मीना कपूर की शक्ल-सूरत अभिनेत्री बनने लायक थी लेकिन उसने गायिका बनना पसंद किया। अभिनेता विक्रम कपूर की यह बिटिया अपने स्कूली जीवन से गाने लगी थी। संगीतकार नीनू मजूमदार के दबाव के चलते उसने फिल्म पुल (1946) में पांच गाने गए थे। राज कपूर अभिनीत फिल्म गोपीनाथ (48) में उसने इस गीत का पाश्र्वगायन किया था ‘आई गोरी राधिका ब्रज में बलखाती।’ नीनू मजूमदार ने इसकी धुन इतनी अच्छी बनाई थी कि राज कपूर ने अपनी फिल्म सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् में उसका इस्तेमाल किया था ‘यशोमति मैया से बोले नंदलाला, राधा क्यों गोरी और मैं काला।’ आजादी के बाद जब फिल्मी दुनिया में नई आवाज, नई धुनों की हवा बहने लगी तो मीना कपूर की मांग बढ़ गई। मीना की आवाज में गहराई के साथ एक प्रकार की खराश थी। इसकी तुलना गीता रॉय (दत्त) से की जा सकती है वक्त ने किया क्या हसीं सितम, तुम रहे न तुम, हम रहे न हम। इसी गुण को ध्यान में रखते हुए एस.डी. बर्मन ने फिल्म एट डेज (46) में मीना से गवाया था — किसी से मेरी प्रीत लागी, मैं क्या करूं। एसडी के पीछे-पीछे संगीतकार मदन मोहन भी चले आए और आंखें (1950) फिल्म में मीना से गवाया ‘मोरी अटरिया पे कागा बोले, मोरा जिया डोले, कोई आ रहा है।’ इस गीत ने मीना की लोकप्रियता में काफी इजाफा किया। संगीतकार सज्जाद ने फिल्म खेल (48) में मीना से एक गाना गवाया था तोड़ गए हाए तोड़ गए। इसे महान बांसुरी वादक पन्नालाल घोष ने सुना और मीना की सिफारिश अपने साले संगीतकार अनिल बिस्वास से की थी। उस समय इस नियति को कौन जानता था कि यही मीना कपूर आगे चलकर अनिल-दा की जीवनसंगिनी बन जाएगी। अनिल बिस्वास ने सबसे पहले मीना से फिल्म अनोखा प्यार (48) में गवाया ‘याद रखना चांद तारो इस सुहानी रात को। अनिल-दा का संगीत सफर तीस के दशक से बाम्बे टॉकिज से शुरू हुआ था। 1950 के आसपास आते-आते वे फिल्मी दुनिया में प्रतिष्ठित हो गए थे। मीना ने उनके संगीत निर्देशन में एक से बढ़कर एक उम्दा गाने गाए हैं। शुरुआती साठ के दशक में अनिल बिस्वास के करिअर में ऐसा टर्निंग पाइंट आया कि उन्हें कुछ समय के लिए सरगम से दूर रहना पड़ा। उनकी पहली पत्नी आशालता से एक जवान बेटा था, वह हवाई दुर्घटना में मर गया। उनके भाई की भी मौत हो गई। बम्बई से मन उचट गया। नए-नए संगीतकार मैदान में आ गये थे। अनिल-दा के साथ मीना का करिअर भी एक झटके में समाप्त हो गया। अभिनेता मोतीलाल की फिल्म छोटी-छोटी बातें (1965) में उसने आखिरी बार गाया था ‘कुछ और जमाना कहता है।’ इसके बाद दोनों दिल्ली चले गए। संगीत जगत से नाता टूट-सा गया। बैले-डांसेस में मीना गाती रही। दूरदर्शन के पहले सोप ऑपेरा हम लोग में भी मीना ने कुछ गज़लें गाई थीं।
1982 में जब बम्बई अब मुम्बई में भारतीय सवाक फिल्मों की स्वर्ण जयंती मनाई गई थी, मीना अपनी बीमारी के बावजूद उसमें शामिल हुई थी। नूरजहां/राज कुमारी/सुरैया/लता/सुरेंद्र/शमशाद बेगम के बीच बैठ गुजरे जमाने को शिद्दत से याद किया। अपने गीतों की फरमाइश और बजते देख-सुन सुकून प्राप्त किया।
मीना कपूर की पारिवारिक स्थिति यह है कि वे अभिनेता विक्रम कपूर की बेटी हैं। विक्रम कपूर कलकत्ता के न्यू थियटर्स की फिल्मों में काम करते थे। कुंदनलाल सहगल से उनके दोस्ताना संबंध थे। संगीत के सिलसिले में अनिल-दा अकसर कलकत्ता जाते थे। कुंदनलाल सहगल से उन्हें लगाव था। जब कुंदनलाल सहगल बम्बई अब मुम्बई आ गए तो उनकी दोस्ती अनिल-दा से बढ़ गई। पहली पत्नी आशालता से अलग होने के बाद अनिल-दा को अपना एकाकी जीवन भारी लगा। मीना उनसे उम्र में बाइस साल छोटी थी। फिल्म अनोखा प्यार की रिकार्डिंग के समय दोनों का परिचय हुआ। फिल्म परदेसी की शूटिंग के दौरान मास्को में अनिल-दा तथा मीना एक-दूसरे के काफी नजदीक आगये। यह सुखद संयोग बना कि परदेसी के गीत रसिया रे मन बसिया रे, तेरे बिन जिया मोरा लागे ना — उन दोनों पर फिट बैठा और वे एक-दूसरे के जीवनमीत बन गए। मीना कपूर ने संगीतकार अनिल बिश्वास से 1959 में शादी की थी। इन दोनों के कोई बच्चे नहीं थे,लेकिन पहली शादी से अनिल के चार बच्चे थे। 1963 में मीना कपूर के पति संगीतकार अनिल बिश्वास की नौकरी ऑल इंडिया रेडियो में लग गई जिसके बाद वह उनके साथ दिल्ली चली गईं। 2003 में पति की मौत के बाद वह कोलकाता शिफ्ट हो गईं थी ।
मीना कपूर अपने आखिरी वक्त गुमनामी में जीवन जीने को बाध्य थीं।
गीता रॉय उर्फ़ गीता दत्त का जन्म 23 नवंबर 1930 को हुआ था ,उनकी खास दोस्त मीना कपूर का निधन 23 नवम्बर 2017 को हुआ था ।
फिल्म इंडस्ट्री में मीना कपूर और गीता दत्त की दोस्ती के किस्से हैं। इन दोनों लोकप्रिय गायिकाओं की मुलाकात 1952 में हुई जब दोनों ने ‘घायल’ के लिए डूएट गाना रिकॉर्ड किया. गीता दत्त को मीना कपूर की आवाज ने प्रभावित किया। रिहर्सल के दौरान ही दोनों की दोस्ती हो गई।
मीना कपूर पिछले कुछ सालों से बीमार चल रही थीं। उनको लकवा मार गया था, उनके निधन की पुष्टि बेटी शिखा वोरा ने की। उन्होंने बताया कि हमें मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया है। वह पिछले कई सालों से लकवा से जूझ रही थीं। जब से वह कोलकाता में रहने लगी थीं, वह हमारे संपर्क में नहीं थीं. इसलिए हमें उनकी हालत के बारे में कोई जानकारी नहीं। एजेंसी : फोटो साभार इंडियन एक्सप्रेस