मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के मौके पर हर साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। मौलाना अबुल कलाम आजाद स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पहले शिक्षामंत्री (1947 से 1958) थे। मौलाना ने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी. 1912 में उन्होंने उर्दू में सप्ताकि पत्रिका अल-हिलाल निकालनी शुरू की जिससे युवाओं को क्रांति के लिए जोड़ा जा सके। स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के तौर पर उनके योगदान के लिए 1992 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
मौलाना अबुल कलाम आजाद जब मात्र 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया। उनकी आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई। घर पर या मस्जिद में उन्हें उनके पिता और बाद में अन्य विद्वानों ने पढ़ाया. इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास और गणित की शिक्षा भी अन्य गुरुओं से मिली। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने उर्दू, फारसी, हिन्दी, अरबी और अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की। सोलह साल में ही उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थीं जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थी।
तेरह साल की उम्र में उनका विवाह जुलैखा बेगम से हो गया. वे देवबन्दी विचारधारा के करीब थे और उन्होंने कुरान के अन्य भावरूपों पर लेख भी लिखे. आज़ाद ने अंग्रेजी समर्पित स्वाध्याय से सीखी और पाश्चात्य दर्शन को बहुत पढ़ा. उन्हें मुस्लिम पारम्परिक शिक्षा रास नहीं आई और वे आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खां के विचारों से सहमत थे।
मौलाना अबुल कलाम आजाद को शानदार वक्ता के रूप में जाना जाता था. उन्होंने 14 साल की आयु तक सभी बच्चों के लिए निशुल्क सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा के अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा की वकालत की। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया। 1949 में केंद्रीय असेंबली में उन्होंने आधुनिक विज्ञान के महत्व पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक समाज की आधी से ज्यादा आबादी यानी महिलाओं तक नहीं पहुंचता।
मौलाना अबुल कलाम आजाद ने संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी के साथ-साथ सांस्कृतिक संबंधों के लिए भारतीय परिषद समेत आज के अधिकांश प्रमुख सांस्कृतिक और साहित्यिक अकादमियों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहला आईआईटी, आईआईएससी, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग उनके कार्यकाल के तहत स्थापित किए गए थे। मौलाना उर्दू, फारसी और अरबी के प्रसिद्ध विद्वान थे. उन्होंने शैक्षणिक लाभों के लिए अंग्रेजी की भी वकालत की हालांकि उनका मानना था कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए। साभार