स्मृति शेष ।अक्किनेनी लक्ष्मी वर प्रसाद राव , जिन्हें एल.वी. प्रसाद के नाम से जाना जाता है । सफल फ़िल्मकार, निर्माता-निर्देशक और अभिनेता के रूप में याद किये जाते हैं। एन. टी. रामाराव सहित कई कलाकारों के सिने कैरियर में चार चाँद लगाने वाले एल. वी. प्रसाद दक्षिण भारत की विभिन्न भाषाओं के अलावा हिन्दी फ़िल्मों में भी सफल रहे थे। उन्होंने सामाजिक उद्देश्यों के साथ कई मनोरंजक फ़िल्में बनाईं।
एल. वी. प्रसाद का जन्म 17 जनवरी, 1908 को आन्ध्र प्रदेश के इलुरु तालुका में एक किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम अक्कीनेनी श्रीरामुलु और माता बासवम्मा थीं। एल. वी. प्रसाद का लालन-पालन बहुत ही लाड़-प्यार के साथ हुआ था। वे प्रारम्भ से ही बहुत बुद्धिमान थे, किंतु उनका पढ़ाई में ध्यान बिल्कुल भी नहीं लगता था। कम उम्र में ही वे नाटकों और नृत्य मंडलियों की ओर आकर्षित हो गए थे। इन्हीं सपनों को लेकर वे एक दिन घर छोड़कर मुंबई चले आये। लेकिन उनका ये सफर आसान नहीं रहा और उन्हें तमाम तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। दृढ़ निश्चयी एल. वी. प्रसाद ने हार नहीं मानी और अंतत: सफलता ने उनके कदम चूमे।
एल. वी. प्रसाद ने भारत की तीन भाषाओं की पहली बोलती फ़िल्मों में काम किया। उन्होंने 1931 में प्रदर्शित आर्देशिर ईरानी की फ़िल्म ‘आलम आरा’ के अतिरिक्त ‘कालिदास’ और ‘भक्त प्रह्लाद’ में काम किया। ‘आलम आरा’ जहाँ हिन्दी की पहली बोलती फ़िल्म थी, वहीं ‘कालिदास’ पहली तमिल भाषा की बोलती फ़िल्म थी और ‘भक्त प्रह्लाद’ पहली तेलुगु बोलती फ़िल्म थी।
एल. वी. प्रसाद ने हिन्दी भाषा में कई चर्चित फ़िल्में बनाईं। इन फ़िल्मों में ‘शारदा’, ‘छोटी बहन’, ‘बेटी बेटे’, ‘दादी माँ’, ‘शादी के बाद’, ‘हमराही’, ‘मिलन’, ‘राजा और रंक’, ‘खिलौना’, ‘एक दूजे के लिए’ आदि शामिल हैं। उनकी फ़िल्में प्राय: सामाजिक उद्देश्यों के साथ स्वस्थ मनोरंजन पर केंद्रित हुआ करती थीं। उन्होंने प्रसिद्ध कलाकारों राज कपूर, मीना कुमारी, संजीव कुमार, कमल हासन, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त, अशोक कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, शशि कपूर, प्राण, मुमताज और राखी, महमूद शुभा खोटे सितारों के साथ काम किया।
निर्माता एल. वी. प्रसाद की 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘छोटी बहन’ संभवत: पहली फ़िल्म थी, जिसमें भाई और बहन के प्यार भरे अटूट रिश्ते को रूपहले परदे पर दिखाया गया था। इस फ़िल्म में बलराज साहनी ने बड़े भाई और अभिनेत्री नन्दा ने छोटी बहन की भूमिका निभायी थी। इस फ़िल्म में शैलेन्द्र का लिखा और लता मंगेशकर द्वारा गाया का गीत “भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना” बेहद लोकप्रिय हुआ था। रक्षा बंधन के गीतों में इस गीत का विशिष्ट स्थान आज भी बरकरार है।
जीवन के अंतिम दौर तक सार्वजनिक रूप से सक्रिय रहे एल. वी. प्रसाद को कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा गया था। उन्हें फ़िल्मों में विशेष योगदान के लिए देश का सर्वोच्च सम्मान “दादा साहब फाल्के पुरस्कार” 1982 में प्रदान किया गया था। इसके अतिरिक्त फ़िल्म ‘खिलौना’ के लिए उन्हें ‘फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड’ भी दिया गया।
भारतीय सिनेमा में विशिष्ट योगदान देने वाले एल. वी. प्रसाद का निधन 22 जून, 1994 हुआ। प्रसाद जी ऐसे फ़िल्मकार के रूप में प्रसिद्ध थे, जो एक ही साथ कई विभिन्न भाषाओं में फ़िल्म बनाते रहे। उनकी फ़िल्मों में जहाँ कहानी और संवाद पर विशेष तौर पर काम किया जाता था, संगीत पक्ष पर भी काफ़ी जोर दिया जाता था। उनकी फ़िल्मों के कई गीत अब भी काफ़ी लोकप्रिय हैं। साभार