में उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली प्रथम महिला थीं। दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनने का श्रेय भी इन्हीं को प्राप्त था। वह देश की प्रथम ऐसी महिला भी थीं, जिन्होंने लंदन बार परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया था। लीला सेठ राजन पिल्लै केस के जांच आयोग की सदस्य भी रह चुकी थीं। वे 2000 तक विधि आयोग में रहीं और हिंदू सक्सेशन एक्ट में संशोधन का श्रेय भी उन्हीं को जाता है।
लीला सेठ का जन्म लखनऊ,में 20 अक्टूबर, 1930 में हुआ। लीला जी बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद बेघर होकर विधवा माँ के सहारे पली-बड़ीं और मुश्किलों का सामना करते हुई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुँचने का सफ़र एक महिला के लिये कितना संघर्ष-मय हो सकता है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इन्होंने मेहनत, लगन और संघर्ष से ये मुकाम हासिल किया था। भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं लीला सेठ अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक विक्रम सेठ की माँ होने के अलावा उनकी अपनी अलग पहचान है।
लन्दन में बार की परीक्षा 1958 में शीर्ष पर रहने, भारत के 15वें विधि आयोग की सदस्य बनने और कुछ चर्चित न्यायिक मामलों में विशेष योगदान के कारण लीला सेठ का नाम विख्यात है। इनका विवाह पारिवारिक माध्यम से बाटा कंपनी में सर्विस करने वाले प्रेम के साथ हुआ था। उस समय लीला स्नातक भी नहीं कर पायी थीं, बाद में प्रेम को इंग्लैंड में नौकरी के लिये जाना पड़ा तो वह उनके साथ इंग्लैंड गईं और वहीं से स्नातक किया। जब लीला जी इंग्लैंड में थी तब उनके लिये नियमित कॉलेज जाना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने सोचा कोई ऐसा पाठ्यक्रम हो जिसमें रोज जाना ज़रूरी न हो। इसलिये उन्होंने विधि पाठ्यक्रम करना तय किया, यहाँ वे बार की परीक्षा में अव्वल रहीं।
कुछ समय बाद लीला जी के पति को भारत लौटना पड़ा तो इन्होंने यहाँ आकर वकालत का अभ्यास करने की ठानी, यह वह समय था, जब नौकरियों में बहुत कम महिलायें होती थीं। कोलकता में उन्होंने शुरुआत की लेकिन बाद में पटना आकर उन्होंने अभ्यास शुरू किया। 1959 में उन्होंने बार में दाखिला किया पटना के बाद दिल्ली में वकालत की।
लीला सेठ ने वकालत के दौरान बड़ी तादात में इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, एक्सिस ड्यूटी और कस्टम सम्बंधी मामलों के अलावा सिविल कंपनी और वैवाहिक मुकदमे भी किये। 1978 में वे दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं और बाद में 1991 में हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त की गईं। महिलाओं के साथ भेद-भाव के मामले, संयुक्त परिवार में लड़की को पिता की सम्पति का बराबर की हिस्सेदार बनाने और पुलिस हिरासत में हुई राजन पिल्लै की मौत की जाँच जैसे मामलों में लीला सेठ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 1995 में उन्होंने पुलिस हिरासत में हुई राजन पिल्लै की मौत की जाँच के लिये बनाई एक सदस्य आयोग की जिम्मेदारी संभाली। 1998 से 2000 तक वे लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया की सदस्य रहीं और हिन्दू उत्तराधिकार क़ानूनों में संशोधन कराया जिसके तहत संयुक्त परिवार में बेटियों को बराबर का अधिकार प्रदान किया गया।
महत्त्वपूर्ण न्यायिक दायित्व के साथ-साथ लीला सेठ ने घर परिवार की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी भी सफलतापूर्वक निभाई। पुस्तक ओवन बैलेंस के हिंदी अनुवाद घर और आदालत में उन्होंने जिंदगी की कई खट्टी-मीठी यादों और घर परिवार से जुड़े कई कड़वे अनुभवों को उजागर किया है। लीला ने एक जगह लिखा है- मैंने शादी के वक्त अपनी माँ की दी हुई नसीयत का पालन करने की कोशिश की है झगड़ा करके कभी मत सोना, रात के अंधेरे में यह और बढ़ता है, इसलिये हम हमेशा विवाद खत्म करके ही दम लेते थे, लीला सेठ ने अदालती मुकदमों और नौकरशाही के बारे में अपना कटु अनुभव इन शब्दों में व्यक्त किया है- एक जज होने के बाबजूद अगर मुझे जिद्दी नौकरशाही से इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, अगर एक न्यायाधीश होते हुए भी मुझे अपने पति को अड़ियल व भारी भरकम कंपनी से लड़ने की जगह सुलह करने की सलाह देनी पड़ती है तो क़ानूनों की पेचीदगियों में फँसे उन आम लोगों को कितनी परेशानियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा। जिनकी सत्ता तक पहुँच नहीं है या उनकी सुनने वाला कोई नहीं है उनके पास लम्बे समय तक मुकदमा लड़ने के लिये पैसा और समय नहीं है या उन्हें यह जानकारी नहीं है की नया या अपना हक़ पाने के लिये किसका दरवाज़ा खटखटाएं।
लीला सेठ 1992 में हिमाचल प्रदेश की मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत हुईं ।
लीला सेठ कई संस्थाओं, बोर्डों, कमिशनों में अपना योगदान दे रही थींं भारतीय अंतर्राष्ट्रीय सेंटर, द नेशनल नॉलेज सेंटर, द पॉपुलर फ़ाउण्डेशन ऑफ़ इण्डिया, लेडी श्रीराम कॉलेज, मॉडर्न स्कूल बसंत विहार, मेयो कॉलेज से भी जुड़ी हुई थींं। लीला जी को बागवानी का बहुत शौक था।
न्यायमूर्ति लीला सेठ का 5 मई 2017 की रात को नोएडा स्थित उनके आवास पर कार्डियो-रेस्पिरेटरी अटैक आने के बाद 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके परिवार में उनके पति, दो बेटे और एक बेटी हैं। उनकी इच्छा के अनुसार कोई अंतिम संस्कार नहीं किया गया क्योंकि उन्होंने अपनी आँखें और अन्य अंग प्रत्यारोपण या चिकित्सा अनुसंधान उद्देश्यों के लिए दान कर दिए थे।(हिफी)