नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इनकी आराधना करने से साधक को अर्थ धर्म काम और मोक्ष चारों फलों की शीघ्र प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि कात्यायन के आश्रम में देवी कात्यायनी प्रकट हुई थी।
ऐसा कहा जाता है कि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए देवी कात्यायनी ने जन्म लिया था। महर्षि कात्यायन ने इन्हें अपनी पुत्री माना था और इसी वजह से इनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी कात्यायनी की उपासना करने से मनुष्य अपनी सभी इंद्रियों को वश में करने की शक्ति प्राप्त करता है।
ऐसा कहा जाता है कि अगर आपके विवाह में अड़चने आ रहीं हैं तो देवी कात्यायनी की आराधना करने से विवाह शीघ्र हो जाता है। माता के इस मंत्र का 108 बार जाप करें –
”कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरि, नन्दगोपसुतं देवी पति मे कुरुते नमः।”
देवी कात्यायनी की चार भुजाएं हैं और इनकी सवारी भी सिंह है। इनका रूप अत्यंत दिव्य है और चेहरा स्वर्ण के समान चमकीला है। मां कात्यायनी के दाएं तरफ के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में होता है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में होता है।
माता के बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार होती है और नीचे वाले हाथ में कमल का पुष्प होता है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रज की गोपियों ने भी मां कात्यायनी की पूजा की थी क्योंकि वे भगवान कृष्ण को अपने पति के रूप में पाना चाहती थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर ब्रज की गोपियों द्वारा की गई थी।
पौराणिक कथा के अनुसार कात्य गोत्र के विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन के घर देवी ने जन्म लिया था। महर्षि कात्यायन ने कई वर्षों तक मां दुर्गा की कठिन उपासना की थी। उनकी इच्छा थी कि मां दुर्गा उनकी पुत्री बनकर उनके घर जन्म लें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। फिर मां भगवती ने देवी कात्यायनी के रूप में महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इन्हें कात्यायनी कहा जाने लगा। देवी कात्यायनी ने कई दानवों, असुरों और पापियों का वध किया है। देवी कात्यायनी की पूजा करने से व्यक्ति का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है।
मां कात्यायनी की पूजा विधि
- नवरात्रि के छठे दिन भक्तों को सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करने के पश्चात स्वच्छ कपड़े पहनकर मां कात्यायनी का ध्यान करना चाहिए और व्रत करने का संकल्प करना चाहिए।
- स्नान आदि करने के पश्चात चौकी पर मां कात्यायनी की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। फिर गंगाजल से माता को स्नान कराना चाहिए।
- इसके बाद माता को रोली और सिन्दूर का तिलक लगाना चाहिए और सुहाग की सामग्री भेंट करनी चाहिए।
- फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हुए देवी कात्यायनी को फूल अर्पित करें और उन्हें शहद का भोग लगाएं।
- अंत में घी के दीपक और धूप से मां की आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।