राम मोहन को जगदीश सेठी द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘इंसान’ में पहली बार अच्छी भूमिका मिली। राम मोहन ने ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’, ‘तारा’, ‘शतरंज’, ‘संसार’, ‘बहादुर शाह ज़फ़र’, ‘ये दिल्ली है’ और ‘महाभारत’ 15 धारावाहिकों में अभिनय किया था।
राम मोहन की फ़िल्म ‘जग्गू’ की कामयाबी के बाद उनके रास्ते आसान हो गये। अगले कुछ सालों में उन्होंने ‘श्री चैतन्य महाप्रभु’ (1953), ‘पेंशनर’ (1954), ‘होटल’, ‘लाल-ए-यमन’ (दोनों 1956), ‘देवर भाभी’, ‘मिस 58’, ‘नाईट क्लब’, ‘राजसिंहासन’ (सभी 1958), ‘भगवान और शैतान’, ‘चाचा ज़िंदाबाद ‘, ‘दो बहनें’, ‘टीपू सुल्तान’ (सभी 1959), ‘अंगुलिमाल’, ‘बहादुर लुटेरा’, ‘चोरों की बारात’, ‘काला आदमी’ और ‘मिस्टर सुपरमैन की वापसी’ (सभी 1960) फ़िल्मों में अहम भूमिकाएं निभायीं।
- राम मोहन को नायक या सहनायक के रूप में ज़्यादा मौक़े नहीं मिल पाए, लेकिन बहुत जल्द वो खलनायक और आगे चलकर चरित्र अभिनेता के तौर पर पहचाने जाने लगे। 60 सालों के अपने कॅरियर के दौरान राम मोहन ने ‘हरियाली और रास्ता’, ‘मेरे हुज़ूर’, ‘तक़दीर’, ‘शोर’, ‘किताब’, ‘जियो तो ऐसे जियो’, ‘अंगूर’, ‘सावन को आने दो’, ‘शान’, ‘नदिया के पार’, ‘बंटवारा’, ‘ग़ुलामी’, ‘रंगीला’ और ‘कोयला’ सहित क़रीब 240 फ़िल्मों में अभिनय किया। राम मोहन को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2014 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था।